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Monday, July 15, 2024

मोदी और मोसादेग

 मोदी और मोसादेग


*ईरान 1951 और भारत 2024.*

*समानताएँ? मोसादेग...और...मोदी*


क्या आपने कभी सोचा है कि "ईरान के लोग अमेरिका को "शैतान की भूमि" क्यों कहते हैं?


ब्रिटिशों ने ईरान के तेल व्यापार पर अपना दबदबा कायम कर लिया था, ईरान के तेल उत्पादन का 84% हिस्सा इंग्लैंड को जाता था और केवल 16% ईरान को।


1951 में, एक कट्टर देशभक्त मोहम्मद मोसादेग प्रधानमंत्री बने।


उन्हें ईरान के तेल व्यापार में विदेशी कंपनियों का दबदबा पसंद नहीं था।


15 मार्च, 1951 को उन्होंने संसद में ईरान के तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण के लिए एक विधेयक पेश किया, जिसे बहुमत से पारित कर दिया गया।


इस विधेयक के पारित होने के बाद, ईरानियों को खुशी के सपने आने लगे, कि अब उनकी गरीबी दूर हो जाएगी!

टाइम्स पत्रिका ने 1951 में मोसादेग को "मैन ऑफ द ईयर" कहा!


लेकिन इन घटनाक्रमों के कारण, अंग्रेजों को बहुत कुछ खोना पड़ा! 

अंग्रेजों ने मोसादेग को हटाने के लिए कई छोटे-बड़े प्रयास किए,

मोसादेग को रिश्वत देने की कोशिश की, 

मोसादेग की हत्या करने की कोशिश की, 

सैन्य तख्तापलट की कोशिश की, लेकिन मोसादेग बहुत अनुभवी और बुद्धिमान था, इसलिए अंग्रेजों की हत्या, रिश्वतखोरी की साजिशें विफल हो गईं।

 मोसादेग ईरानी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय था।


 लोकप्रिय होने के कारण, सैन्य तख्तापलट भी संभव नहीं था।


अंत में अंग्रेजों ने अमेरिका से मदद मांगी।


अमेरिका की CIA ने मोसादेग को हटाने के लिए ,1 मिलियन डॉलर का फंड मंजूर किया। 1 मिलियन डॉलर 4250 करोड़ रियाल (ईरानी मुद्रा) के बराबर है!


 अमेरिका की योजना मोसादेग के खिलाफ असंतोष पैदा करने और उसके प्रति लोगों के समर्थन को खत्म करने की थी, फिर भ्रष्ट सांसदों की मदद से उसकी सरकार को उखाड़ फेंकना था।


अमेरिका ने बड़ी संख्या में ईरानी पत्रकारों, संपादकों, मुस्लिम मौलवियों को 631 करोड़ रियाल का भुगतान किया।  बदले में उन पत्रकारों, संपादकों और मुस्लिम मौलवियों को सिर्फ एक ही काम करना था, 

वह था लोगों को मोसादेग के खिलाफ भड़काना।


हजारों ईरानियों को झूठे विरोध में भाग लेने के लिए भुगतान किया गया। उन्होंने संसद पर मार्च करना शुरू कर दिया। दुनिया भर के बड़े मीडिया ने भी अमेरिका का समर्थन करना शुरू कर दिया।


मोसादेग का विरोध बहुत ही निचले स्तर पर शुरू हुआ, जिसमें कार्टूनों में उन्हें समलैंगिक के रूप में दर्शाया गया। उसी प्रकार जैसे मोदीजी के दाम्पत्य जीवन को निशाना बनाया जाता है ।

मोसादेग को तानाशाह कहा जाने लगा।


यह महसूस करते हुए कि उनकी सरकार भ्रष्ट सांसदों द्वारा उखाड़ फेंकी जाने वाली है। 

मोसादेग ने संसद को भंग कर दिया।  

अमेरिका ने ईरानी सम्राट को मोसादेग को प्रधानमंत्री के पद से हटाने के लिए मजबूर किया।

अंत में, 210 मिलियन रियाल की रिश्वत देकर, अमेरिका ने भाड़े के सैनिकों की मदद से ईरान की राजधानी में फर्जी दंगे भड़काए।


सम्राट के ईरान लौटने के बाद, मोसादेग ने आत्मसमर्पण कर दिया। उस पर मुकदमा चलाया गया, उसे कैद किया गया और फिर उसकी मृत्यु तक उसे घर में ही नजरबंद रखा गया।  (मोसादेग की मृत्यु 85 वर्ष की आयु में हिरासत में हुई।)


उसके बाद, अमेरिका और इंग्लैंड ने ईरानी तेल का 40-40% हिस्सा साझा किया और शेष 20% अन्य यूरोपीय कंपनियों को दे दिया गया।


दशकों तक ईरानी लोगों को शाह की तानाशाही के अधीन रहना पड़ा। एक क्रांति ने राजशाही को समाप्त तो कर दिया; लेकिन फिर कट्टरपंथी खोमैनी सत्ता में आए और ईरानी लोगों की स्थिति और भी खराब हो गई।


मोसादेग का अपराध क्या था..?


देश के क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों के बजाय स्वदेशी कंपनियों का वर्चस्व होना चाहिए!  यह नीति उनका अपराध थी..?


मोसादेग के नेतृत्व में, ईरान 1955 से पहले एक पूर्ण लोकतांत्रिक देश बन सकता था, और इसके तेल उत्पादन से केवल ईरान को ही लाभ हो सकता था।


   लेकिन ईरान के भ्रष्ट सांसदों, पत्रकारों, संपादकों, प्रदर्शनकारियों ने ईरान के समृद्ध भविष्य को मात्र दस लाख डॉलर में बेच दिया।


दमन के इस दौर में ईरानी लोगों को यह एहसास होने लगा कि मोसादेग की सरकार को उखाड़ फेंकने में अमेरिका का हाथ था।


 इसलिए ईरानी अमेरिका को शैतान का देश कहते हैं!


अब विचार करें कि  ईरान के लिए असली खलनायक कौन थे..?  वे अमेरिका के हाथों बिके हुए  पत्रकार थे, संपादक थे, सांसद थे कार्यकर्ता थे ।


अगर ये लोग नहीं बिकते और लोग मोसादेग के पीछे खड़े होते, तो अमेरिका कतई  सफल न होता। लेकिन चार पैसे के लिए देशभक्त नेता को "कुमशाह" कहा गया और देखते ही देखते पूरा देश बर्बाद हो गया!


 *हमारा देश 'भारत' भी आज उसी राह पर है।यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि आम नागरिक चल रही साजिशों को तब तक नहीं देख पाते,जब तक कि उन्हें अंतहीन अत्याचारों का सामना न करना पड़े*


 *फ़र्ज़ी मुद्दे, फ़र्ज़ी किसान आंदोलन, फ़र्ज़ी आंकड़े, जातियों को आपस में लड़ाना, अल्पसंख्यक समुदाय को उकसाना, कम्युनिस्ट लॉबी द्वारा राष्ट्रविरोधी ताकतों को साथ देना, ये सब वे राष्ट्रघाती क़दम हैं जो आजकल भारत में जोरों पर हैं ताकि विदेशी अनिष्ट कारक ताकतों का भारत पर आर्थिक सामाजिक और प्रशासनिक नियंत्रण हो जाये*।


*समय रहते सचेत हो जाना और इस भ्रष्ट मीडिया दुष्प्रचार का शिकार न बनना ही समझदारी है।अपने देशभक्त वर्तमान भारतीय नेतृत्व पर भरोसा रखें और मोदी के पीछे मजबूती से खड़े रहें। अन्यथा ईरान जैसी आपदा अवश्यंभावी है.....


  बड़े पूंजीवादी देशों की खुफिया एजेंसियां भारत के कई राजनेताओं को अपने एजेंट के रूप में काम करवाने के लिए दिन-रात काम कर रही हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य देश के वर्तमान नेतृत्व (मोदी) को हटाना है।


 कहते हैं कि हमारा भाग्य हमारे अपने हाथों में है। बस हमें इसे ठीक से समझने की जरूरत है।


द न्यूयॉर्क टाइम्समें मोसादेग को  तानाशाह  के रूप में संदर्भित किया गया था।, यही हाल मोदी का भी  है । टाइम  पत्रिका नें मोदी को डिवाइडर इन चीफ कहा था ।।तानाशाह तो आज भी कहा ही जा रहा है ।

क्या यह विचार करने योग्य नही है।


जय हिंद 🚩

भारत माता की जय 🙏

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