*ईश्वर एक श्रद्धा है । उसका वास्तविक स्वरुप " सत - चित - आनंद " है*।
*ईश्वर संपूर्ण विश्व की सभी गतिविधियों के पीछे स्थित एक महोन्नत शक्ति है :- समूचे सृष्टि की संचालक शक्ति है, वह यदि न हो तो संपूर्ण ब्राह्मांड में कोई भी कार्य नहीं चल पाएगा, उतना ही क्यों , यदि वह नहीं है , या उसकी अनुमति न हो , तो तिनका भी नहीं हिल सकता* ।
" *तेन विना तृणमपि न चलति* "
*वह सर्वव्यापी , सर्वांतरयामी है । हमारे यहां उसके लिए " परब्रह्म " का स्थान दिया हुआ है । परम याने " अति उन्न्त " । वही समूचे विश्व का सृजनकर्ता - पालनकर्ता - लयकर्ता है । सकल चराचर वस्तुएँ उसी के अंश हैं, मनुष्य अपने परिशुद्द मन को जैसा लगता है , वैसा उस विशिष्ठ शक्ति को देख पाता है*।
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