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Sunday, August 25, 2024

*न्याय की कितनी जटिल* *व्यवस्था है*

 *न्याय की कितनी जटिल* 

*व्यवस्था है* ----- 

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वर्ष 2000 में दिल्ली के लाल किला 

परिसर में तैनात *7 राज रिफ यूनिट* 

पर आतंकवादियों ने हमला किया, 

जिसके परिणामस्वरूप तीन सैनिक 

मारे गए।


मुख्य अपराधी *मोहम्मद आरिफ* 

को चार दिन बाद दिल्ली पुलिस ने 

गिरफ्तार कर लिया। अब भारतीय 

न्याय व्यवस्था की खूबसूरती 

देखिए:----- 


ट्रायल कोर्ट ने उसे मौत की सजा 

सुनाने में पांच साल लगा दिए 

(2005)।


ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि 

करने में दिल्ली हाईकोर्ट को दो 

साल और लगे (2007)।


इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने उसी 

आदेश को बनाए रखने में चार 

साल और लगाए (2011) और 

समीक्षा याचिका को खारिज करने 

में एक और साल (2012), फिर 

क्यूरेटिव याचिका को खारिज 

करने में दो और साल (2014)।


सितंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट की 

संविधान पीठ ने फैसला सुनाया 

कि जिन मामलों में हाईकोर्ट ने 

मौत की सजा सुनाई है, ऐसे 

मामलों को तीन जजों की पीठ के 

समक्ष सूचीबद्ध किया जाना 

चाहिए। इस प्रकार, आरिफ एक 

बार फिर अपनी दायर समीक्षा 

याचिका पर फिर से सुनवाई के 

लिए पात्र हो गया।


इसके आठ साल बाद सुप्रीम कोर्ट 

ने उसकी समीक्षा याचिका (2022) 

खारिज कर दी।


फिर आरिफ ने दया याचिका दायर 

की, जिसे 12 जून 2024 को 

राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया।


हमारे तीन सैनिकों की हत्या करने 

और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने 

के चौबीस साल बाद भी आरिफ 

जिंदा है और करदाताओं के पैसे 

पर जी रहा है। वाह!


*भारतीय न्यायपालिका* --- 

आपकी अजीब न्याय प्रणाली को 

सलाम !! जो बदमाशों, अपराधियों 

और आतंकवादियों के पक्ष में पूरी 

तरह से झुकी हुई है!

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