भारतीय संस्कृति के आधार पुरुष श्री कृष्ण का आज प्राकट्य दिवस है। कृष्ण एक ऐसे विराट व्यक्तित्व का नाम है जिसने वैश्विक चेतना को प्राख्यापित किया है। कृष्ण के एक एक कर्म में मानवीय सरोकार विद्यमान रहे हैं और आज जन्माष्टमी के पावन पर्व पर मैं राष्ट्रीय कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियों का उल्लेख करना समीचीन समझता हूं जो कृष्ण के संदर्भ में संरचित की गई हैं:-
" वर्षों तक वन में घूम-घूम
बाधा -विघ्नों को चूम चूम
सह धूम -घाम, पानी पत्थर
पांडव आए कुछ और निखर
सौभाग्य न सब दिन सोता है
देखें आगे क्या होता है।
मैत्री की राह बताने को
सबको सुमार्ग पर लाने को
दुर्योधन को समझाने को
भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान हस्तिनापुर आए
पांडव का संदेशा लाये।
यह देख गगन मुझमें लय है
यह देख पवन मुझमें लय है
मुझमें विलीन झंकार सकल
मुझमें लय है संसार सकल
अमरत्व फूलता है मुझमें
संघार झूलता है मुझमें।
दृग हों तो दृश्य अकांड देख
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख
चर-अचर जीव,जग,क्षर- अक्षर
नश्वर मनुष्य सुर जाति अमर
शत कोटि सूर्य,शत कोटि चंद्र
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु -मन्द्र।
शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश
शत कोटि विष्णु, जलपति धनेश
शत कोटि रुद्र,शत कोटि काल
शत कोटि दंडधर लोकपाल
जंजीर बढ़ाकर साध इन्हें
हां हां दुर्योधन बांध इन्हें।
भूलोक अतल पाताल देख
गत और अनागत काल देख
यह देख जगत का आदि सृजन
यह देख महाभारत का रण
मृतकों से पटी हुई भू है
पहचान, कि इसमें कहां तू है।
विश्व मानव महामना कृष्ण को उनके प्राकट्य दिवस पर सादर नमन।🙏🙏
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