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Saturday, September 28, 2024

✅विंग कमांडर अभिनंदन का नाम तो आप निश्चय ही नहीं भूले होंगे. शायद उनकी "हैंडल बार’ मूछें भी याद ही होंगी.

 ✅विंग कमांडर अभिनंदन का नाम तो आप निश्चय ही नहीं भूले होंगे. शायद उनकी "हैंडल बार’ मूछें भी याद ही होंगी.


          लेकिन इसी भारतीय वायु सेना के कुछ अन्य जांबाज़ पायलट के नाम नीचे मैंने लिखे हैं. इनकी तस्वीरें देखना तो दूर, हममें से कोई एकाध ही होगा जिसने ये नाम सुन रखे होंगे. 

लेकिन इनका रिश्ता अभिनंदन से बड़ा ही गहरा है. 


पढ़िए ये नाम.


          विंग कमांडर  हरसरण सिंह डंडोस

          स्क्वाड्रन लीडर  मोहिंदर कुमार जैन

          स्क्वाड्रन लीडर  जे एम मिस्त्री

          स्क्वाड्रन लीडर  जे डी कुमार

          स्क्वाड्रन लीडर  देव प्रशाद चटर्जी

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  सुधीर गोस्वामी

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  वी वी तांबे

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  नागास्वामी शंकर

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  राम एम आडवाणी

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  मनोहर पुरोहित

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  तन्मय सिंह डंडोस

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  बाबुल गुहा

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  सुरेश चंद्र संदल

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  हरविंदर सिंह

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  एल एम सासून

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  के पी एस नंदा

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  अशोक धवले

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  श्रीकांत महाजन

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  गुरदेव सिंह राय

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  रमेश कदम

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  प्रदीप वी आप्टे

          फ्लाइंग ऑफिसर  कृष्ण मलकानी

          फ्लाइंग ऑफिसर  के पी मुरलीधरन

          फ्लाइंग ऑफिसर  सुधीर त्यागी

          फ्लाइंग ऑफिसर  तेजिंदर सेठी


          ये सभी नाम अनजाने लगे होंगे. 

 ये भी भारतीय वायुसेना के योद्धा थे जो 1971 की जंग में पाकिस्तान में युद्ध बंदी बना लिए गए, और फिर कभी वापस नहीं आए .* इनकी चिट्ठियां घर वालों तक आई , पर तत्कालीन भारत सरकार ने कभी इनकी खोज खबर नहीं ली.


          1972 में शिमला में ’आयरन लेडी’ के रूप में स्वयं प्रसिद्ध तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ हुए शिमला समझौते में  90 हज़ार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को छोड़ने का समझौता तो कर आई, *पर इन्हें वापस मांगना भूल गई.*


          ये अभिनंदन जितने खुशकिस्मत नही थे , क्योकि इनके लिए उस समय की सरकार ने मिसाइलें नहीं तानी, न देश के लोगों ने इनकी खबर ली, न अखबारों ने फोटो छापे. 

 इन्हें मरने को, पाकिस्तानी जेलों में सड़ने को छोड़ दिया गया. इनके वजूद को नकार दिया गया.*


          और यह पहली बार नहीं हुआ था. रेज़ांगला के वीर अहीरों को भी नेहरू ने भगोड़ा करार दिया था. परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी को कायर मान लिया था. अगर चीन ने इनकी जांबाज़ी को न स्वीकारा होता, एक लद्दाखी गडरिये को इनकी लाशें न मिली होती, ये वीर अहीर न कहलाते, शैतान सिंह भाटी मरणोपरांत परम वीर चक्र का सम्मान न पाते.


          *यही रवैया रहा है इन सत्ता लोलुप गांधी नेहरू कुनबों का देश के वीर सपूतों के प्रति.* 

और यही फ़र्क़ है देश भक्ति का सच्चा सपूत मोदी में , ओर इनमे ।


          आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि अगर मोदी की जगह उनका मोनी बाबा होता तो शायद अभिनंदन का नाम भी इसी लिस्ट में लिखा होता.


वंदेभारतमातरम💐


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