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Friday, June 21, 2024

*योग* पर सरल चिंतन

 *योग* पर सरल चिंतन:- 


*योग अर्थात् जुड़ना।*


१. *जुड़ेंगे कब ?*

 जब कहीं से छूटेंगे। किसी से छूटेंगे।


२. *कहा से/किससे छूटना है ?*

दुखों से। जन्म से। सकाम प्रवृत्ति से। दोषों से। मिथ्या ज्ञान से। अज्ञान से। अविद्या से।

जब उक्त से छूटेंगे, तभी तो निम्न से जुड़ेंगे।


३. *किससे जुड़ना है?*

सुख से। शांति से। आनंद से। विवेक ज्ञान से। वैराग्य भाव से। क्रियात्मक योग अभ्यास से। 


४. *कैसे जुड़ेंगे?*

अष्टांग योग से। 

यम नियम के पालन से। आसन में स्थिरता से।

प्राणायाम की प्रक्रिया से।

प्रत्याहार की अभ्यास से।

धारणा पूर्वक ध्यान से।

क्रियात्मक योग से। (तप - स्वाध्याय - ईश्वर प्राणिधान से)


५. *क्या  प्राप्त होगी?*

दुखों से मुक्ति।

शारीरिक स्वस्थता।

मानसिक प्रसन्नता।

बौद्धिक क्षमता।

कर्मों की कुशलता।

मन के विचारों पर निरोधता।

आत्मिक स्वरूपता।

परमात्मा के स्वरूप में मग्नता। अर्थात् 

*समाधि प्राप्ति।*


६. *कब सब प्राप्त होगा?*

जब साधक दीर्घ काल तक, निरंतर, श्रद्धा पूर्वक योग मार्ग का पथिक बनकर, पांच यम और पांच नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करते हुए, शुद्ध विवेक ज्ञान, शुद्ध निष्काम कर्म, शुद्ध निराकार ईश्वर की योगाभ्यास रीति से नित्य संध्या उपासना करेगा।


विशेष:- उक्त शब्दावली की व्याख्या पतंजलि ऋषि कृत *योग दर्शन* और उसके व्यास भाष्य आधारित करनी होगी।


अंत में योग की परिभाषा:- 

*योग: चित्तवृत्तिनिरोध:।*

(योग दर्शन १/२)

*योग: समाधि।*

(व्यास भाष्य)




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