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Wednesday, July 3, 2024

हिन्दू मैरिज एक्ट 1955

 हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 

तीन सौ सालों की राजशाही में अंग्रेजो ने देखा था कि जिस देश के पुरुष अपनी नारियों की रक्षा के लिए अपने शीश कटवाने से भी नहीं हिचकते और जिस देश की नारी अपने पुरुष की आन बान और शान के लिए खुद को अग्नि की लपटों में भी स्वाहा करने से नहीं डरती, उन सनातन धर्मी पुरुष और स्त्रियों के इस प्यार, बलिदान और त्याग के चलते भारत देश को कोई तोड़ नहीं पायेगा | भारतीय परिवार और समाज इसी प्रकार अक्षुणण रहेंगे और सनातन फलता फूलता रहेगा | अपने आराध्य शिव शंकर को अर्धनारीश्वर मानने वाले इसी समाज के शिव और पार्वती स्वरुप स्त्री और पुरुष के बीच नफरत की बड़ी खाई को पैदा किये बिना भारत को और सनातन धर्म को तोडना संभव नहीं था |


अंग्रेज समझ गये थे कि सनातन को नष्ट करना है तो भारतीय नारी और पुरुषों के बीच अहम् और नफरत की दरार खीचनी ही होगी और इन दोनों के ऊँचें चरित्र का हनन करना ही होगा|


अंग्रेजो को पश्चाताप हो रहा था अपनी ही तीन सौ वर्ष पुरानी नीति पर |


उनको पश्चाताप था कि तीन सौ साल पहले ही भारत को अपना गुलाम बनाने के बाद उन्होंने भारतीय हिन्दुओं को क्यूँ उनके "धर्मशास्त्र" कहे जाने वाले मनुस्मृति, नारदस्मृति, विष्णु स्मृति, याज्ञवलक्य स्मृति, प्रसारा स्मृति, अपस्थाम्बा के धर्मसूत्र, गौतम के धर्मसूत्र, गुरु वशिष्ठ के धर्मसूत्र, कल्प्सुत्रों, वेदों और वेदांगों के आधार पर अपने परिवार, समाज और वैवाहिक संबंधो की स्थापना करने देने का अधिकार यथावत रहने दिया! क्यूँ उसको उसी समय छिन्न-छिन्न नहीं कर दिया!


शायद पाठको को यहाँ बताना उचित होगा कि भारत में अपना वर्चस्व स्थापित करने के बाद अंग्रेजो के सामने यह एक बड़ा प्रश्न आया था कि भारतीय सनातनियों के समाज का सञ्चालन कैसे हो| भारत के मुस्लिम समाज का सञ्चालन कैसे हो| इनकी परिवार व्यवस्था कैसे तय की जाये और न्याय वयवस्था कैसी हो| सही मायनो में तो इन व्यवस्थाओं में अंग्रेज इंटरेस्टेड थे ही नहीं, उनको तो बस व्यापार करना था और अधिक से अधिक पैसा कमाना था| फिर भी समाज को चलाना भी तो था ही, कोर्ट कचहरी बनाकर अपने जज बैठाने तो थे - तो उस वक्त उन्होंने सोचा था कि जो जैसा है वैसे ही रहने दिया जाए और इस कार्य में ज्यादा माथा पच्ची और टाइम वेस्ट न किया जाये इसलिए उन्होंने पुरातन सनातनी समाज एवं परिवार व्यवस्थाओं को ज्यों का त्यों अपना लिया था| भारतीय सनातनी समाज के आधार "धर्मशास्त्र" में दी गयी व्यवस्थाओं को कानून मानकर अंग्रेजों ने उनको "हिन्दू लॉ" का नाम दिया और और मुसलमानों के लिए मुस्लिम तानाशाह औरंगजेब के समय में लिखे गये "फतवा-ए-आलमगीरी" को मुसलमानों के समाज का कानून मानकर "मुस्लिम पर्सनल लॉ" का नाम दिया गया और इन कानूनों को भारत में लागू कर दिया गया | उल्लेखनीय है कि पुरातन सनातनी समाज व्यवस्था को तो नेहरु के हिन्दू मैरिज एक्ट ने समाप्त कर दिया किन्तु मुसलमानों का के लिए वही "फतवा-ए-आलमगीरी" का शैतानी "मुस्लिम पर्सनल लॉ" देश में आज तक लागू है|


इस जहर बुझे हुए "फतवा-ए-आलमगीरी" और इसकी व्यवस्थाओ और धारणाओं पर चर्चा किसी अन्य लेख में विस्तार से करूँगा, किन्तु यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि यही वह "फतवा-ए-आलमगीरी" था जिसके अनुसार सच्चे मुसलामान के लिए गुलाम और काफ़िर औरतों (जो युद्ध में हार गये सनातनी हिन्दुओं की औरते ही होती थी) के साथ बलात्कार करना एक धार्मिक कृत्य कहा गया था (जिसका जिक्र आज भी कुछ मुस्लिम मुल्ले मौलवी पीर पैगम्बर अपने फतवों में यदा कदा करते रहते हैं)|


तो कहने का तात्पर्य है कि अंग्रेजों के लगभग तीस सौ साल की राजशाही के दौरान पुरातन भारतीय सनातनी समाज व्यवस्था 'हिन्दू लॉ' अर्थात "धर्मशास्त्रों" की अवधारणाओं और व्यवस्थाओं के अनुसार ही चलती रही थी किन्तु 1941 तक आते आते अंग्रेज समझ गये थे कि अगर हिन्दुस्तान को सही मायनो में पंगु बनाना है तो अंतिम प्रहार इसी पुरातन सनातनी पारिवारिक वयवस्था पर करना होगा| हानि इसी "धर्मशास्त्र" की करनी होगी, तभी सनातन धर्म की वास्तविक हानि हो सकेगी और भारत का मजबूत समाज सदा के लिए पंगु बन सकेगा...|


अंग्रेज समझ गये थे कि इन सनातनी हिन्दुओं के ऊँचे चरित्र का मूल कारण इसके धर्मशाश्त्र में वर्णित "आचार", "विचार" और "प्रायश्चित" जैसे महान तत्वों का इन हिन्दुओं के जीवन में समावेश था|


अंग्रेजो का अगला कदम इसी आचार, विचार और प्रायश्चित की भावना पर प्रहार करके इसको नष्ट करना था| हिन्दुओं की वैवाहिक व्यवस्थाओं को छिन्न भिन्न करना था| सनातन के स्त्री और पुरुष के अर्धनारीश्वर रूप को सदा के लिए विलग करके नष्ट कर देना था|


फिर क्या था अंग्रेजो की योजना का चौथा और अंतिम चरण "सनातनी धर्मशास्त्र सम्मत पारिवारिक व्यवस्था का पूर्ण विनाश" प्रारंभ हो गया|भारतीय इतिहास के इन लिखे-अधलिखे पन्नो पर सनातन धर्म का खून लगा हुआ है जो हर हिन्दू स्त्री पुरुष को अब महसूस करना ही होगा...!!


अंग्रेजों का यह चरण शुरू होता है 1941 में....


आजादी से भी लगभग छः वर्ष पूर्व सन 1941 में अंग्रेजों ने भारत के ही एक और महान सपूत मैकाले शिक्षा जनित अपने एक सिविल सर्वेंट "Sir" बी एन राव को पकड़ा और उससे कहा कि वह भारत के इन हिन्दुओं के लिए ऐसा कानून लिखे कि इनकी अर्धनारीश्वर की इस गौरवमयी प्रतिमा का गुरुर टूट जाये और यह प्रतिमा छिन्न छिन्न हो जाये| पुरुष और स्त्री एक दुसरे को पूरक नहीं प्रतिद्वंदी समझने लगें; इनकी स्त्रियाँ पतितपथ गामिनी, व्यभिचारिणी हो जाएँ और इनके पुरुष अपनी स्त्रियों की आन बान और शान के लिए सिर तो क्या सिर का एक बाल तक ना कटवाएं और सनातनी वैवाहिक व्यवस्था जो सात सात जन्मो तक वैवाहिक बन्धन की पवित्रता की बात करती है, एक जन्म भी इस बंधन को न निभा पाए| समाज में तलाक होने लगे, परिवार टूट जाए, परिवारों के बच्चे बिखर जाएँ, और स्त्री और पुरुष एक दुसरे को अपना दुश्मन समझने लगें|


देश के सुपुत बी एन राव अंग्रेजों के दिए हुए इस पवित्र कार्य में लग गये|


उन्होंने पाया कि इस महान किताब का पहला पाठ तो उनके जैसे ही मैकाले शिक्षा पुत्र देशमुख नाम के एक अन्य अंग्रेज भक्त 1937 में लिख ही चुके हैं| जिसको उन्होंने नाम दिया था Hindu Women's Rights to Property Act (Deshmukh Act 1937). इस एक्ट के द्वारा हिन्दू औरतों को पॉवर देने की बात कहकर भारतीय सनातनी परिवारों में पहली दरार तो खींची ही जा चुकी थी...!!


फिर क्या था, इसी पाठ को आगे बढ़ाते हुए मैकाले शिक्षा पुत्र बी एन राव ने इस किताब में अगला अध्याय जोड़ दिया कि हिन्दू पति पत्नी चाहें तो एक दुसरे से अलग अलग भी रह सकते हैं| इस अध्याय में प्रावधान दिया गया कि हिन्दू औरत और पुरुष जब चाहे कुछ कुछ कारण बताकर एक दुसरे से अलग अलग रहे और स्त्री अपने लिए पुरुष से मेंटेनेंस की मांग करे, जो उसको पुरुष से दिलवाया जायेगा|


इन सबको पता था कि पति से कारण-अकारण अलग रह कर पति से ही मेंटेनेंस लेकर अलग रह रही नारी और नारी से विलग हुआ विरही पुरुष अपने आप टूट जायेंगे, उनके बच्चे बिखर जायेंगे और भारत के आचार विचार तो क्या चरित्र तक का अपने आप हनन होता चला जायेगा...!! यही तो चाहते थे कुटिल अंग्रेज|


बी एन राव की यह किताब 1941 से 1947 तक लिखी जाती रही| और इस किताब का नाम दिया "हिन्दू कोड बिल"


वर्ष 1947 में इस कुटिल किताब में एक और कुटिल अध्याय जोड़ा गया "तलाक" के अधिकार का! और यही से सनातन धर्म के सात सात जन्मो के वैवाहिक बंधन के विचार को नष्ट करने का सबसे कुटिल अध्याय शुरू हो गया|


और फिर वर्ष 1947 में ही इस कुटिल किताब में एक अंतिम अध्याय जोडा गया जिसके प्रावधानों के अनुसार सनातन धर्म के मजबूत स्तम्भ "सयुंक्त परिवार" अर्थात जॉइंट फॅमिली एवं प्रॉपर्टी सिस्टम को ख़त्म करने का प्रावधान हिन्दुओं को दे दिए जाने की बात कही गयी|


इस अध्याय में कहा गया कि पिता की संपत्ति में पुत्र के साथ साथ पुत्री का भी अधिकार होगा| भारत की नारियों को इस प्रकार के प्रावधान बहुत लुभावने से लगने वाले थे, किन्तु इसी में तो अंग्रेजों की कुटिल नीति छिपी हुई थी..जो देश आज तक न समझ पाया.....!!


"हिन्दू कोड बिल" का आखिरी पन्ना 1947 में लिख कर तैयार हो गया|


कितना खास होगा वह पन्ना...!! शायद इसी पन्ने के इंतज़ार में अंग्रेज अब तक भारत से चिपके बैठे थे और जैसे ही 1947 में इस बिल का आखिरी पन्ना लिखा गया, अंग्रेजो ने देश को छोड़ने की घोषणा कर दी| और जाते जाते "हिन्दू कोड बिल" की यह कुटिल किताब अपने प्रिय, मैकाले शिक्षा पुत्र श्री जवाहर लाल नेहरु को देना नही भूले शायद इस आदेश के साथ, कि प्रधानमंत्री तुम बन जाओगे, वह हम पर छोड़ दो, किन्तु प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहला कार्य जो तुमको करना होगा वह होगा इस "हिन्दू कोड बिल" को पूरे भारत के हिन्दुओं पर लागू करना|


अंग्रेजों और नेहरु के बीच इसको लेकर और क्या क्या कुटिल समझौते हुए होंगे यह तो वो चार दीवारे ही जानती होंगी जिनमें बैठकर वें खूनी समझौते हुए, किन्तु इतिहास को तो सिर्फ वही पता होता है जो उसने स्वयं देखा, स्वयं पर झेला और स्वयं किसी के खून से लिखा| यह लेख इतिहास के उन्ही पन्नों पर सनातन धर्म के खून से लिखी -अधलिखी कहानी ही तो है....!!


हिन्दू कोड बिल नेहरु को दिया जा चुका था| कितने आश्चर्य की बात है कि औरंगजेबी "फतवा-ए-आलमगीरी" अर्थात "मुस्लिम पर्सनल लॉ" को लेकर अंग्रेजो ने भी कोई नया बिल नही लिखा था| शायद यह भी अंग्रेजों की कोई कुटिल नीति ही थी...जो अब आजादी के सत्तर साल बाद रंग दिखा रही है....ः।

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