*श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष।*
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श्री कृष्ण जी के अनेक कहानियों मे से एक तत्व परक कहानी आज आपको प्रस्तुत है ।
अपने गुरू ऋषि दुर्वासा जी के आने की सूचना मिलने पर श्रीकृष्ण जी ने पटरानियों से कहा सभी पकवान लेकर उनके पास पहुचायें पकवानो के साथ पटरानियों ने जाते समय श्री कृष्ण जी को यमुना मे उफान और ऋषि के उस पार होने को बाधा बताया तो श्रीकृष्ण ने कहा कि यमुना से कहना कि यदि कृष्ण सदा"ब्रम्हचारी "हैं तो यमुना मैय्या रास्ता दों।
कौतूहल ठिठोली मे पटरानियां यमुना किनारे पहुंचकर श्रीकृष्ण के संदेश यथावत यमुना मैय्या को सुनाते ही यमुना दो-फाड़-हो बीच से रास्ता दे दीं। आश्चर्य के साथ पटरानियां दूसरे पार पहुंचकर ऋषि दुर्वासा जी को छप्पन भोग कराये जो जितना लेकर गये थे। सभी थालियों के पकवान ऋषि ने बड़े रूचि के साथ ग्रहण कर लिया। वापसी के समय पटरानियां हाथ जोड़कर विनती कर बोंली ऋषिवर हम वापिस कैसे जायेंगे यमुना तो उफान मे हैं,ऋषि दुर्वासा जी उनसे पूछें आये कैसे.❓️
तो पटरानियां श्रीकृष्ण जी द्वारा यमुना मैय्या का संदेश बताया जिसे सुनकर ऋषि ने कहा अब यमुना मैय्या से कहना कि यदि" दुर्वासा सदा फलाहारी हैं"तो यमुना मैय्या रास्ता दें->और ताजा कौतूहल प्रश्न के साथ पटरानियां यमुना किनारे पहुंचकर ऋषि के संदेश दिया तो-यमुना मैय्या जी पूर्ववत पुन: रास्ता दे दीं।
आश्चर्य चकित पटरानियां महल पहुंचेते ही श्रीकृष्ण जी से इस रहस्यमयी भेद पूछने लगीं।
बहुत अनुनय विनय के पश्चात भी जब श्रीकृष्ण जी रहस्य का भेद नही बताये तो पटरानियां उन्हे ताना देकर बोली "झूठे गुरू और झूठा शिष्य"
तब पटरानियों के भ्रम को दूर करने के लिये श्रीकृष्ण जी ने उन्हे तत्व दर्शन-कराते हुये भेद बताये वह है "कि जो आशक्ति के बिना किये कार्य हैं परमात्मा को समर्पित होते हैं उस शरीर को नही"
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