❌रांची के अलकायदा माॅड्यूल से संकेत साफ
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आत्म रक्षा के लिए आम लोगों को आग्नेयास्त्रों के
लाइसेंस देने में राष्ट्रवादी राज्य सरकारें उदारता दिखाएं।
अन्यथा, बाद में पछताना पड़ेगा यदि खुर्शीद-मणिशंकर
की धमकी इस देश में भी अचानक लागू हो गयी !!
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--Surendra Kishore--
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इस देश को दहलाने की कोशिश में लगे अल कायदा के आतंकियों की गतिविधियों की खबरें कल रांची से आई थी।
उसी तरह की खबर आज के अखबारों में भी आई है।
इन खबरों के आए कई घंटे बीत गये। किंतु किसी तथाकथित सेक्युलर दल या नेता ने ऐसे भीषण व डरावने राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र पर अब तक चिंता प्रकट नहीं की है।
भला वे अपने वोट बैंक की कीमत पर ऐसा क्यों करेंगे ?!
उल्टे कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर यह धमकी दे चुके हैं कि बांग्ला देश भारत में भी दोहराया जा सकता है।
अब यह कल्पना कठिन नहीं है कि कैसी- कैसी शक्तियों के बल पर ‘‘दोहराने’’ की वे धमकी दे रहे हैं !!
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कुछ साल पहले इस देश के एक तथाकथित सेक्युलर मुख्य मंत्री के राज्य में आतंकियों के स्लीपर सेल की मौजूदगी के बारे में एक अंग्रेजी अखबार में सनसनीखेज खबर छपी थी।
जिस संवाददाता ने वह खबर लिखी थी, उसे मुख्य मंत्री ने बुलाया और कहा कि ऐसी खबरें मत छापिए।
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संवाददाता ने मुझसे बाद में कहा कि कैसा मुख्य मंत्री है यह?
यह तो आतंकियों के स्लीपर सेल के फलने-फूलने में मदद कर रहा है।
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भारत के अनेक वोट लोलुप नेताओं की ऐसी ही सांठगांठ वाली या शुतुरमुर्ग वाली मानसिकता रही है। ऐसे स्लीपर सेल किस राज्य में नहीं हैं?
पचास के दशक को याद करिए।
तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन भारत की भूमि पर जब कब्जा करने लगा तो भारतीय संसद में आवाज उठी।
प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि उस जमीन पर तो घास का तिनका भी नहीं उगता। यानी मेरे काम का नहीं !
उसके बाद चीन ने सोवियत संघ की पूर्व सहमति से 1962 में हम पर हमला किया और हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया।
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रांची में अल कायदा के जिस आंतकी माॅड्यूल का अब पता चल गया है, यदि उसके बाद भी हमारी सरकारें नेहरू की तरह सोयी रही तो हम बहुत बड़े खतरे में पड़ जाएंगे।
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ऐसे में उन राज्य सरकारों से, जो उनके तुष्टिकरण वोट पर आश्रित नहीं हैं, अपील है कि वे उदारतापूर्वक लोगों को आग्नेयास्त्रों के लाइसेंस दें।
हां, वैसे लोगों को ही दें जिनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं चल रहा है।
‘‘बांग्ला देश’’ की पुनरावृति की स्थिति में सेना-पुलिस तो अपना काम करेगी ही, जो इस देश में अब बहुत मजबूत हो चुकी है, पर आम लोगों को भी वैसी आपात स्थिति में प्राण और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए सक्रिय होना होगा। ‘‘प्रतिष्ठा’’ का मतलब आप समझ ही गये होंगे।
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जो नेता व दल रांची के आतंकी माॅड्यूल पर चुप हैं, वे उस आशंकित आपात स्थिति में क्या व कैसी भूमिका निभाएंगे, उसकी कल्पना आप आसानी से कर ही सकते हैं।
सन 1962 के चीनी हमले के समय सी.पी.आई. के एक बड़े हिस्से ने कहा था कि चीन ने हम पर नहीं बल्कि भारत ने ही चीन पर हमला किया।
उसी आधार पर सी.पी.आई. 1964 में टूट गई और चीनपंथी सी.पी.एम. बनी।
चीन ने तब अपने पक्ष में जो पुस्तक तैयार की थी, उसे चीन पंथी भारतीय कम्युनिस्टों ने यहां के लोगों के बीच खूब बंटवाया। वह पुस्तक मेरे पास अब भी है। ऐसे लोगों की अब भी कमी नहीं है, इस देश में। बल्कि अब अधिक है।
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आज भी जब आतंकी यहां कोई हिंसक कार्रवाई करते हैं तो कुछ खास दलों के नेतागण आरोप लगाते हैं कि यह सब भाजपा-आर एस एस के कारण हो रहा है जिसने सांप्रदायिक माहौल बना रखा है।
अब वे इस सवाल का जवाब नहीं देते कि बांग्ला देश में न तो भाजपा है और न ही आर.एस.एस.।
ब्रिटेन सहित दुनिया के अन्य कई देशों में भी आंतकी लोग भारी हिंसा कर रहे हैं तो वहां किस भाजपा या संघ से वे लड़ रहे हैं?
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