बनिए यानी लाला और उनकी कैलकुलेशन।
मैरे एक "लाला" मित्र हैं। यूँ तो 12वीं तक ही पढ़े हैं लेकिन कैल्कुलेशन्स इतनी ज़बरदस्त हैं कि जिस गुणा भाग के लिये हम कैलकुलेटर उठाते हैं, वह ज़ुबानी ही कर डालते हैं।
धानमंडी मे आङत की दुकान है
थोङे समय पहले एक शाम हम दोनों साथ थे।
वीकेंड यानी शनिवार था।
दोपहर का भोजन करने का प्लान बराङ होटल में जाने का कार्यक्रम बना और उनकी गाड़ी में बैठे ही थे के सफेद कुर्ता पैजामा पहने एक हट्टा कट्टा नौजवान उनकी गाड़ी के सामने खड़ा दिखाई दिया।
"जय शनिदेव" कह कर नौजवान ने एक लोटा आगे कर दिया जिसमें कुछ सिक्के पड़े हुये थे।
लाला उसे देख कर मुस्कुराया।
गाड़ी का शीशा नीचे किया और बोले "और सुना भाई प्रकाश, धंधा कैसा चल रहा है"?
नौजवान ने लाला को देखा
"आपकी दया है सेठ जी" ......कह कर वह नौजवान आगे बढ़ गया।
मैं उत्सुक हो उठा।
मेरे सामने तो एक नौजवान था
जिसके हाथ में एक लोटा था
जिसमें कुछ सिक्के पड़े हुये थे और वह आस्था के नाम पर आते जाते व्यक्ति से भिक्षा मांग रहा था।
"धंधा कैसा चल रहा है ..... " इसका क्या धंधा है। इसकी कौनसी फैक्ट्री चल रही है, मैंने उत्सुकतावश लाला से पूछा।
"यही तो काम है। अबे इससे बढ़िया काम क्या होगा। 2 - 3 घँटे में यह इतना कमा लेता है जितना पूरे दिन दिहाड़ी मजदूरी कर के नहीं कमाता था। " लाला ने हंसते हुए जवाब दिया।
उत्सुकता अपनी चर्म सीमा पर थी।
"तुझे कैसे पता यह दिहाड़ी मजदूरी करता था ? " मैंने लाला से पूछा!
"अरे भाई मेरी फैक्ट्री में ही लंबरदार के साथ का काम करता था। दिन भर काम करता था और इज़्ज़त की दो रोटी कमा रहा था। अभी 6 महीने पहले ही इसे यह दूसरा बिज़नेस मॉडल मिल गया और इसने माल ढुलाई का काम छोड़ दिया" मित्र लाला ने जवाब दिया।
"भीख मांगना कौन सा बिज़नेस मॉडल है लाला"। मैंने खीझते हुये पूछा।
यह सवाल सुनते ही हमारे बनिये भाई का व्यापारी दिमाग जाग चुका था।
"एक बार को तू यह भूल जा कि यह आदमी क्या करता है। माल ढुलाई करता है या भीख मांगता है.... पैसा कैसे कमाता है यह भूल जा.... मने कमाई का सोर्स भूल जा.... इस बात पर ध्यान दे कि दिन भर में "कितना" पैसा इक्कठा करता है" लाला ने जवाब दिया।
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कह कर लाला ने थोड़ी दूर खड़े उस नौजवान को आवाज़ लगाई
"प्रकाश। बात सुन भाई"
प्रकाश भागा भागा आया।
मित्र ने एक कड़कता हुआ 10 रुपये का नोट जेब से निकाला और उसके हाथों में थमा दिया।
उसकी आंखें चमक उठीं।
एक ही सांस में .....उसने लाला और उसके पूरे परिवार को ना जाने कितनी दुआएं दे डालीं।
लाला ने बड़ी संजिदगी से उससे पूछा। "प्रकाश एक बात पूछूं तो ईमानदारी से जवाब देगा। दिन भर में कितना कमा लेता है ? "
कुछ देर सन्नाटा रहा और फिर नौजवान ने कहा "सेठ जी ... खर्चे लायक पैसा निकल जाता है"।
"खर्चा तो मजदूरी कर के भी निकल रहा था" ? लाला ने सवालिया निगाहों से देख कर पूछा !
कुछ देर फिर सन्नाटा रहा। कोई कुछ नहीं बोला और प्रकाश नज़रें चुराता दिखाई दिया।
"यही... ठीक... है सेठ जी " कहते हुए वह क्षण भी वहाँ नहीं रुका और आगे बढ़ गया।
मैं एकटक सारे घटनाक्रम को देख रहा था।
लाला ने सिगरेट सुलगाई। एक लंबा कश लगाया और भारी आवाज़ में बोला। "इस बिज़नेस मॉडल को 'मुफ़्तख़ोरी' कहते हैं।"
कैल्कुलेशन् के हिसाब से दिन भर मजदूरी करने से बेहतर इसे मुफ्त की कमाई ज़्यादा रास आ रही है।
लोग आस्था के नाम पर भीख देते हैं।
इसका दाना पानी चलता रहता है। अगर मैं इसकी मजदूरी के पैसे को दुगना भी कर दूं तब भी यह दोबारा काम पर नहीं लौटेगा।
इसे अब मुफ़्त के पैसे का 'स्वाद' लग चुका है। इसका मन अब मेहनत मजदूरी की कमाई की ओर कभी नहीं जायेगा। बैठे बिठाये जेब भर रही है तो कोई बावला ही होगा तो अपनी देह तोड़कर भारी भरकम माल उठा कर मेहनत की दो रोटी कमायेगा।"
खटाखट खटाखट .... हर महीने खटाखट .... बैंक में पैसा खटाखट।
इस #खटाखट शब्द ने हाशिये पर खड़ी कांग्रेस की सीटें दुगनी कर दी।
विशेषज्ञों ने भी पल भर में निष्कर्ष निकाल दिया की देश की जनता मुफ्तखोर है... कभी शराब .... मुफ्त बस यात्रा... कभी फ्री बिजली या पानी के नाम पर बिकती है।
मैने लाला को कहा :- परंतु अगर ऐसा है... तो मोदी को किसने वोट दिया?
अगर अधिकतर मुफ्तखोर हैं ... बिकाऊ हैं... तो राहुल बाबा को खटाखट 400 पार हो जाना चाहिए था।
तब लाला ने कहा :- मुफ्तखोरों की कमीं नहीं है... लेकिन जिस बाजार और धान मंडी मे प्रकाश ... शनिदेव के नाम पर सिक्के इक्कठे कर रहा होता है... उसी बाजार और धान मंडी मे एक मजदूर पत्थर तोड़ कर आजीविका कमा रहा होता है।
उसी बाजार मे पेड़ के तले नाई की कुर्सी दिखाई देती है, जो उसकी दाल रोटी का श्रोत है।
बगल में ज्यूस की रेहड़ी पर खड़ा एक नवयुवक आजीविका कमाता दिखाई देता है।
उसके बगल में बैक के आगे मुस्तैद खड़ा गार्ड ईमान की रोटी कमाता दिखाई देता है।
खटाखट ईमान बेच कर मुफ्त की खाने वालों की कमी नहीं है.... मान लिया कि नहीं है।
लेकिन हर आदमी का स्वाभिमान बिकाऊ नहीं है।
इसलिए सदन में बहुमत आज भी उन नागरिकों के दम पर है ... जिनका #स्वाभिमान_जीवित_है।
बहरहाल मुफ्त की योजनाएं इस देश को बर्बाद कर देगी
सोचा आपको है कि आप अपने बच्चों के हाथ में कटोरा देना चाहते हो या अच्छा घर और अच्छा देश
नोट :- अब शनि महाराज की आस्था के नाम पर सवाल मत उठाना क्योंकि
शनि महाराज वाले सिर्फ शनिवार को आते हैं लेकिन प्रकाश तो हफ्ते के सातों दिन डटा रहता है कभी धान मंडी में कभी बाजार में कभी तह बाजारी में तो कभी दुलमानी तक में चक्कर लगा आता है शनिवार को शनि महाराज वाला लोटा होता है बाकी 6 दिन वार के अनुसार हाथ वाली वस्तुएं बदलती रहती है

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