"सरकारी नौकरी की मानसिकता"
मै जब 12th पास किया उसके एक दो साल के बाद से ही अर्थात ग्रेजुएशन 2nd ईयर से ही फॉर्म भरना शुरू कर दिया था। मुझे नहीं पता था कि मुझे करना क्या है। सरकारी नौकरी की भेड़ चाल चल रही थी। घर में भी सरकारी नौकरी की घुट्टी पिलाई जा रही थी जो आज तक बदस्तूर जारी है।
कोचिंग गया तो वहां मेरे ही तरह कई स्टूडेंट्स थे वो भी इसी सरकारी नौकरी की मानसिकता और भेड़ चाल का हिस्सा बन बैठे थे। किसी भी कोचिंग जाओ तो वहां हर गधे से गधे स्टूडेंट को मोटीवेशन बहुत दिया जाता है। बच्चा मेहनत करते रहो सफलता एक दिन तुम्हारे कदम अवश्य चूमेगी। उस एक दिन के लिए स्टूडेंट 5 साल 10 साल से लगा पड़ा है पढ़ाई करने में, सफल हो गया तो ठीक और नहीं हुआ तो अंदर बहुत सारी फ्रस्ट्रेशन घर करने लगती है, उसको उसकी क्षमताओं के बारे में ही पता नहीं है। वो क्या कर सकता है, सरकारी नौकर बनने के बाहर जो अपार संभावनाएं है वो उसमे क्या बन सकता है।
मुझे भी पता नहीं था कि क्या करना है आगे ? बस सरकारी नौकरी वाली बात शुरू से ठूसी गई थी। हम भी भेड़ चाल में कोचिंग करने लगे। ऐसा नहीं है कि कोचिंग करने से मुझे ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन बाहर बहुत कंपटीशन था, लोग बचपन से पढ़ते है तो भी ग्रेजुएशन तक मैथ और अंग्रेज़ी जैसे विषय में परफेक्शन के आस पास पहुंच पाते है। सरकारी नौकर बनने के लिए इंग्लिश और मैथ में परफेक्ट होना पड़ेगा, परफेक्ट नहीं तो उसके आस पास होना पड़ेगा क्योंकि बाहर बहुत कॉम्पटीशन है।
जबकि सरकारी नौकरी की मानसिकता के बाहर अपार संभावनाएं है। आपको सरकारी नौकरी क्यो चाहिए ? घर चलाने के लिए ही न ? दो वक़्त की रोटी के लिए ही तो चाहिए ??? 40-50 हजार महीने की सैलरी ही तो चाहिए। बदले में आप मेहनत करने को भी तैयार है तो क्यो सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहे है ? मैंने अपने कई मित्रो को देखा है जो बीटेक करके भी प्लेसमेंट नहीं प्राप्त कर सके, उसके बाद सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग कर रहे है, उसके बाद ग्रुप डी का भी फॉर्म भर रहे है। मतलब इस हद तक कॉम्पटीशन है। एक बीटेक वाले को नहीं पता कि उसे क्या करना है। उसे 5 लाख खर्च करके ग्रुप डी का फॉर्म भरते देखता हूं तो यही सोचता हूं कि 10+2 वालों की नौकरी एक बीटेक वाला प्राप्त कर सकता है लेकिन इंजिनियर की नौकरी एक BA Bcom BSC वाला प्राप्त नहीं कर सकता। बीटेक करने के बाद लोग बीटीसी कर रहे है। डीलेड कर रहे है। नौकरी के लिए सरकार को कोस भी रहे है।
एक बात जो अच्छी थी वो ये कि मुझे मेरी क्षमताएं पता थी। स्टूडेंट कोचिंग की मोटिवेशनल स्पीच में फसकर 4-5-6 साल तैयारी करता उसके बाद भी परिणाम नहीं मिलता तो क्या होता ? डिप्रेशन में जाता है, सरकार को गाली देना शुरू करता है, 1 नंबर से लटक जाने पर भर्ती के खिलाफ कोर्ट जाता है और बाकी सारे स्टूडेंट्स का भविष्य अधर में लटका देता। जैसे आज 69000 शिक्षक भर्ती कोर्ट में अटकी है।
जब मै स्टूडेंट था मतलब आज से 3-4 साल पहले, मुझे दुनियादारी की रत्ती भर भी समझ नहीं थी, सिस्टम की समझ नहीं थी, मै भी अक्सर सिस्टम को दोष देकर पल्ला झाड़ा करता था। मुझे कोर्ट की कार्यप्रणाली की समझ नहीं थी, मै भी कट ऑफ, फीस, भर्ती में देरी, आरक्षण जैसा खूब एक्सक्यूज दिया करता था जैसे आज कल स्टूडेंट्स दे रहे है। 4 साल पहले तक सरकार के विषय में मेरी भी आज कल के स्टूडेंट्स की तरह ही राय थी, राजनीति से मतलब नहीं था इसलिए दुनियादारी की समझ नहीं थी। जबकि हर इंसान को चाहे वो सरकारी नौकर ही क्यो न बन जाए सरकारी नौकरी के बाहर की जो दुनियादारी है उससे अक्सर दो चार होना पड़ेगा।
सरकारी नौकरी के बाहर की दुनिया को बेहतर बनाने के लिए एक अच्छी सरकार का होना आवश्यक है। मान लीजिए तैश में आकर आज स्टूडेंट्स ने सरकार बदल दी और लालू, अखिलेश या कांग्रेस जैसी सरकार ने तमाम भ्रष्टाचार करके स्टूडेंट्स को सरकारी नौकरी दे दी। लेकिन दूसरी तरफ तुष्टिकरण, महंगाई, जिहाद, घोटाला आदि अनेक समस्याओं से देश घिर गया। आप सुख शांति से जीवन व्यतीत करके हुए सरकारी नौकरी कर सके इसकी गारंटी कौन देगा ?
केवल सरकारी नौकरी या ऐसे ही एक दो मुद्दों पर सरकार चुनना बड़ा आत्मघाती होता है। ये जो भर्ती में 2 साल की देरी, भ्रष्टाचार वाला सिस्टम है ये क्या मोदी सरकार ने बनाया है ? ये सब कांग्रेस, सपा, बसपा, लालू जैसी सरकारों की देन है। एक अच्छी सरकार ही देश की जनता को इन सब समस्याओं से बचा सकती है।
मै जो भी लिखता हूं अक्सर अपना अनुभव ही लिखता हूं, अब जाकर समझ में आया कि सरकारी नौकरी के बाहर एक बहुत बड़ी दुनिया है। लोग छोटी छोटी परेशानियों के कारण सरकार को, सिस्टम को दोष देते है और अच्छी सरकारें बदलकर आत्मघात करते आए है। ऐसा नहीं है कि मै सिस्टम को दोष नहीं देता, बहुत देता हूं आज भी। इस सिस्टम के कारण वाकई मेरा और न जाने मेरे जैसे कितने लोगों का भविष्य अधर में लटका है, लेकिन बंधा नहीं है। वो सब बातें मै यहां नहीं लिखता क्योंकि वो मेरा पर्सनल मैटर है। सबके जीवन में कुछ न कुछ ऐसे पर्सनल मैटर होते है। लेकिन अधिकांश स्टूडेंट को सरकारी नौकरी के बाहर वाले वास्तविक जीवन में सिस्टम की खामियों के विषय में पता ही नहीं है, उन्हें नहीं पता कि इसे कौन सुधार सकता है। लेकिन मुझे पता है कि इस सड़े अंग्रेज़ो के जमाने के सिस्टम को कौन सुधार सकता है, कौन सुधार रहा है। इसलिए मै मोदी मोदी करता हूं। आप मोदी के 100 कामों में अगर 10 कम से असंतुष्ट है तो 10 अंक ही काट सकते है।
मैंने ये कभी नहीं कहा कि मोदी सरकार कभी गलत नहीं हो सकती। ये तो स्वयं मोदी जी भी नहीं कहते की मै कभी गलत नहीं हो सकता। लेकिन मुझे आज तक मोदी सरकार का कोई निर्णय गलत नहीं लगा। या गलत नियत से लिया गया एक भी निर्णय नहीं दिखा। मुझे अक्सर लगता है कि क्या सही है क्या गलत ये लोगों की क्षमता और जानकारी के हिसाब से बदलता रहता है। जानकारी के अभाव में अक्सर निर्णय गलत ही लगते है।
बहुत से लोग इसी सिस्टम से सफल भी हो गए या उदासीन सरकारी नौकर बने बैठे है। सरकारी नौकरी पाने के बाद भी लोग संतुष्ट नहीं है। उन्हें और पैसा चाहिए, आराम चाहिए।
पिछले 5 सालों में आपने बहुत से सरकारी नौकर चाहे बैंक का हो या रेलवे का या कोई और विभाग का, कहते सुना होगा कि ये सरकार बहुत काम करवा रही है। ऐसा क्यों कहते है लोग ? क्या 8 घंटे की जगह 10 घंटे काम करवा रही है ? काम 8 ही घंटे कर रहे है ज्यादा कर रहे है तो ओवरटाइम मिल रहा है। बड़े लेवल के अधिकारी है तो सारी सुविधाएं मिलती है। तमाम तरह के एलाउंस मिलते है। फिर भी असंतुष्ट है। पूरी ईमानदारी से अपनी सरकारी नौकरी नहीं करते।
स्टूडेंट फंसा है प्रोपोगंडा में, इस वक़्त स्टूडेंट्स की समस्या का फायदा उठा कर उसके दिमाग में ये डाला जा रहा है कि "भारत में बेरोजगारी है, लेकिन मीडिया दिखाता है कि हिन्दू को मुसलमान से खतरा है" "मोदी अपने मन की बात करते है" "स्टूडेंट्स हेट्स मोदी" "स्टॉप प्राइवेटाइजेशन"... ऐसे तमाम प्रोपोगंडा पोस्ट करने वाले यहां तक की मोदी की पढ़ाई को लेकर मज़ाक उड़ाने वाले स्टूडेंट्स ही है। डिग्री किसी की क्षमताओं या ज्ञान का पैमाना नहीं होता। बिहार ने न जाने कितने वर्ष लालू जैसे लोगों को चुना। तब डिग्री नहीं देखी थी क्या ? अखिलेश और राहुल जैसे लोग विदेशों से पढ़ाई की डिग्री रखते है लेकिन क्या इनमें देश या प्रदेश की सत्ता संभालने की क्षमता नजर आती है, इनके भाषणों में सुशासन का विजन दिखाई देता है ?
मै अक्सर स्टूडेंट्स को समझाने की कोशिश करता हूं उन्हें प्रोपोगंडा और हकीकत बताने की कोशिश करता हूं तो मेरे जैसे लोगों का आईटी सेल, अंध भक्त या कट्टर भक्त की संज्ञा देकर मज़ाक उड़ाया जाएगा.. एक तरफ तो न्याय पालिका और संविधान की वकालत करते है और जब सरकार उसी न्याय पालिका और संविधान के अनुसार आचरण करती है तो स्टूडेंट्स को लटकी भर्ती के नाम पर सरकार के खिलाफ भड़काते है, बजाय ये समझाने के कि कोर्ट और सिस्टम ऐसे ही काम करता है। बजाय ये बताने के कि केंद्र सरकार ने स्टूडेंट्स की इन समस्याओं को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय रिक्रूटमेंट एजेंसी का गठन किया है। इसमें फीस, भर्ती में देरी और बार बार एग्जाम देने के लिए दूर दूर सेंटर जैसी अनेक समस्याओं का समाधान है। कल ही सिविल सेवा को लेकर सरकार ने एक बड़ा बदलाव किया है।
मै ये नहीं कह रहा कि स्टूडेंट्स को समस्या नहीं है। बिल्कुल है। लेकिन उस समस्या को समाप्त करने के लिए सरकार की तरफ से क्या कदम उठाए गए है उसकी कोई बात नहीं कर रहा।
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