अगर खुद को इंसान कहते हो तो इमरजेंसी के लिए कांग्रेस सरकार द्वारा जारी किया गया माफीनामा दिखा सुरेंद्र राजपूत जी ?
अबे धूर्त जब तक इंदिरा गांधी जिंदा थी तब तक उन्होंने हर मंच
पर इमरजेंसी को जस्टिफाई करने उसे ठीक सही ठहरने की कोशिश किया
2017 में कांग्रेस का जरूर एक बयान आया था कि हम इमरजेंसी के लिए माफी मांग रहे हैं लेकिन सैकड़ो निर्दोष लोगों का कत्ल करके क्या सिर्फ माफी मांगने से कांग्रेस का गुनाह खत्म हो जाएगा ?
कांग्रेस ने 1975 में थोपे गए आपातकाल पर माफी 2017 में मांगी थी जब उसे लगा कि अब उसे माफी मांगनी ही पड़ेगी
आपातकाल के दौरान देश को पुलिस स्टेट बना दिया गया था करीब डेढ़ लाख हत्याएं पुलिस वालों ने की थी और पूरे भारत के तमाम विपक्षी दलों के नेताओं को सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया था और लाखों लोगों की जबरन नसबंदी की गई थी
1978 में यवतमाल की रैली में इंदिरा गांधी ने कहा था,
‘चारों ओर (पूरे देश में) अराजकता की स्थिति थी. यदि इसे जारी रहने दिया जाता तो जिस तरह की परिस्थितियां (मुक्ति संग्राम के दौरान) बांग्लादेश में पैदा हुई थीं उन्हें भारत में भी दोहराया जा सकता था.’
इसके साथ उन्होंने कहा था, ‘आपातकाल लगाने से ठीक पहले बहुत गंभीर स्थिति थी और देश के अस्तित्व को भी खतरा था. अलग-अलग राजनीतिक दलों द्वारा विरोध प्रदर्शन सड़कों पर पहुंच चुका था जिनकी सीधी टक्कर एक चुनी हुई सरकार से थी.’ इंदिरा गांधी ने आपातकाल को बीमारी का इलाज करने के लिए कड़वी दवा जैसा भी कहा था. हालांकि, वे इस पर सहमत थीं कि यह सुखद नहीं था. इसके आगे इंदिरा गांधी ने यह भी कहा था, ‘जनता हमारी गलतियों के लिए हमसे नाराज थी. हमने उसके जनादेश (1977 में कांग्रेस पार्टी की हार) को स्वीकार किया.’
यवतमाल की रैली से एक दिन पहले यानी 23 जनवरी, 1978 को इंदिरा गांधी ने महाराष्ट्र के ही नागपुर, वर्धा, चंद्रपुर और भंडारा में रैलियां की थीं. इनमें भी उन्होंन आपातकाल के फैसले को सही ठहराने की कोशिश की थी. उनका कहना था कि आपातकाल में कुछ कदम उठाए गए थे और इस दौरान कइयों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आपातकाल के दौरान कुछ हासिल नहीं हुआ.
इंदिरा गांधी का दावा था कि करीब दो साल के आपातकाल के दौरान औद्योगिक और कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हुई. साथ ही, देश समाजवाद की दिशा में भी आगे बढ़ा जो कुछ पूंजीवादी और सांप्रदायिक राजनीतिक दलों को पसंद नहीं आया.
इस तरह महाराष्ट्र की इन रैलियों में इंदिरा गांधी द्वारा कही गईं बातों से साफ दिखता है कि उन्होंने कांग्रेस के दावे के उलट सीधे तौर पर आपातकाल के लिए जनता से माफी नहीं मांगी थी. इसके बजाय पूर्व प्रधानमंत्री ने भारतीय लोकतंत्र के लिए कलंक माने जाने वाले इस फैसले को सही ठहराने की भरसक कोशिश की थी.
26 जनवरी, 1975 की सुबह आकाशवाणी पर उन्होंने आपातकाल की वजह देश में ‘आंतरिक अशांति’ बताई थी. इस बात पर वे बाद के दिनों में भी कायम दिखीं.
यानी इंदिरा गांधी जी ने आपातकाल को हमेशा सही ठहराने की कोशिश किया उन्होंने आपातकाल पर कभी माफी नहीं मांगा
इंदिरा गांधी के जमाने में टेलीविजन आ चुका था आज तक कांग्रेस ऐसा कोई वीडियो फुटेज तो छोड़िए ऑडियो क्लिप तक नहीं दिखा पाई जिसमें इंदिरा गांधी ने वीडियो फुटेज में या फिर ऑल इंडिया रेडियो पर माफी मांगी हो
इंदिरा गांधी के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ने भी कभी आपातकाल पर माफी नहीं मांगी उसके बाद मनमोहन सिंह सत्ता में रहे उन्होंने भी कभी आपातकाल पर माफी नहीं मांगी
लेकिन कांग्रेस ने आपातकाल पर माफी तक मांगी जब वह लंबे समय तक इस देश की सत्ता से बाहर हो गई और उसे लगा कि निकट भविष्य में वह कभी इस देश की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती
जहां तक मोदी जी की इमरजेंसी की बात है तो यह बात 52 से बढ़कर सीट 99 कैसे हो गई यदि इमरजेंसी थी तो
और अभी चंद्र जी ने पहले ही तो कह रहे थे कि देश की जनता ने मोदी जी को सबक सिखा दिया यदि इमरजेंसी होती तो सबक कैसे सिखाती है इसकी जनता क्योंकि इमरजेंसी में जनता की सुनी नहीं जाती है
मुझे भाजपा पर भी क्रोध आता है के भाजपा के सारे प्रवक्ता सारे नेता इस मामले पर बोलते क्यों नहीं है सबको सांप सूंघ जाता है यह नेगेटिव बनाते रहते हैं लेकिन वह इनका नेगेटिव तोड़ते नहीं है
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