✅अदृश्य राज्य का सारा खेल अमरीका के दो मंत्रालय चलाते हैं।
एक है विदेश मंत्रालय और दूसरा है रक्षा मंत्रालय।
दुनिया की सबसे बड़ी आंतकी संस्था का नाम है सीआईए..
दूसरे नम्बर पर ISI जो उसकी ही पालतू है।
ये आलतू फालतू के आंतकी संगठन तो इनकी प्रॉक्सी हैं।
ये सीआईए वैसे तो स्वायत्त है लेकिन ये दिखावे के लिए काम करती है विदेश मंत्रालय के अधीन।
इसका काम दूसरे देशों में हस्तक्षेप करना है।
जब ये अपने गुर्गे कहीं एक्टिव कर देती है तो विदेश मंत्रालय अपने राजदूत या अन्य माध्यम से उस देश मे आधिकारिक घुस जाता है।
फिर इनका काम शुरू होता है कि दूसरे देश की सरकार उसके आदेश पर चलेगी या नहीं।
नहीं, तो उस सरकार के खिलाफ तख्तापलट जैसे काम शुरू हो जाते हैं।
इस तरह विदेश मंत्रालय काम करता है।
और वो ये काम करता है रक्षा मंत्रालय के लिए।
रक्षा मंत्रालय डायरेक्ट अदृश्य राज्य के अधीन है फिर सरकार किसी की भी हो।
अदृश्य राज्य का मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स इससे सुनिश्चित करता है कि उसके धंधे दूसरे देशों में जमें।
धंधे जमाने को कोई मिलिट्री बेस चाहिए, वहां के खनिज संसाधन चाहिए, वहां का बिजनेस चाहिए या वहां से अपने दुश्मनों के खिलाफ एक्शन, सब यही कॉम्प्लेक्स देखता है।
इसके अंदर ही हथियार माफिया हैं, आयल माफिया हैं, फार्मा माफिया हैं।
और अब तो डिजिटल माफिया भी हैं और MNC माफिया भी जिन्हें किसी देश मे अपना बिजनेस चाहिए और वो भी एकाधिकार के साथ।
और इन दोनों के बीच आता है वित्त मंत्रालय।
इसका काम है फंडिंग देना वो भी अमरीकी जनता के टैक्स का।
खुद का पैसा ये बहुत कम लगाते हैं और अमरीकी जनता का तो एक अफगानिस्तान में ही 2 ट्रिलियन डॉलर लगा दिया और करीब 200 बिलियन अब तक यूक्रेन के नाम पर लगा चुके हैं।
ये पैसा कभी न अफगानिस्तान के विकास पर लगा और न यूक्रेन के लगेगा।
उल्टा ये पैसा अमरीकी कांग्रेस(संसद) से पास होता है किसी देश के नाम पर और फिर वित्त मंत्रालय उसे इस मिलिट्री कॉम्प्लेक्स को दे देता है जो खुद से कॉन्ट्रैक्ट कर अपनी हथियार कम्पनी या कंस्ट्रक्शन कंपनी को वो पैसा देती है और फिर वो उस देश मे जाकर हथियार चलाते हैं या बिल्डिंग/रोड आदि बनाने का नाटक करते हैं जिसमें भी 20% काम होता है और 80% जेब मे चले जाता है।
इसके अलावा भी अमरीकी जनता को वामपंथ के चूरन के नाम पर बेवकूफ बना चंदा लिया जाता है और फिर अपने पालतू NGO को दुनिया भर में दे दिया जाता है। इसी पैसे से फिर दूसरे देश के प्रभावशाली लोग खरीदे जाते हैं फिर वो ज्यूडिशरी से हों, मीडिया से, ग्लेमर जगत से, अकेडमिया से या अब तो सोशल मीडिया से भी।
इसके अलावा जब किसी देश को बर्बाद कर दिया जाता है ताकि वो गरीब देश इनपर ही आश्रित हो जाए तो फिर अदृश्य राज्य की दो बड़ी संस्था वर्ल्ड बैंक और IMF सामने आती हैं। ये दोनों संस्था अमरीकी सरकार के अधीन नहीं हैं। यहां तक कि अमरीका का रिजर्व बैंक भी जिसे फेडरल रिजर्व कहा जाता है।
फिर इनका काम होता है उस देश की तमाम पॉलिसी को अपने कंट्रोल में लेना। इनका डॉलर ही उसका सबसे बड़ा हथियार है जो बिना किसी बैक अप के अंधाधुंध छपता है। हम आप नही छाप सकते।
इस तरह ये लोग उस देश को पूरी तरह टेक ओवर कर देते हैं।
आपका राष्ट्राध्यक्ष दिखने को आपका लगेगा लेकिन होता उनका है।
यहां तक कि जब 1990 में हमारे देश की हालत इस तरह हो गयी थी कि गोल्ड गिरवी रखना पड़ा तो वो IMF की शर्तें ही थीं कि भारत अपना बाजार उनके लिए खोले, वरना वो पैसा नही देंगे।
इस तरह भारत ने ग्लोबलाइजेशन में पैर रखा जिसे लोग कोई मनमोहन(नरसिम्हा राव) की क्रांतिकारी नीति कहते हैं।
जबकि सच्चाई ये थी कि वो अदृश्य राज्य की शर्त थी कि हमें भारत मे घुसना है क्योंकि अब सोवियत संघ टूट चुका था जो उससे पहले भारत को कंट्रोल करता था।
एक बात और कि उस समय से लेकर 2014 तक इस देश मे सरकार किसी की भी हो लेकिन वित्त मंत्री वो तय करते थे। उसी तरह जैसे पाकिस्तान में सरकार हो या मिलिट्री रूल लेकिन आर्मी चीफ कौन होगा वो अमरीका तय करता है।
इसके लिए उन्होंने बड़ी चालाकी से अपने प्यादे भारत मे भेजे।
भारत के गुलाम इस से ही खुश थे कि कोई ऑक्सफ़ोर्ड, केम्ब्रिज, हावर्ड का पढा लिखा आ गया है जबकि वो वैसे ही अर्थशास्त्री थे जैसे आज बंग्लादेश में मोहम्मद यूनुस है जिसे तो नोबल भी दे रखा अलग से।
और ये काम तो अदृश्य राज्य सोवियत के समय से ही कर रहा था।
रूसियों के पास अपने देश को चलाने(बचाने) का पैसा तो था नही बस एक विचारधारा भर थी जो आगे चलकर दुनिया मे फेल हो गयी लेकिन अमरीका के पास था। इसलिए नेहड़ु काल से ही भारत के रुपये का अवमूल्यन होना शुरू हो गया क्योंकि जितना आपका रुपया कमजोर होगा उतना आप उनपर निर्भर होंगे और हर भीख के साथ आपको अपना पैसा और गिराना होगा।
साथ ही रूसी वामपंथ के नामपर आपके पास व्यापार नही था क्योंकि पूंजीपति तो चोर होता है तो आपके पास गरीबी और महंगाई दोनों थी और टैक्स तो 97% तक था क्योंकि वामपन्थी भिखारी अर्थव्यवस्था में जनता से ही तो सब चूस देश जैसे तैसे चलाना था।
इस तरह अदृश्य राज्य ने आपके साथ खेल खेला।
और जैसा शुरू में कहां कि दूसरे नम्बर की दुनिया की सबसे बड़ी आंतकी संस्था ISI थी तो उसने अमरीका के कहने पर आपको हमेशा एक ऐसा देश बनाकर रखा जो सुरक्षित नही है निवेश के लिए। आपका बहुत बड़ा पैसा तो अपना क्षेत्र संभालने से लेकर देश सुरक्षा में ही खर्च हो जाता था।
इस देश के अंदर जो मिनी पाकिस्तान चल रहे थे वो भी ISI ने चलाये ताकि ये देश दंगो में झुलसा रहे और एक थर्ड वर्ल्ड बना रहे।
इसी ISI ने कितने हनी ट्रेप कर आपके नेता अपनी ओर किये।
इसी ISI ने सीआईए के साथ मिलकर इस देश मे विदेशी एजेंट सरकार(बल्कि खानदान) के अंदर बिठा दिए जो 2014 तक इस देश को कंट्रोल करते थे।
ISI का काम ये भी था कि जिनके दिल मे पाकिस्तान धड़कता है उनके वोट उस पार्टी को एकमुश्त दिलवाना। उन्हें खुश करने को बम धमाके करवाना ताकि वो खुश रहे कि हिन्दू मर रहा है और जब कोई एयर चीफ कहे कि बदला लेते हैं तो प्रधानमंत्री कहे कि इससे कौम नाराज होगी, छोड़ो कुछ सौ हिन्दू मर भी गए तो।
इस तरह की सांठगांठ के बाद सीआईए और ISI दोनों के पास ऐसे सत्ता लोभियों की सारी कुंडली भी आ गयी जो फिर इन्हें अपने इशारों पर चलाने के काम आयी।
इसी तरह चीन भी जब 2000 के बाद थोड़ा पैसे वाला बना तो उसने रूसी वामपन्थी गिरोह को अपनी ओर कर लिया। इनकी मदद से चीन ने ऐसे लोगों को लालच दिया कि अपना पैसा मकाऊ जैसी जगह सुरक्षित रख सकते हो क्योंकि तब तक दुनिया भर से आवाज आ गयी थी कि स्विजरलैंड जैसे देशों से बेनामी पैसे को सार्वजनिक किया जाए जो हिटलर के समय से वहां दुनिया भर का पड़ा था।
लालची लोग चीन के चक्कर मे आ गए तो पैसा मकाऊ शिफ्ट हो गया और वहीं से फिर सिंगापुर से लेकर मॉरीशस रुट से पैसा भारत के बाजार में आता, वित्त मंत्रालय अफवाह फैलाता, बाजार नीचे जाता और फिर ये उससे कमाते और फिर पैसा वापिस सिंगापुर मॉरीशस होते हुए मकाऊ चले जाता।
कहने का मतलब शार्ट सेलिंग आज की बात नही है तब से चल रही जब खुद ये सरकार में थे। हां भूल गया था कि अदृश्य राज्य के आदमी वित्त मंत्रालय नही बल्कि RBI में भी थे और आखरी अमरीकी ग्रीन कार्ड होल्डर को आप जानते हैं जिसका काम हर दिन भारत को बर्बाद देखने की भविष्यवाणी करना है और कम ग्रोथ जो भगवान की कृपा से अब तक नही हुई, उसे हिन्दू ग्रोथ कहना है।
तो इस तरह जब चीन भी भारत मे घुसा तो MoU साइन हुए और तय हुआ कि चीन भारत को अपना डंपिंग ग्राउंड बनाएगा।
चीन बल्क में उत्पादन करेगा और भारत टैरिफ नही लगाएगा जिससे भारत का बाजार चीन से भर जाए और हमारे MSME बर्बाद हो जाएं।
बड़े बाजार चीन के पास तब बन रहे थे और भारत मे ब्रांडेड खरीदने जितना पैसा नही था तो चीन ने छोटे उद्योग कब्जे में किये।
साथ ही MoU का ही कारण बना कि चीन भारत को घेरने को स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स बनाएगा लेकिन भारत आंख मूंदकर रहेगा। भारत के सारे पड़ोसी चीनी प्रभाव में आएंगे और भारत हिंदी चीनी भाई भाई करेगा। इस तरह चीन फिर कुछ कुछ अंतराल में भारत की भूमि भी कब्जायेगा और भारत कहेगा कि ये छोटी बाते हैं और हम अपना इंफ्रास्ट्रक्चर तक बॉर्डर पर नही बनाएंगे।
और ये सब इसलिए हो रहा था कि चीन उस समय अमरीका का ब्लू आइड बॉय था जिसे अमरीका ही बड़ा बना रहा था। चीन ने भी अमरीका का अच्छा बेवकूफ बनाया था लेकिन जिनपिंग को दूसरा माओ बनने का भूत बन गया तो चीन फिलहाल विलन है।
कल को जिनपिंग न रहा और कोई अमरीकी पालतू आ जाये तो ठीक हो जाएगा जैसा 1990 के बाद रूस में आ गया लेकिन 1998 आते पुतिन जैसा वहां सत्ता में आ गया तो रूस भी फिर से दुश्मन बन गया।
इसी तरह कोई मोदी निपट जाये और कोई खानदान वापिस आ जाये तो फिर भारत भी दुश्मन नही रहेगा।
क्योंकि फिर सब मिलकर अदृश्य राज्य के एजेंडे अपने देशों में चलाएंगे और खुद को शक्तिशाली बनाने से रोक किसी NATO की तरह अमरीका की गुलामी करेंगे।
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