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*कहानी सत्य घटना पर आधारित है*
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* *एक बार वाल्मीकि बस्ती के मंदिर में गाँधी कुरान का पाठ कर रहे थे*
तभी भीड़ में से एक औरत ने उठकर गाँधी से ऐसा करने को मना किया
*गाँधी ने पूछा : क्यूँ ?*
तब उस औरत ने कहा कि ये हमारे हिन्दु धर्म के विरुद्ध है
गाँधी ने कहा . मैं तो ऐसा नहीं मानता (इस्लाम भी शांति का मजहब है) . ..
औरत ने जवाब दिया कि हम आपको हिन्दु धर्म में व्यवस्था देने योग्य नहीं मानते ..
गाँधी ने कहा कि इसमें यहाँ उपस्थित दर्जनों हिन्दु जातियों के लोगों का मत ले लिया जाये
औरत ने जवाब दिया कि क्या हिन्दु धर्म के विषय में हिन्दुओ को जातियों मे बाट कर वोटों से निर्णय लिया जा सकता है ?
गाँधी बोले कि आप मेरे अहिंसा धर्म में बाधा डाल रही हैं ..
औरत ने जवाब दिया कि आप तो करोड़ों हिंदुओं के धर्म में नाजायज दखल दे रहे हैं ..
गाँधी बोले : मैं तो कुरान सुनूँगा, हदीस पढ़ूंगा, और सरिया कानून मानूंगा ..
औरत बोली : और मै इसका विरोध करूँगी .
और तब औरत के पक्ष में सैकड़ो दलित हिन्दु वाल्मीकि युवक खड़े हो गये और कहने लगे कि मंदिर में कुरान पढ़वाने से पहले किसी मस्जिद में गीता या रामायण का पाठ करके दिखाओ तो जानें ..
विरोध बढ़ते देखकर गाँधी ने पुलिस को बुला ली . पुलिस आयी और विरोध करने वाले दलित हिन्दुओ को पकड़ ले गयी और उनके विरुद्ध दफा 107 का मुकदमा दर्ज करा दिया गया , और इसके पश्चात गाँधी ने पुलिस सुरक्षा में उसी मंदिर में कुरान पढ़ी ..
* *( देश के बँटवारे पर लिखी पुस्तक *****' *"विश्वासघात" ' से लिया गया है सच्ची कहानी को *****) ** *----------*लेखक- गुरुदत्त*
अब आप जिसे राष्ट्रपिता समझते उसकी सोच हिन्दुओ के प्रति क्या थी आप अंदाजा लगा सकते हे। राष्ट्र का कोई पिता नहीं होता राष्ट्र के सब पुत्र होते है।
गर्व है हमे हमारे दलित हिन्दू वाल्मीकि भाइयो पे।
*जय दलित वाल्मीकि जय श्रीराम*
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