Followers

Tuesday, October 8, 2024

साभार एक विमर्श.... यूं तो #भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है

 साभार एक विमर्श....

यूं तो #भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है।लेकिन आज #योग और #आयुर्वेद पर चर्चा कर रहे हैं।ऐसे माहौल में जब #एलोपैथी ने पूरी दुनिया पर कब्जा जमा लिया हो,योग मुफ्त में समाधान देता है और आयुर्वेद काफी कम खर्च में।भारत में डाक्टरों को मोटे मोटे पैकेज देने वाले मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों ने चिकित्सा को बहुत मंहगा बना दिया है।भारत सरकार एम्स जैसे बड़े बड़े चिकित्सा संस्थान बनाकर,#जेनरिक_दवाएं लाकर और #आयुष्मान कार्ड जैसी सुविधाएं देकर सस्ता उत्तम एलोपैथिक चिकित्सा जरूर दे रही है।लेकिन निजी अस्पतालों में इलाज कराना सबके वश में नहीं है।


आयुर्वेद पहले भी जन जन के लिए उपलब्ध थी और आज भी है !

आईएमए भले ही ही आयुर्वेद का उपहास उड़ाती हो,रामदेव जैसी हस्ती को कोर्ट में घसीटती हो,लेकिन ऋषियों द्वारा प्रतिपादित आयुर्वेद भारत की महान चिकित्सा पद्धति है !

आश्चर्य की बात है कि आयुर्वेद को झोला छाप मानने वाले मसालों के चटपटे जायके खूब लेते हैं ,,,निम्बू शिकंजी,जलजीरा,गोलगप्पों का पानी,आम का  पाना,काला नमक और पुदीना पड़ा मट्ठा,चाट की चटनी और दही मिला मसालों भरा घोल दबाकर गटकते हैं ,,,


घर घर डलने वाले अचार और रोजाना बनने वाली चटनियाँ,गुड़ की चाशनी में इमली और सोंठ से बनी सोंठिया और न जाने कितने पेय मसाले आयुर्वेद  की ही देन हैं।किसी भी प्रान्त का भोजन मसालों से ही चटकारे लेने लायक बनता है।हर रसोई की शान हैं काली मिर्च,लाल मिर्च,हरी मिर्च,हल्दी,धनियां,सौंफ,जीरा,हींग,दालचीनी,जायफल,करौंजी,मेथी,सोंठऔर न जाने क्या क्या!


ये सब आयुर्वेद की देन हैं । आयुर्वेद के बगैर रसोई तो रसोई ही नहीं । किसी प्रान्त के कोई व्यंजन बताइए जो जड़ी बूटियों और मसालों के बगैर बनते हों । #मसाले हैं तो #रसोई है , जायके हैं , इत्मिनान है,जीभ है और आपकी डाइनिंग टेबल है।आयुर्वेद से मत चिढिये साहब,रसोई रूठ जाएगी।हिम्मत है तो जरा एक भी मसाले के बगैर खाना बनाकर और खाकर दिखाइए?चाहे तो दादी नानी या बाबा नाना से पूछ लीजिये।वे यही कहेंगे कि बिटवा हमारी सारी रसोई ही आयुर्वेद है । 


आयुर्वेद #चरक और #धन्वंतरि जैसे ऋषियों की देन है।यह अमृत घट है , मानव शरीर का आधार है।कोरे तर्क नहीं,भरोसा कीजिये।आयुर्वेद पर गुलामी ने आवरण चढ़ा दिया था।अब परतें उधड़ रही हैं,अंधेरा छंट रहा है।लम्बी दासता के साये से बाहर आइये।स्वस्थ रहना है तो आयुर्वेद यानी अपनी रसोई की ओर लौटिए । 


अश्वगंधा,तुलसी,गिलोय,मुलहटी,काढ़ा आदि अमृत हैं।इन्हें अपनाइए,निरोग हो जाइए।आयुर्वेद को उत्थान पर पहुंचाने में जो जी जान से जुटे हैं,उनके साथ आइये।आयुर्वेद  दवा है,जड़ी बूटियों के माध्यम से किया गया #समाधान है,एक सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति है।रही योग की बात तो योग को तो पूरी दुनिया मान चुकी है।आयुर्वेद अपनाइए,मुस्कुराइए , चूंकि हम भारत के वासी हैं।

Monday, October 7, 2024

जापान और इस्लाम

 जापान और इस्लाम


क्या आप जानते है?


* क्या आपने कभी यह समाचार पढ़ा है कि मुस्लिम राष्ट्र का कोई प्रधानमंत्री या कोई बड़ा नेता कभी जापान या टोकियो कि यात्रा पर गया हो?


*क्या आपने कभी किसी अख़बार में यह भी पढ़ा है कि ईरान या सउदी अरब के राजा ने जापान कि यात्रा कि हो?

कारण

* दुनिया में जापान ही एकमात्र ऐसा देश है जो मुसलमानों को जापानी नागरिकता नहीं देता.

* जापान में अब किसी भी मुस्लमान को स्थायी रूप से रहने कि इजाजत नहीं दी जाती है.


* जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबन्ध है.

* जापान के विश्वविधालयों में अरबी या अन्य इस्लामी राष्ट्रों कि भाषाए नहीं पढाई जाती.


* जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान आयत नहीं कि जा सकती.

इस्लाम से दुरी

* सरकारी आकड़ों के अनुसार, जापान में केवल दो लाख मुसलमान है. और ये भी वही है जिन्हें जापान सरकार ने नागरिकता प्रदान कि है.


* सभी मुस्लिम नागरिक जापानी भाषा बोलते है और जापानी भाषा में ही अपने सभी मजहबी व्यवहार करते है.

* जापान विश्व का ऐसा देश है जहाँ मुस्लिम देशों के दूतावास न के बराबर है.


* जापानी इस्लाम के प्रति कोई रूचि नहीं रखते. आज वहा जितने भी मुसलमान है वे विदेशी कंपनियों के कर्मचारी ही है. परन्तु आज कोई बाहरी कंपनी अपनें यहाँ के मुस्लिम डाक्टर, इंजीनियर या प्रबंधक आदि को जापान में भेजती है तो जापान सरकार उन्हें जापान में प्रवेश कि अनुमति नहीं देती है.


* अधिकतर जापानी कंपनियों ने अपने नियमों में यह स्पष्ट लिख दिया है कि कोई मुसलमान उनके यहाँ नौकरी के लिए आवेदन न करे.


* जापान सरकार यह मानती है कि मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय है, इसलिए आज के वैश्विक दौर में भी वे अपने पुराने नियम बदलना नहीं चाहती.


* जापान में किराये पर किसी मुस्लिम को घर मिलेगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं कि जा सकती. यदि किसी जापानी को उसके पडौस के मकान में मुस्लिम के किराये पर रहने कि खबर मिल जाये तो सारा मौहल्ला सतर्क हो जाता है.


* जापान में कोई इस्लामी या अरबी मदरसा नहीं खोल सकता.

मतान्तरण पर रोक

* जापान में मतान्तरण पर सख्त पाबन्दी है.


* किसी जापानी ने अपना पंथ किसी कारणवश बदल लिया है तो उसे व उसके साथ मतान्तरण कराने वाले कि सख्त सजा दी जाती है. यदि किसी विदेशी ने यह हरकत कि है तो उसे सरकार कुछ ही घंटों में जापान छोड़ कर चले जाने का सख्त आदेश देती है.


* यहाँ तक कि जिन ईसाई मिशनरियों का हर जगह असर है, वे जापान

में दिखाई नहीं देतीं.


* वेटिकन पोप को दो बातों का बड़ा अफसोस होता है कि - एक तो यह कि वे २० वी शताब्दी समाप्त होने के बावजूद भारत को यूनान कि तरह ईसाई देश नहीं बना सके. दूसरा यह कि जापान में ईसाईयों कि संख्या में वृद्धी नहीं हो सकी.


* जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते. बड़ी से बड़ी सुविधा का लालच दिया जाये तब भी वे अपने पंथ के साथ धोखा नहीं करते.


*जापान में 'पर्सनल ला' जैसा कोई शगूफा नहीं है.


* यदि कोई जापानी महिला किसी मुस्लिम से विवाह कर लेती है तो उसका सामाजिक बहिस्कार कर दिया जाता है.


*जापानियों को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या सोचता है.


*टोकियो विश्वविधालय के विदेशी अध्धयन विभाग के अध्यक्ष कोमिको यागी के अनुसार, इस्लाम के प्रति जापान में हमेशा यही मान्यता रही है कि वह एक संकीर्ण सोच का मजहब

है. उसमें समन्वय कि गुंजाईश नहीं है.


* स्वतन्त्र पत्रकार मोहम्मद जुबेर ने ९/११ कि घटना के बाद अनेक देशों कि यात्रा कि थी. वह जापान भी गए, लेकिन वहां जाकर उन्होंने देखा कि जापानियों को इस बात पर पूरा भरोसा है कि कोई आतंकवादी जापान में पर भी नहीं मर सकता।


🖋️━━━━✧👁️✧━━━ 🔗

    Follow 

Sunday, October 6, 2024

अरुण आर्यवीर ( पूर्व नाम माइकल जॉन डिसूजा)

 मेरा जन्म मुंबई के इसाई परिवार में 8 मई 1964 में हुआ था मेरी माता जी का नाम श्रीमती रोजी डिसूज़ा और मेरे पिताजी का नाम श्री जॉन डिसूजा है । मेरा नाम माता-पिता ने माइकल जान डेसूजा रखा था । मैं अपने माता-पिता का जेष्ठ पुत्र हूं। मेरे अतिरिक्त मेरी एक बहन श्रीमती हिल्डा और एक भाई श्री हेनरी हैं। बचपन से मैं अपने परिवार के साथ हर रविवार को चर्च जाता था। चर्च के पादरी के उपदेश आदि सुनता था। बाइबल का उनके द्वारा निर्देशित स्वाध्याय भी करता था। एक सामान्य इसाई के समान मेरा जीवन था। 12वीं तक पढ़ाई करके मैंने दो वर्ष आईटीआई से तकनीकी शिक्षा ग्रहण की। इसाई त्योहारो आदि में मै सक्रिय रूप से भाग लेता था। पर धीरे-धीरे बाइबल पढ़कर मैं असंतुष्ट रहने लगा। बाइबल में दिए अनेक उपदेशों पर मुझे शंका होने लगी । मैंने अपने चर्च के पादरी से उन सब शंकाओं का समाधान करना चाहा पर वह मुझे संतुष्ट नहीं कर सके। उनकी सलाह से मैं स्थानीय पुस्तकालय से अन्य पुस्तकें लेकर पढ़ना आरंभ किया। इसी प्रक्रिया में मुझे भारत और यूरोप में चर्च के इतिहास की जानकारी मिली। मैं जब अनंत वायरल कर की गोवा इन्कुइसिशन नामक पुस्तक को पढ़ा कि कैसे पुर्तगाल से आकर गोवा में सेंट फ्रांसिस जेवियर ने स्थानीय हिंदुओं पर अनेक अत्याचार कर उन्हें जबरन इसाई बनाया तो मुझे इसाई होते हुए भी अच्छा नहीं लगा। जब मैंने पढ़ा कि वास्कोडिगामा ने व्यापार की आड़ में कैसे भीषण कत्लेआम किया था तो मुझे विदेशियों के व्यवहार पर शंका होने लगी कि क्या एक मानव को दूसरे मानव के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए ? छल , कपट से धर्म परिवर्तन करवाना मुझे महा पाप जैसा लगा । दक्षिण भारत में रॉबर्ट दी नोबेली  ने पंचम वेद का स्वांग कर अपने आप को रोम से आया ब्राह्मण कहकर भोले भाले ग्रामीण लोगों को जिस प्रकार से इसाई बनाया। वह पढ़कर तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि क्या इसाइयत के सिद्धांत अंदर से इतने कमजोर हैं जो उसे सत्य मार्ग के स्थान पर छल, कपट, दबाव, हिंसा, झूठ, धोखा, ढोंग, धन प्रलोभन आदि का सहारा लेना पड़ता है? मेरा ऐसे इसाइयत से विश्वास उठने लगा। मैं सत्य अन्वेषी बनाकर गृह त्याग कर विभिन्न मतों में जाकर उनकी विचारधारा का विश्लेषण करने लगा पर मेरी मंजिल अभी दूर थी।

    पवई, मुंबई में मेरे पड़ोस में आर्यवीर दल का एक कैंप लगा। उस कैंप में छोटे-छोटे बच्चों को वैदिक विचारधारा और शारीरिक श्रम करने की ट्रेनिंग दी जा रहे थी। मैं भी देखने चला गया। वहां मेरा परिचय शिक्षक ब्रह्मचारी सुरेंद्र जी तथा श्री ओम प्रकाश आर्य जी से हुआ। उनके साथ मैंने परस्पर संवाद कर अपनी अनेक संख्याओं का समाधान किया जिससे मुझे अपूर्व संतोष मिला। ऐसा लगा चिरकाल से बहती मेरी नाव को किनारा मिल गया। उनकी प्रेरणा से मैं विधिपूर्वक यज्ञोपवीत धारण किया और आजीवन ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया। उन्होंने मेरा नया नामकरण ब्रह्मचारी अरुण आर्यवीर के नाम से किया और मुझे स्वामी दयानंद लिखित सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने की प्रेरणा दी। सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर मुझे मेरे जीवन का उद्देश्य मिल गया। स्वामी दयानंद के ज्ञान रूपी सागर में डुबकी लगाकर में तृप्त हो गया। आर्य समाज के माध्यम से मेरा वैदिक धर्म में प्रवेश स्वेच्छा से हुआ। मैं जब वैदिक धर्म के सार्वभौमिक सिद्धांतों की तुलना ईसाई आदि मत मदांतर की मान्यताओं से की तो उन्हें सभी के लिए अनुकूल और ग्रहण करने योग्य पाया।  हर मत-मतांतर  की धर्म पुस्तक में आपको कुछ अच्छी बातें मिलती हैं। परंतु जो ज्ञान वैदिक धर्म की पुस्तकों में मिलता है, उसकी कोई तुलना नहीं है। सत्यार्थ प्रकाश के तेरहवें समुल्लास में ईसाई मत समीक्षा पढ़कर मेरे बाइबल संबंधित सभी संशयों की निवृत्ति हो गई।

      इस पुस्तक के प्रशासन में डॉक्टर मदन मोहन जी, रिटायर प्रोफेसर फिजियोलॉजी, मेडिकल कॉलेज पांडिचेरी ने न केवल आर्थिक सहयोग प्रदान किया है अपितु पुस्तक के प्रूफ करने में भी यथोचित सहयोग दिया है। मैं उनका करबद्ध अभारी हूं ।

   मैं इस कृपा के लिए सर्वप्रथम परमपिता परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहूंगा जिनकी मुझ पर यही बड़ी कृपा हुई।  अन्यथा जाने कितने जन्मों तक अविद्या रूपी अंधकार में भटकता रहता। मैं भी संभवतः  ईसाई पादरियों के समान भोले भाले लोगों को ईसा मसीह की भेड़ बनाने के कार्य में लगा रहता । मैंने इन वर्षों में अपने स्वाध्याय से जो बाइबिल का ज्ञान अर्जित किया था उसे निष्पक्ष पाठकों के लिए इस पुस्तक के माध्यम से मैं संकलित कर प्रस्तुत कर रहा हूं इस कार्य में मेरा सहयोग दिल्ली निवासी डॉक्टर विवेक आर्य ने दिया है जिनकी सहायता से यह कार्य मैं पूर्ण कर पाया। वर्तमान में मैं आर्य समाज का प्रचारक हूं और विभिन्न माध्यमों से वैदिक विचारधारा का प्रचार प्रसार करता हूं । इस पुस्तक को पढ़कर लोग इस ईसाईयत के जंजाल से मुक्त होकर वैदिक पथ के पथिक बने, यही ईश्वर से प्रार्थना है।

 

                 अरुण आर्यवीर ( पूर्व नाम माइकल जॉन डिसूजा)

मेरे एक नजदीकी मित्र ने पिछले साल मारुति की बलेनो कार खरीदी थी.

 ✅मेरे एक नजदीकी मित्र ने पिछले साल मारुति की बलेनो कार खरीदी थी.


लेकिन, उसे गाड़ी की ड्राइविंग नहीं आती थी तो वो डिलीवरी के समय मुझे साथ में ले गया था कि चलो... शो रूम से हमलोग गाड़ी लेकर आएंगे.


चूँकि.. हमलोगों को काफी पहले से ही गाड़ी थी (पापा ने काफी पहले फिएट रख रखी थी) तो मैं शुरू से ही गाड़ी चलाना जानता हूँ..

बस यूँ समझ लें.. जन्म लेते ही पैर पर खड़े हो गए थे.


खैर... गाड़ी-वाड़ी तो आ गई और सबको ले जाकर नजदीकी मंदिर में गाड़ी का पूजा पाठ भी करवा दिए.


उसके बाद.. बात आई गाड़ी की ड्राइविंग सीखने की.


तो, मैंने पहले फुरसत में ही हाथ खड़ा कर दिया कि भाई ये ड्राइविंग सिखाना मेरे बस का नहीं है क्योंकि मेरे लिए उतना समय निकाल पाना संभव नहीं है.


और, उसे वहीं मारुति शो रूम में गाड़ी की ड्राइविंग सीखने को भेज दिया (वो शो रूम ड्राइविंग भी सिखाता है).


वहीं.. पहली बार मुझे ये पता चला कि आजकल ड्राइविंग स्कूल भी इतने हाईटेक हो गए हैं कि पहले वे शो रूम में ही कम्प्यूटर पर ड्राइविंग सिखाते हैं (जैसे कि कम्प्यूटर पर पायलट की ट्रेनिंग होती है)

और, जब लोग कम्प्यूटर पर ड्राइविंग में एक्सपर्ट हो जाते हैं तो फिर उन्हें ओरिनल कार से प्रैक्टिस करवाई जाती है.


खैर... फीस वीस भरने के बाद ड्राइविंग स्कूल में एडमिशन हो गया और वहाँ से लौटते समय स्कूल वालों ने ड्राइविंग से संबंधित दो किताब पकड़ा दिया.


उन किताबों में ड्राइविंग के तरीके..

गियर , स्टेरिंग पकड़ने के तरीकों के अलावा... हाईवे पर दिखने वाले सिग्नल, लाइट्स, सड़क पर लगे निशान के मतलब आदि बताए गए थे.


साथ ही साथ उसमें सेफ ड्राइविंग के तरीके भी बताए गए थे.


जिसमें... सबसे खास था... ओवरटेक करने के तरीके... जो लॉजिकल होने के कारण मुझे बहुत जंचा..!!


उसमें बताया गया था कि... चाहे आप कितने भी एक्सपर्ट ड्राइवर हों लेकिन भारी वाहनों यथा.. ट्रक/ बस/ लॉन्ग वेहिकल को ओवरटेक करते समय और उससे पास लेते समय अतिरिक्त सावधानी बरतें.



चाहे.. आपको कितनी भी हड़बड़ी क्यों न हो...

लेकिन, अगर आपसे आगे वाला भारी वाहन (गाड़ी) आपको पास नहीं दे रहा हो तो जबरदस्ती उससे आगे निकलने की कोशिश भूल से भी न करें.. 

क्योंकि, ये जानलेवा हो सकता है और दुर्घटना का कारण बन सकता है.


क्योंकि, आपसे आगे के भारी वाहन का ड्राइवर वो देख पाने में सक्षम है जो कि अपने आगे एक बड़े वाहन के होने के कारण आप नहीं देख पा रहे हैं.


ऐसे में अगर अपने से आगे के भारी वाहन के बिना पास दिए आप जबर्दस्ती उससे आगे निकलने की कोशिश करेंगे तो... हो सकता है कि सामने से आ रही गाड़ी से आपकी टक्कर हो जाये..


या फिर... आगे के खराब सड़क के कारण आपकी गाड़ी जम्प कर जाए एवं आप दुर्घटनाग्रस्त हो जाएं.


और... मेरे ख्याल से ओवरटेक करने का ये तरीका जितना गाड़ी के मामले में कारगर है उतना ही देश/ समाज एवं हमारे हिन्दू समुदाय के मामले में भी कारगर है.


आज हमारा हिनू समाज... एक स्पोर्टज़ कार के ड्राइविंग सीट पर बैठा है और अपने आगे-आगे चल रहे बड़े बस के ड्राइवर मोई के धीरे चलने पर झुंझला रहा है एवं उसे गालियाँ दे रहा है.


तथा... लगातार हॉर्न बजाते हुए उसे तेज चलने को कह रहा है.. 

अथवा, उसे बायपास करने पर उतारू है.


लेकिन, मुसीबत ये है कि... अपने स्टाइलिश लुक वाले स्पोर्टज़ कार के ड्राइविंग सीट पर बैठा हिनू समुदाय... वो नहीं देख पा रहा है जो आगे-आगे चल रहे बड़े बस का ड्राइवर मोई देख पा रहा है.


क्योंकि, बड़े बस के ऊंची ड्राइविंग सीट पर बैठे होने के कारण मोई की विजिबिलटी काफी अच्छी है और वो सड़क के दूर तक देख पा रहा है कि आगे सड़क की एवं ट्रैफिक की क्या हालत है.


इसके अलावा... वॉल्वो बस का ड्राइवर होने के नाते उनके पास रास्ते में आ सकने वाले किसी भी अनजान समस्या से निपटने के उनकी गाड़ी में GPS से लेकर विभिन्न चैनलों वाले FM रेडियो भी मौजूद हैं जो उन्हें रास्ते में घटित हो रही हर घटना के बारे में पल पल की जानकारी दे रहे हैं.  


इतनी सावधानी के बाद भी अगर कुछ अप्रिय स्थिति उत्पन्न होती है तो फिर उस स्थिति से भी निपटने के लिए.. 

ड्राइवर मोई के पास शाह टाइप के एक्सपर्ट को-ड्राइवर, जय शंकर जैसे... इस इलाके के भौगोलिक नक्शे के जानकार एवं डोवाल जैसे हथियार बंद गार्ड भी मौजूद हैं.


और तो और.... आगे आगे चल रहे उस वॉल्वो बस का ड्राइवर मोई खुद भी काफी दिन तक एक प्रतिष्ठित ड्राइविंग स्कूल का फुल टाइम ट्रेनर भी रह चुका है.


इसीलिए... मेरा तो मानना है कि जब इतना एक्सपर्ट ड्राइवर न तो तेज चल रहा है और न ही पास दे रहा है..


तो, पीछे के स्पोर्टज़ कार को थोड़ा धैर्य रखना चाहिए...


क्योंकि... नियम के विरुद्ध जबरदस्ती ओवरटेक करने से दुर्घटना हो सकती है और जान भी जा सकती है.


जैसा कि,  हम कुछेक जोशीले ड्राइवर जेलेन्स्की और शेख हसीना आदि के जोश का नतीजा अपनी आँखों से देख ही रहे हैं.


इसीलिए, ऐसी स्थिति में बिना सड़क की स्थिति जांचे.... शाहीन बाग, खिसान आंदोलन, मौलाना साद टाइप के रोड ब्रेकर पर फुल स्पीड पर गाड़ी चढ़ा देने का वकालत करनेवाले सलाहकार मुझे वॉल्वो गाड़ी एवं उसके पैसेन्जर के दोस्त कम और दुश्मन ज्यादा नजर आते हैं...

जो शायद दिल से ये चाहते ही नहीं हैं कि गाड़ी कभी डेस्टिनेशन तक पहुंचे..!


या फिर, अपने एडवेंचर की लालच में वे खुद भी जाएंगे और गाड़ी के बाकी निर्दोष पैसेंजरों को भी ले जाएंगे.


क्योंकि, ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि.... हमारा ड्राइवर बेहद एक्सपर्ट है और वो अगर गाड़ी धीरे चला रहा है तो सड़क की हालत देखते हुए निश्चय ही ये अच्छी तरह-समझकर लिया निर्णय है.


और, मैं इस बारे में आश्वस्त हूँ कि जैसे ही वॉल्वो ड्राइवर को अच्छी सड़क मिलेगी वो खुद ही गाड़ी को टॉप गियर में डाल देगा..


कारण कि... उसे आपसे ज्यादा हड़बड़ी है उसके पैसेंजर को डेस्टिनेशन पर पहुंचाने की.


जय महाकाल...!!!


ऐसे और पोस्ट देखने के लिए 

Follow 

बहुत भयानक आहट सुनाई दे रही है देश में ?

 बहुत भयानक आहट सुनाई दे रही है देश में ?

और हमारे विपक्षी दलों के नेताओं ने यह बात कहनी भी शुरू कर दी है कि हमने केरोसिन छिड़क दिया है सिर्फ आग लगानी बाकी है


क्या आप ने सुनी ?


👉पूरे देश में सभी रेलवे लाइनों के दोनों ओर बांग्लादेशी जिहादी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं ने झुग्गियां बना ली हैं।


👉हर स्टेशन पर सौ मीटर के अंदर मस्जिद-मजार ज़रूर मिल जाएगी।एक ही झटके में और एक ही कॉल पर पूरे भारत का रेलवे नेटवर्क जाम कर देने की स्थिति में वे आ चुके हैं।


👉सभी स्टेशनों, प्लेटफॉर्म्स, रेलवे लाइनों के आस पास बनी अवैध मजारों में संदिग्ध किस्म के लोग दिन रात मंडराते रहते हैं और रेकी करते रहते हैं...??


👉उनकी गठरियों में क्या सामान बिना टिकट देश भर में फैलाया जा रहा है, कोई चेक नहीं करता।


👉मज़ारों-मस्जिदों में किस तरह के गोदाम और काम चल रहे हैं, इससे प्रशासन आँखें बंद किये है।


👉हमारे शहरों में जितने हाईवे निकलते हैं। किसी पर भी बढ़ जाइये, तो हर तीन चार किलोमीटर पर एक नई मजार बनी मिल जाएगी बिल्कुल रोड पर।


👉अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि कुछ तो षड़यंत्र चल रहा है। यदि पूरे देश में हालात यही हैं तो कितनी खतरनाक स्थिति है आप स्वयं समझ सकते हैं....


👉देश की राजधानी दिल्ली को जिहादियों ने लगभग चारों तरफ से घेर लिया है बल्कि दिल्ली के भीतर नई दिल्ली, जहां हमारी केन्द्र सरकार रहती है उसे भी पूरी तरह से घेर लिया है। हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से देवबंद तक तो जमात का गढ़ ही हो गया है..


👉जब भी कभी हालात बिगड़े तो राजधानी पूरी तरह से जाम मिलेगी, रेलवे लाइनें जाम मिलेंगी, हाईवेज जाम मिलेंगे। आपको भागने का मौका कहीं नहीं मिलेगा।


👉ट्रेने उड़ा दी जाएं सड़कों पर चक्का जाम कर दिया जाए तो न आप तक मदद आ पाएगी, न आप कहीं भाग पाएंगे...


👉सोचिए तब इस अशांतिप्रिय समुदाय के देश के भीतर फैले देशद्रोही क्या हालत करेंगे आप सोच भी नहीं सकते....??


👉कैसे एक आवाज पर सड़कें रोकी जानी है, पुलिस चौकियों, सुरक्षा बलों पर हमले होने हैं, इसकी रिहर्सल शाहीन बाग और दिल्ली दंगों में की जा चुकी है।


👉कौन कहाँ से कमांड करेगा, हर शहर में कौन कहाँ से लीड लेगा, कौन कहाँ फॉलो करेगा, कैसे मैसेज पास होंगे, कैसे गजवाए हिंद अमलीजामा पहनेगा....तैयारी पूरी दिखती है।


👉इंतजार है तो शायद सिर्फ पाकिस्तानी और बाँग्लादेशी आर्मी के ग्रीन सिग्नल और तालिबानी लड़ाकों का।


👉साथ ही निजामे मुस्तफा में सारे तकनीकी काम सुचारू रूप से चलाने में दक्षता प्राप्त करने का इसीलिये बच्चों को शिक्षा दिलाने में अचानक इनकी रुचि बढ़ गयी है।


👉साथ ही हिजाब-नकाब-हलाल दुकानों, और शहर के उन हिस्सों में भी, जहाँ इनकी आबादी नहीं है!


👉सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, मेरठ, अलीगढ़, गाजियाबाद, मेवात, अलवर, गुड़गांव चारों तरफ से दिल्ली तालिबानी मानसिकता से घिर चुकी है....??


👉याद रहे अशांतिप्रिय मजहब का प्रत्येक व्यक्ति ना केवल घातक हथियारों से लैस है बल्कि मार काट में भी पूर्णतः निपुण है, और हैवानियत को शेरदिली और दयाभाव को बुज़दिली और कमजोरी तथा छल कपट करना, घात लगाकर हमला करना इनकी परवरिश है।


👉सोचिए विभिन्न राजनीतिक दलों के जाति के नाम पर बांटने वाले नेता, क्या हमें, हमारे परिवारों को इन देशद्रोहियों के हाथों से बचा पाएंगे?


👉हमें छोड़िये, क्या खुद को बचा पाएंगे?


👉और अपने सेकुलर खोटे सिक्कों वामपंथियों, बीचवालों, मोमबत्ती गैंग, पुरस्कार वापसी गैंग, कांग्रेसियों, आपियों, पापियों, अखिलेश, ममता, ओवैसी और योगी-मोदी के विरोध में खतना करने को तैयार लिबरल इत्यादि का खतरा अलग से है।


👉बहुत ही खतरनाक कोढ़ इस देश में फैल चुका है और देश को गलाने लगा है... इसका इलाज समाज को जातियों में तोड़ने वाले नेताओं के पास तो बिलकुल भी नहीं है, जबकि यह पिछली सरकारों के अंधेपन और अदूरदर्शिता के कारण हुआ है, एक दिन में नहीं.. ये नासूर सत्तर सालों में बना है।


लेकिन उससे भी पहले, अपनी सुरक्षा आपकी अपनी भी जिम्मेदारी है,कायर न बनिये,तैयार रहिये।


👉 इनके एक एक परिवार में आठ आठ दस दस बच्चे हैं अगर एक दो मर भी गए तो इन्हें फर्क नहीं पड़ता लेकिन आपके घर में 1या दो बच्चे हैं अगर निकल गए तो  सारा जोड़ा हुआ क्या करोगे। घर, दुकान, फैक्ट्री, जमा पूंजी सब इनकी हो जायेगी। 


एक बार पढ़ें और सोचे जरूर। 


👉इसलिए इसे देश, धर्म-संस्कृति, समाज, घर-परिवार की सुरक्षा हेतु संगठित होना आरंभ करें हो सके तो अपना एक अलग अर्थतंत्र बनाएं और मलेच्छो को किसी भी प्रकार से आर्थिक सक्षम होने में मदद ना पहुंचने दें। एवं लेख को अधिक से अधिक संख्या में आगे बढ़ाये राम राम रहेगी।


Saturday, October 5, 2024

एक राजा की बेटी की शादी होनी थी। बेटी की यह शर्त

 *एक राजा की बेटी की शादी होनी थी। बेटी की यह शर्त थी कि जो भी 20 तक की गिनती सुनाएगा, वही राजकुमारी का पति बनेगा। गिनती ऐसी होनी चाहिए जिसमें सारा संसार समा जाए। जो यह गिनती नहीं सुना सकेगा, उसे 20 कोड़े खाने पड़ेंगे। यह शर्त केवल राजाओं के लिए ही थी।*


अब एक तरफ राजकुमारी का वरण और दूसरी तरफ कोड़े! एक-एक करके राजा-महाराजा आए। राजा ने दावत का आयोजन भी किया। मिठाई और विभिन्न पकवान तैयार किए गए। *पहले सभी दावत का आनंद लेते हैं, फिर सभा में राजकुमारी का स्वयंवर शुरू होता है*।


एक से बढ़कर एक राजा-महाराजा आते हैं। सभी गिनती सुनाते हैं, जो उन्होंने पढ़ी हुई थी, लेकिन कोई भी ऐसी गिनती नहीं सुना पाया जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके।


*अब जो भी आता, कोड़े खाकर चला जाता। कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए। उनका कहना था कि गिनती तो गिनती होती है, #राजकुमारी पागल हो गई है। यह केवल हम सबको पिटवा कर मज़े लूट रही है।*


यह सब नज़ारा देखकर एक हलवाई हंसने लगा। वह कहता है, *"डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक की गिनती नहीं आती!"*


यह सुनकर सभी राजा उसे दंड देने के लिए कहने लगे। राजा ने उससे पूछा, *"क्या तुम गिनती जानते हो ? यदि जानते हो तो सुनाओ।"*


*हलवाई कहता है, "हे राजन, यदि मैंने गिनती सुनाई तो क्या #राजकुमारी मुझसे शादी करेगी? क्योंकि मैं आपके बराबर नहीं हूँ, और यह स्वयंवर भी केवल राजाओं के लिए है। तो गिनती सुनाने से मुझे क्या फायदा?"*


*पास खड़ी राजकुमारी बोलती है, "ठीक है, यदि तुम गिनती सुना सको तो मैं तुमसे शादी करूँगी। और यदि नहीं सुना सके तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा।"*


सब देख रहे थे कि आज तो हलवाई की मौत तय है। हलवाई को गिनती बोलने के लिए कहा गया।


*राजा की आज्ञा लेकर हलवाई ने गिनती शुरू की:*


"एक भगवान,  

दो पक्ष,  

तीन लोक,  

चार युग,  

पांच पांडव,  

छह शास्त्र,  

सात वार,  

आठ खंड,  

नौ ग्रह,  

दस दिशा,  

ग्यारह रुद्र,  

बारह महीने,  

तेरह रत्न,  

चौदह विद्या,  

पन्द्रह तिथि,  

सोलह श्राद्ध,  

सत्रह वनस्पति,  

अठारह पुराण,  

उन्नीसवीं तुम और  

बीसवां मैं…"


*सब लोग हक्के-बक्के रह गए। #राजकुमारी हलवाई से शादी कर लेती है! इस गिनती में संसार की सारी वस्तुएं मौजूद हैं। यहाँ #शिक्षा से बड़ा तजुर्बा है।*

#उनकी_और_हमारी_ताकत_की_तुलना

 #उनकी_और_हमारी_ताकत_की_तुलना


पिछले बीस वर्षों में हिंदू वर्ग ने व्हाइट कॉलर जॉब्स की चाहत में पारंपरिक ब्लू कॉलर जॉब्स छोड़ दिये जिनपर मुस्लिमों ने क्रमशः कब्जा कर लिया। 


ऑटोमोबाइल रिपेयरिंग,

इलेक्ट्रिक एंड इलेक्ट्रॉनिक रिपेयरिंग,

सैलून्स एंड हेयर ड्रेसर्स,

चमड़ा इंडस्ट्री, 

सब्जी व फल मंडी,

मुंबई की सिनेमा इंडस्ट्री। 


इनपर उनका 75% से ज्यादा एकाधिकार है। 


इसके अलावा जिम, डांस, मेंहदी, चूड़ी जैसे कामों से लेकर ढाबा इंडस्ट्री तक में उनकी दखल बढ़ती जा रही है। 


सिस्टम में एप्रोच का लाभ उठाकर अब वह मेडीकल से लेकर प्रशासनिक सेवाओं में भी घुसपैठ बढ़ाते जा रहे हैं। 


हद तो यह हो गई है कि अब उनके संस्थान संस्कृत का प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि वैभवशाली मंदिरों में पुजारियों के जॉब्स हथिया सकें। 


उधर हिन्दू बौद्धिक कार्यों वाले व्हाइट कॉलर जॉब्स जिसमें मूलतः कम्प्यूटर और सर्विस सैक्टर में एकाधिकार है। 


लेकिन खतरा आने वाले कुछ सालों में सामने आने वाला है जब AI विश्लेषण व गणना आधारित सर्विस सैक्टर में घुसेगी और हिंदू युवक भारी संख्या में बेरोजगार होंगे। 


केवल तीन ऐसे क्षेत्र हैं जहां अभी भी हिंदू लाभ की स्थिति में हैं--


1)कृषि: जिसके माध्यम से भोजन पर हिंदुओं का अधिकार बना रहेगा। भारत की ओबीसी व दलित जातियों के माध्यम से हिन्दुओं को आगामी संघर्ष में भोजन की कमी नहीं रहेगी बशर्ते ओबीसी व दलित हिंदुत्व की मुख्य धारा में बने रहे तो। अगर भीम-मीम गठबंधन आगे बढ़ा तो गांवों में मुस्लिम निर्णायक बढ़त ले लेंगे। 


दुर्भाग्य से भारत के अन्न व सब्जी भंडार उत्तरप्रदेश व बिहार में बहुसंख्यक अहीर यादव व भारी संख्या में दलित अपनी 'जातीय घृणा' में अन्य हिन्दू भाइयों की बजाय मुस्लिमों से गठबंधन किये हुए हैं। 


2)सेना: जिसके माध्यम से टेक्नोलॉजी व बल हिंदुओं के पक्ष में होंगे। अग्निवीर योजना ने हिंदुओं के इस पक्ष को और सशक्त करना शुरू कर दिया है। इस बात को सभी हिन्दू समझे हों, न समझे हों लेकिन मुस्लिम समझ चुके हैं और वह यह भी जानते हैं कि सेना स्व.जनरल रावत के 'ढाई मोर्चा डॉक्ट्रीन' को फॉलो करती रहेगी जब तक कि केंद्रीय शासन की बागडोर कॉंग्रेस या कांग्रेसनीत गठबंधन के हाथों में न आ जायेगी। इसीलिये उन्होंने समय की प्रतीक्षा न करते हुये अपने संगठन 'पॉपुलर फ्रंट' को सैन्य प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है और एक लाख भली प्रकाश सशस्त्र लड़ाके तैयार कर चुके हैं व दिनोंदिन यह संख्या बढ़ती जा रही है। 


लेकिन राजपूत, जाट, गुर्जर, मराठा,  नागाओं जैसी युयुत्सु जातियों के चलते सेना में उनकी उपस्थिति मायने नहीं रखती लेकिन दुर्भाग्य सेना से बाहर सामाजिक जीवन में अधिकतर जातियां आपस में  घृणा  करती हैं विशेषतः जाट व गुर्जरों में  राजपूतों के प्रति जातीय वैमनस्य है। 


3)व्यापार:- अन्य क्षेत्रों के विपरीत बनियों ने इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखा है और उनकी असन्दिग्ध निष्ठा मुस्लिम प्रभुत्व वाले युग में भी हिंदुत्व के प्रति रही और वे सदैव कभी गुपचुप तो कभी प्रत्यक्ष रूप से हिंदू शक्तियों को धन प्रदान करते रहे। 


तो यह है आज का शक्ति संतुलन। 


और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो मुस्लिम अब अगला निशाना गांवों को बनाएंगे ताकि गांवों की कृषि भूमि पर कब्जा कर आगामी संघर्ष में मुस्लिम पक्ष को 'खाद्य सुरक्षा' उपलब्ध करा सकें। 


इस रणनीति के तहत उन्होंने न केवल उत्तरपूर्व बल्कि उत्तराखंड में चीन से सटे इलाकों में कब्जा करना शुरू किया है बल्कि वक्फ बोर्ड के माध्यम से गांवों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है जिससे उन्हें दो फायदे हैं --


1)आगामी संघर्ष में उत्तरपूर्व से लेकर कश्मीर तक चीन से सैन्य सहायता  हेतु एक 'संपर्क रेखा' बनाना। 


2) हिंदुओं को गांवों से शहर की ओर धकेलकर न केवल कृषि पर कब्जा करना बल्कि शहरों पर दवाब बढ़ाकर हिंदू जातियों में 'आंतरिक विग्रह' करवाना। 

आपको क्या लगता है 'जाति गणना और आय के वितरण' की योजना पप्पू जैसे गोबर दिमाग की उपज है? 


मुस्लिमों की इन योजनाओं में बस एक ही बाधा है कि केन्द्र में उनकी समर्थक कांग्रेस सरकार नहीं है। 


चाहे जैसी भी हो लेकिन गैर कांग्रेस सरकार के कारण मुस्लिम अपनी योजनाओं को वैसी गति से नहीं चला पा रहे हैं जो 'गजवा ए हिंद' के लिए जरूरी है। 


वैसे इस बार वे लगभग सफल हो ही गये थे लेकिन फिर भी अभी कांग्रेस के केंद्र में  न होने से वह खुलकर खेलने से हिचक रहे हैं अतः रह-रह कर सरकार के इरादों व इच्छाशक्ति को कोंचते रहते हैं क्योंकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि यह समय दोंनों पक्षों के लिए निर्णायक है। 


फिलहाल अंतरराष्ट्रीय शक्तियां व नैरेटिव बिल्डर्स की फौज उनके पक्ष में है और 

उन्हें इंतजार है तो बस सरकार बदलने का।


🖋️━━━━✧👁️✧━━━ 🔗

    Follow

साभार एक विमर्श.... यूं तो #भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है

 साभार एक विमर्श.... यूं तो #भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है।लेकिन आज #योग और #आयुर्वेद पर चर्चा कर रहे हैं।ऐसे माहौल में जब #एलोपैथी ने ...