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Wednesday, July 3, 2024

एक जुलाई से नए आपराधिक कानून लागू होने से क्या न्याय जल्दी मिलेगा ?

 एक जुलाई से नए आपराधिक कानून 

लागू होने से क्या न्याय जल्दी 

मिलेगा ?

जो प्रक्रिया पुलिस और ट्रायल 

courts के लिए बनाई गई है, 

वह हाई कोर्ट / सुप्रीम कोर्ट के 

भी होनी चाहिए “जवाबदेही”

के साथ -


भारत में अंग्रेज़ों के ज़माने से चल रहे डेढ़ सौ साल से भी पुराने आपराधिक और सिविल क़ानून आज बदल कर नए शुरू किए गए हैं जिनसे एक साल में न्याय देना लक्ष्य है - IPC 1860 का था, Indian Evidence Act 1872 का था और CrPC केवल 1973 का था - इनकी जगह ली है अब (IPC) - Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS); (I E Act 1872) - Bharatiya Sakshya Adhiniyam (BSA) और (CrPc) -Bharatiya Nagrik Suraksha Sanhita (BNSS) ने -


यह मोदी सरकार का ऐतिहासिक काम है जिस पर 75 साल से किसी सरकार ने हाथ डालने की हिम्मत नहीं की और इस जैसे काम के लिए हमें मोदी पर “गर्व” होना चाहिए -

इन बदले कानूनों में आपराधिक ट्रायल को गति देने के लिए 35 जगह टाइम लाइन जोड़ी गई हैं - FIR दर्ज होने से लेकर ट्रायल कोर्ट के फैसला देने तक के लिए समय सीमा तय की गई हैं -


इन कानूनों में technology का उपयोग कर और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को कानून का हिस्सा बना कर बहुत बड़ा काम हुआ है -


पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया; राजद्रोह की जगह देशद्रोह को अपराध बनाया गया; मॉब लिंचिंग के मामले में उम्रकैद या मौत की सजा; कोई राज्य एकतरफा केस वापस नहीं ले सकेगा, पीड़ित का पक्ष सुना जाएगा; सब पुलिस रिकॉर्ड, चार्जशीट और फैसले डिजिटल होंगे - दुष्कर्म के मामले में 7 दिन में पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पुलिस थाने और कोर्ट में भेजनी जरूरी होगी -


और बहुत सी बातें है जो यदि पुलिस और अदालतें अमल में लाएंगी तो बहुत बड़ा बदलाव दिखाई दे सकता है लेकिन फिर भी एक “लेकिन” रह जाता है कि इतने परिश्रम से कानूनों में बदलाव करने के बाद भी क्या त्वतरित न्याय मिलना संभव होगा - मुझे इसमें कुछ शंका है जिसकी कुछ वजह भी हैं -


ऐसी टाइम लाइन की व्यवस्था जब तक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के लिए नहीं बनेगी तब तक न्याय नहीं मिलेगा - सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा की अपील खारिज होने पर राष्ट्रपति को दया याचिका दायर करने के लिए तो 30 दिन का समय तय किया गया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा के खिलाफ अपील का निपटारा कितने समय में करेगा, यह जब तक तय नहीं होगा, तब तक कोई न्याय नहीं होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट तो वर्षों तक ऐसे मामले लटकाए रखता है -


एक और छोटा सा उदाहरण देता हूं - FIR हो गई, पुलिस की जांच भी हो गई, ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान भी ले लिया लेकिन तब ही आरोपी चला गया हाई कोर्ट कि उसका केस रद्द किया जाए, हाई कोर्ट 2 - 3 साल भी लगा सकता है और वहां बात नहीं बनी तो सुप्रीम कोर्ट में चला जायेगा और वहां तो रब ही मालिक है -


किसी केस में ट्रायल कोर्ट ने सजा सुना दी, हाई कोर्ट में अपील लटक गई और फिर सुप्रीम कोर्ट में तो जय राम जी की - पॉक्सो एक्ट में बच्चियों के बलात्कार के मामलों ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई फांसी की सजा को कम करने का हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अधिकार पर अंकुश लगाना जरूरी है -


हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए सुनवाई करने और फैसले सुनाने के लिए भी ऐसी ही समय सीमा जब तक तय नहीं होगी तब तक न्याय व्यवस्था में सुधार नहीं होगा -ये जज भी Consolidated Fund of India से वेतन पाने वाले सरकार के ही Employee  हैं - 


जैसे सरकारी कर्मचारी की काम न करने पर जवाबदेही तय होती है, वह जवाबदेही हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की भी तय होनी चाहिए - और एक सबसे बड़ा काम तुरंत  होना चाहिए कि इन जजों की और उनके परिवार के सदस्यों की Assets & Liability हर हाल में सरकार को जमा होनी चाहिए जिनकी गहन scruitiny भी की जाए - 




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