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Sunday, June 23, 2024

मोदी के किसी कन्याकुमारी में जाने से या मन्दिर

 मोदी के किसी कन्याकुमारी में जाने से या मन्दिर जाने से जो इन लुटियन दलालों को दर्द उठता है उसका कारण मोदी का उस हिंदुत्व अस्मिता को जिंदा करना है जिसका समूल नाश करने का षड्यंत्र हमेशा से चल रहा था।


दूसरो की बात क्या करना मैं अपनी ही बताऊं तो किसी प्लेन में बैठने की सोचनी हो या किसी मैकडोनाल्ड में घुसने की, सबसे पहले दिमाग मे आता था कि "यार इधर तो अंग्रेजी बोलनी होगी"

2014 से पहले यही माहौल बना हुआ था कि ये सोच होती थी कि "पढ़े लिखे" लोग तो अंग्रेजी में बोलते हैं, देखो प्रधानमंत्री भी बोलता है और फिल्मी भांड भी बस हिंदी में फ़िल्म भर बेचते हैं वरना क्या इंटरव्यू, क्या अवार्ड शो, क्या बिहाइंड द सीन और क्या कुछ.. हर जगह तो अंग्रेजी का बोलबाला है। यहां तक कि एक अंग्रेजी मीडियम में पढ़ा लिखा स्वतः ही सुपीरियर हो जाता था फिर साले को अंग्रेजी ठेले भर की आती हो और आप हिंदी मीडियम में वही सब पढ़कर उत्कृष्ठ अंकों से उत्तीर्ण हुए हों।


लेकिन इस मोदी ने सब बदल दिया। ये इधर तो लुटियन दलालों को इंटरव्यू देने के नाम पर भी हिंदी में साक्षात्कार देता है बल्कि विदेशों में भी हिंदी ही बोलता है, फिर भले ही इस गुजराती को ट्रम्प जैसा कहे कि मोदी को बढ़िया अंग्रेजी आती है लेकिन वो जानकर नही बोलता या यहां के चुइये उसे इस बात पर अनपढ़ कह "ट्रोल" करने की कोशिश करें कि इसे तो अंग्रेजी ही नही आती।

और यही भेदभाव कहो या हीनभावना, मोदी ने इस तरह भारतवासियों के अंदर की खत्म करी कि हिंदी न सिर्फ उस ट्विटर पर छा गयी जिसे "पढ़े लिखे" की भाषा कहते थे बल्कि अर्नब जैसे कथित अंग्रेजी पत्रकारों के हिंदी चैनलों को बनाने से लेकर कोई विदेशी भी जब कभी ट्वीट करते हैं तो हिंदी में भी ट्वीट किया करते हैं। शिकारी भैया जैसे "इलीट" भी तो अब हिंदी में बात किया करते हैं जो एक समय UN में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करने का संसद में विरोध किया करते थे।


और ये हिंदी भाषा जिसे संस्कृत के जैसे मृतप्राय बनाने के षड्यंत्र हुए वो न सिर्फ भारत माँ के माथे ही बिंदी भर नही थी जिसे आजकल की "प्रगतिशील" महिलाओं की बिंदी(और भी बहुत) की तरह उतरवाने का प्रयास हुआ था बल्कि ऐसे समझो कि जिस तरह अंग्रेजी जानते ही आप अंग्रेजियत की तरफ खिंचते चले जाते हैं उसी तरह हमारी हिंदी भी हमारे हिंदुत्व को बुलंद करती थी क्योंकि संस्कृत तो हमारे बीच से कबकी खत्म कर दी गयी।


और इसे समझना हो तो,

आज आप देखते हैं ना कि ये कूल डूड जो कूल बनते बनते वोकियापे का शिकार भी हो गए हैं, इनका आधार ही अंग्रेजी था और इसी तरह हिंदी भी है जो हमे हिंदुत्व की ओर ले जाती है जिसे देश के कोने कोने वाला समझ लेता ही है। 

इसके अलावा इन कूल जंतुओं का अंग्रेजी शिक्षा से शुरू हुआ ये कार्य आप इनके अंदर अंग्रेजी गाने सुनने, फिल्मों, लाइफ स्टाइल जिसमे पहनावा, भोजन, गालियां या कितना कुछ आता है, हर तरह से इनके भीतर बसता ही गया और ये लोग वोकिया बन बन अपने देश से ही नफरत करने लगे और बड़े गर्व से फक इंडिया, फक हिंदुत्व और न जाने क्या क्या करने लगे हैं।(किसी भाषा की ताकत है ये)

मैकाले ने इसी लिए तो अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लाई थी कि शरीर छोड़ कुछ भी हमारे अंदर हमारा न रहे और उसका लक्ष्य तो एक पीढ़ी भर में एक भी मूर्तिपूजक, बंगाल(इनका पहला कब्जाया भूभाग) में न रहे था जिस वजह से बंगाली ही आज भी सबसे ज्यादा भद्रलोक बने आपको हर जगह विचरण करते दिख जाएंगे। 

और यही कांग्रेस(भूरे अंग्रेजो) ने भी चलते रहने दिया तो ये कूल जंतु से शुरू हुआ पूरे देश मे आज वोकियों की शक्ल में पहुंच चुका है।


ये होती है एक भाषा की ताकत और मोदी इसे समझते थे तो उन्होंने न कभी भाषा से समझौता किया और न हमारे पहनावे, खानपान, संस्कृति से..... बल्कि उसे चौड़े होकर दुनिया मे प्रस्तुत किया है बगैर "लोग क्या बोलेंगे" की परवाह किये।


लिखने को तो बहुत कुछ है पर ये समझ लो कि अब जब भी इन लुटियन  या इनकी सोच वालों को भौंकते या किकियाते देखता हूँ तो हर बार दिल से मोदी जी को धन्यवाद ही निकलता है कि आपने आकर हिंदुत्व की वो अलख पुनः जला दी जिसके लिए दूसरे नरेंद्र(विवेकानंद) कहते थे कि "गर्व से कहो हम हिन्दू हैं"

और एक बात ये भी बताऊं कि किसी विदेशी शक्ति की मोदी के खिलाफ इसलिए भी नही चलती क्योंकि मोदी उन गांव कस्बों का दिल जीत चुका है जो इन विदेशी या देसी दलालों के "op-ed" नही पढा करता क्योंकि वो अंग्रेजी ही नही जानता जिस वजह से हमारा ये प्लस पॉइंट है कि इनकी गन्दी सोच कभी उस तक नही पहुंच पाती जिस वजह से फिर रविश, जर्मन पिल्ले जैसे "मसीहा" बना उन जगहों के लिए न सिर्फ हायर करने पड़ते हैं बल्कि उन्हें अपना मैग्सेसे और पैसा तक उनको देना पड़ता है कि उधर छोटे शहरों, कस्बों, गांवों(इंटरनेट इसमें एक बड़ी समस्या बन रहा है) में भी गन्द फैलाओ जहां अब तक हम नही पहुंच सके थे क्योंकि बड़े शहरों में तो इन्होंने हाल बुरा हर तरह से कर दिया है जिस वजह से वो लोग वोट देना जाने तक को भी पिछड़ा समझते हैं फिर भले ही 5 साल फिर देश को कोसते रहें।


चलो बहुत लिख दिया, पढ़ने के लिए धन्यवाद।




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