#उनकी_और_हमारी_ताकत_की_तुलना
पिछले बीस वर्षों में हिंदू वर्ग ने व्हाइट कॉलर जॉब्स की चाहत में पारंपरिक ब्लू कॉलर जॉब्स छोड़ दिये जिनपर मुस्लिमों ने क्रमशः कब्जा कर लिया।
ऑटोमोबाइल रिपेयरिंग,
इलेक्ट्रिक एंड इलेक्ट्रॉनिक रिपेयरिंग,
सैलून्स एंड हेयर ड्रेसर्स,
चमड़ा इंडस्ट्री,
सब्जी व फल मंडी,
मुंबई की सिनेमा इंडस्ट्री।
इनपर उनका 75% से ज्यादा एकाधिकार है।
इसके अलावा जिम, डांस, मेंहदी, चूड़ी जैसे कामों से लेकर ढाबा इंडस्ट्री तक में उनकी दखल बढ़ती जा रही है।
सिस्टम में एप्रोच का लाभ उठाकर अब वह मेडीकल से लेकर प्रशासनिक सेवाओं में भी घुसपैठ बढ़ाते जा रहे हैं।
हद तो यह हो गई है कि अब उनके संस्थान संस्कृत का प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि वैभवशाली मंदिरों में पुजारियों के जॉब्स हथिया सकें।
उधर हिन्दू बौद्धिक कार्यों वाले व्हाइट कॉलर जॉब्स जिसमें मूलतः कम्प्यूटर और सर्विस सैक्टर में एकाधिकार है।
लेकिन खतरा आने वाले कुछ सालों में सामने आने वाला है जब AI विश्लेषण व गणना आधारित सर्विस सैक्टर में घुसेगी और हिंदू युवक भारी संख्या में बेरोजगार होंगे।
केवल तीन ऐसे क्षेत्र हैं जहां अभी भी हिंदू लाभ की स्थिति में हैं--
1)कृषि: जिसके माध्यम से भोजन पर हिंदुओं का अधिकार बना रहेगा। भारत की ओबीसी व दलित जातियों के माध्यम से हिन्दुओं को आगामी संघर्ष में भोजन की कमी नहीं रहेगी बशर्ते ओबीसी व दलित हिंदुत्व की मुख्य धारा में बने रहे तो। अगर भीम-मीम गठबंधन आगे बढ़ा तो गांवों में मुस्लिम निर्णायक बढ़त ले लेंगे।
दुर्भाग्य से भारत के अन्न व सब्जी भंडार उत्तरप्रदेश व बिहार में बहुसंख्यक अहीर यादव व भारी संख्या में दलित अपनी 'जातीय घृणा' में अन्य हिन्दू भाइयों की बजाय मुस्लिमों से गठबंधन किये हुए हैं।
2)सेना: जिसके माध्यम से टेक्नोलॉजी व बल हिंदुओं के पक्ष में होंगे। अग्निवीर योजना ने हिंदुओं के इस पक्ष को और सशक्त करना शुरू कर दिया है। इस बात को सभी हिन्दू समझे हों, न समझे हों लेकिन मुस्लिम समझ चुके हैं और वह यह भी जानते हैं कि सेना स्व.जनरल रावत के 'ढाई मोर्चा डॉक्ट्रीन' को फॉलो करती रहेगी जब तक कि केंद्रीय शासन की बागडोर कॉंग्रेस या कांग्रेसनीत गठबंधन के हाथों में न आ जायेगी। इसीलिये उन्होंने समय की प्रतीक्षा न करते हुये अपने संगठन 'पॉपुलर फ्रंट' को सैन्य प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है और एक लाख भली प्रकाश सशस्त्र लड़ाके तैयार कर चुके हैं व दिनोंदिन यह संख्या बढ़ती जा रही है।
लेकिन राजपूत, जाट, गुर्जर, मराठा, नागाओं जैसी युयुत्सु जातियों के चलते सेना में उनकी उपस्थिति मायने नहीं रखती लेकिन दुर्भाग्य सेना से बाहर सामाजिक जीवन में अधिकतर जातियां आपस में घृणा करती हैं विशेषतः जाट व गुर्जरों में राजपूतों के प्रति जातीय वैमनस्य है।
3)व्यापार:- अन्य क्षेत्रों के विपरीत बनियों ने इस क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखा है और उनकी असन्दिग्ध निष्ठा मुस्लिम प्रभुत्व वाले युग में भी हिंदुत्व के प्रति रही और वे सदैव कभी गुपचुप तो कभी प्रत्यक्ष रूप से हिंदू शक्तियों को धन प्रदान करते रहे।
तो यह है आज का शक्ति संतुलन।
और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो मुस्लिम अब अगला निशाना गांवों को बनाएंगे ताकि गांवों की कृषि भूमि पर कब्जा कर आगामी संघर्ष में मुस्लिम पक्ष को 'खाद्य सुरक्षा' उपलब्ध करा सकें।
इस रणनीति के तहत उन्होंने न केवल उत्तरपूर्व बल्कि उत्तराखंड में चीन से सटे इलाकों में कब्जा करना शुरू किया है बल्कि वक्फ बोर्ड के माध्यम से गांवों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है जिससे उन्हें दो फायदे हैं --
1)आगामी संघर्ष में उत्तरपूर्व से लेकर कश्मीर तक चीन से सैन्य सहायता हेतु एक 'संपर्क रेखा' बनाना।
2) हिंदुओं को गांवों से शहर की ओर धकेलकर न केवल कृषि पर कब्जा करना बल्कि शहरों पर दवाब बढ़ाकर हिंदू जातियों में 'आंतरिक विग्रह' करवाना।
आपको क्या लगता है 'जाति गणना और आय के वितरण' की योजना पप्पू जैसे गोबर दिमाग की उपज है?
मुस्लिमों की इन योजनाओं में बस एक ही बाधा है कि केन्द्र में उनकी समर्थक कांग्रेस सरकार नहीं है।
चाहे जैसी भी हो लेकिन गैर कांग्रेस सरकार के कारण मुस्लिम अपनी योजनाओं को वैसी गति से नहीं चला पा रहे हैं जो 'गजवा ए हिंद' के लिए जरूरी है।
वैसे इस बार वे लगभग सफल हो ही गये थे लेकिन फिर भी अभी कांग्रेस के केंद्र में न होने से वह खुलकर खेलने से हिचक रहे हैं अतः रह-रह कर सरकार के इरादों व इच्छाशक्ति को कोंचते रहते हैं क्योंकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि यह समय दोंनों पक्षों के लिए निर्णायक है।
फिलहाल अंतरराष्ट्रीय शक्तियां व नैरेटिव बिल्डर्स की फौज उनके पक्ष में है और
उन्हें इंतजार है तो बस सरकार बदलने का।
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