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Wednesday, July 3, 2024

सदन की कार्यवाही से हटाए गए उनके भाषण के अंशों को राहुल गांधी संवाददाताओं के समक्ष क्यों नहीं पढ़ देते?

 सदन की कार्यवाही से हटाए गए उनके भाषण के अंशों को राहुल गांधी संवाददाताओं के समक्ष क्यों नहीं पढ़ देते? 

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लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने स्पीकर को पत्र लिखा है।

 लोक सभा में कल दिए गए उनके भाषण में से कुछ अंश हटा दिए गए हैं।

क्योंकि स्पीकर ने उन अंशों को आपत्तिजनक माना।

पर श्री गांधी ने स्पीकर साहब को लिखा है कि 

‘‘मेरे भाषण में कुछ भी गलत नहीं ।

मोदी जी की दुनिया में सच मिटाया जा सकता है।’’

    राहुल जी, यदि आप चाहेंगे तो वह सच नहीं मिटेगा।

बस आपको करना यह है कि जिन अंशों को हटा दिया गया है, उन अंशों को प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर उसमें पढ़कर सुना दीजिए।

वह अमिट हो जाएगा। यह काम तो आपके लिए बहुत आसान है। मीडिया से मोदी जी भी नहीं हटवा सकते।

पर, मैं जानता हूं कि वैसा आप नहीं करेंगे।

क्योंकि वैसा करने पर आपके खिलाफ मानहानि के कई मुकदमे दायर हो जाएंगे।

उन मुकदमों में आप जवाब नहीं दे पाएंगे।

आपको सजा हो ही जाएगी।

चूंकि संसद में बोली गई बातों के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा नहीं हो सकता, इसलिए आपने वह जगह चुनी थी। यह बहादुर नेता का काम नहीं है। यदि प्रेस कांफ्रेंस में आप सुना देंगे तो आपको बहादुर मान लिया जाएगा। माना जाएगा कि उन आरोपों को कोर्ट में साबित करने का हौसला आप रखते हैं।

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मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल भी अनर्गल आरोप लगाने व मानहानिजनक बातें बोलने के लिए दिल्ली विधान सभा के मंच

का यदाकदा दुरुपयोग करते रहते हैं।

आश्चर्य है कि वहां के स्पीकर उन्हें नहीं रोकते। मैं सन 1969 से बिहार विधान सभा की कार्यवाही देख रहा हूं। ऐसा पहले कभी नहीं होता था।

नियम है कि यदि आप सदन के अपने भाषण में किसी पर कोई आरोप लगाने वाले हैं तो उससे संबंधित कागजात स्पीकर को देकर उन्हें पहले संतुष्ट कर लेना पड़ता है।

पर, जब से कुछ स्पीकर मुख्य मंत्रियों के प्रभाव में आकर नियमों को नजरअंदाज करने लगे, केजरीवाल जैसे नेताओं को छूट मिल गयी। वैसी ही छूट राहुल लेना चाहते थे।

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हाल में झामुमो सांसद रिश्वत केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सदन के काम के लिए घूस लेने को भी अपराध माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने उससे पहले उन घूसखोरों को विशेषाधिकार के बहाने छोड़ दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वह सदन में मानहानि जनक आरोप लगाने पर उससे पीड़ित व्यक्ति या समूह को अदालत जाने की छूट दे दे।

या सरकार संविधान में तत्संबंधी संशोधन संसद से करवा दे।

 क्योंकि टी.वी. चैनलों के जरिए पहले तो आरोपों से संबंधित सनसनीखेज व अपमानजनक खबरों को दुनिया जान जाती है। बाद में उसे कार्यवाही से निकाल देने से कोई लाभ नहीं होता।

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