अगर आपने अबतक इस्लाम कबूल नहीं किया है तो इस्लाम के अनुसार आपने इस्लाम पर हमला बोला हुआ है!
जी हुजूर, यही सही है है। इसलिए ग़ैर-इस्लामी देशों को दारुल हरब (युद्धस्थल) कहा गया है और इस्लामी देशों को दारुल इस्लाम(शांति-स्थल)।
मतलब यह कि इस्लामी मान्यता के अनुसार दुनिया की
लगभग 600 करोड़ ग़ैर-मुस्लिम आबादी ने दुनियाभर के लगभग 160 करोड़ मुसलमानों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा हुआ है!
किसी और मजहबी ग्रन्थ में ऐसा है क्या?
कितने मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने इसकी आलोचना करने की अबतक हिम्मत दिखाई है?
इससे साबित होता है कि आतंकवादियों का इस्लाम ही असली इस्लाम है, बाक़ी सब अलतकिया (मजहब सम्मत धोखा) है।
इस दृष्टि से तो भारत में इस्लामी आतंकवाद की जड़ में मदरसा या मुसलमान नहीं बल्कि इस्लाम है जो ग़ैर-मुसलमानों को वध्य (हत्या योग्य) मान उनकी ज़र-जोरू-ज़मीन पर अपना मजहबी हक़ समझता है।
"क़ुरआन पढ़ने के बाद भी कोई मुसलमान बना रहे तो वह मनोरोगी है" या अव्वल कायर और धूर्त।
इसीलिए कबीर और कलाम मुसलमानों के नायक नहीं हैं।
उनके नायक हैं:ओसामा बिन लादेन, मुल्ला उमर,
बग़दादी, याकूब मेमन,अफ़ज़ल गुरु,बुरहान वानी,
मुहम्मद ग़ोरी, मुहम्मद बिन क़ासिम,औरंगज़ेब...
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