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Wednesday, October 2, 2024

अतः , हड़बड़िया और तुनकमिजाज स्वभाव वाले मित्र इस पोस्ट को इग्नोर करें...! ==================

 ✅डिस्क्लेमर : निम्न लिखित पोस्ट समझने हेतु तार्किकता एवं समझदारी की मांग करती है.


अतः , हड़बड़िया और तुनकमिजाज स्वभाव वाले मित्र इस पोस्ट को इग्नोर करें...!

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कुछ दिन पहले हम कुछ मित्र आपस में बैठ के यही राजनीति और दुनिया जहान की बातें कर रहे थे..!


इसी पर अचानक एक मित्र बुदबुदाता हुआ सा बोला : साला, कलयुग है तो ई सब होबे करेगा..!


इस पर मैं मुस्कुराते हुए उसे एकटक नजर से देखने लगा.


मुझे यूँ एकटक नजर से देखते हुए वो थोड़ा विचलित सा हो गया और मुझसे पूछा कि ऐसे क्या देख रहे हो.. कोई बात है क्या ?


इस पर मैंने इंकार में मुंडी हिलाते हुए बताया कि.. कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही देख रहा हूँ.

काहे कि तुम आज बड़े प्यारे लग रहे हो.


इस पर वो झुंझलाता हुआ बोला : अबे, काम की बात करो न..!


तो, मैंने उससे साफ साफ ही बोला कि अभी तुम किसी कलयुग-सतयुग टाइप की बात कर रहे थे तो इसीलिए तुम्हे देख रहा था.


इस पर उसने भी बताया कि... वो बोल रहा था कि कलयुग है तो ये सब होबे करेगा.

इसके बाद जब सतयुग आएगा तो सब सही हो जाएगा और पूरी दुनिया में अपने सनातन धर्म का ध्वज लहराने लगेगा.


उसकी इतनी ज्ञानभरी बात सुनकर एक बार फिर मैं उसे एकटक देखता हुआ पूछा : कलयुग के बाद सतयुग आएगा... ये तुमको कैसे मालूम है ?


जिस पर उसने पूरे उत्साह से जबाब दिया कि... अबे, हमको क्या सनातन धर्म के बच्चे-बच्चे को मालूम है कि कलयुग के बाद सतयुग ही आता है.


उसकी बात सुनकर... मैंने एक बार फिर अपने मित्र को अपना प्रश्न स्पेसिफाई करते हुए पूछा कि... दुनिया जहान को जाने दो.

तुमको ये कैसे मालूम है कि कलयुग के बाद सतयुग आएगा ?


तब उसने समझाते हुए बताया कि... हमारे धर्म ग्रंथों के हिसाब से पृथ्वी पर चार युग होते हैं... सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग.

अब चूंकि, ये कलयुग चल रहा है तो जाहिर सी बात है कि इसके बाद सतयुग ही आएगा..!

क्योंकि, क्रम तो ऐसे ही चलता है.


उसकी बात धैर्य पूर्वक सुनने के बाद मैंने फिर उससे पूछा : वो सब ठीक है.

लेकिन, तुम ये कैसे जानते हो ?

मतलब कि तुम्हारी जानकारी का स्रोत क्या है ??


इस बार उसने झुंझालते हुए कहा : अबे, सब कहते हैं.

और, हम भी बचपन से यही सुनते आए हैं.. 

कि, प्रलय के बाद फिर से सतयुग आयेगा.


इस पर मैंने उससे पूछा : तुम्हारी बात तो सही है.

लेकिन, त्रेतायुग अथवा द्वापर युग के बाद कौन सा प्रलय आया था ??


मेरे इस प्रश्न पर वो अकचका गया और बोला : अबे, प्रलय तो नहीं आया था लेकिन उतने भयानक युद्ध तो हुए थे न कि जिसमें कि सारी जनसंख्या समाप्त हो गई थी.


इस पर मैंने फिर से उसे सुधारते हुए ध्यान दिलाया कि... सारी नहीं हुई थी.

जिन्होंने युद्ध में भाग लिया था उनका नाश हुआ था.


जैसे कि... त्रेतायुग में लंका की और द्वापर में हस्तिनापुर एवं युद्ध में शामिल सहयोगियों की.

क्योंकि, महाभारत के बाद भी द्वारिका समेत अनेक जगह के लोग जैसे के तैसे ही थे.


इसका मतलब ये हुआ कि युग बदलने के लिए पूरी जनसंख्या का नाश होना जरूरी नहीं होता है.


सिर्फ, धर्मस्थापना (कुछेक का नाश कर बाकी राक्षसों/दुर्जनों में भय उत्पन्न करना) का कार्य जरूरी होता है.


और, हाँ.... कलयुग के बाद सतयुग नहीं आ जायेगा..

बल्कि, कलयुग के बाद द्वापर आएगा.


इस पर मित्र आश्चर्यचकित होते हुए पूछा : वो कैसे ??


फिर मैने उसे बताया कि... धर्म स्थापना एक स्लो प्रोसेस है.

ये बहुत हद तक किसी देश की अर्थव्यवस्था अथवा स्टूडेंट की पढ़ाई की तरह होती है.


जो चढ़ती भी धीरे धीरे है... 

और, गिरती भी धीरे-धीरे है.


इसीलिए, अभी कलयुग में जो धर्म की वैल्यू 1 है (अर्थात 1 वेद का पालन करने वाला युग)


वो, पहले बढ़कर द्वापर (अर्थात 2 वेद का पालन करने वाला युग) होगा.


तदुपरांत.. त्रेता युग (3 वेद)


और, अंत में सतयुग आएगा (सभी धर्माचारी होंगे)


फिर, इसके बाद ये घटेगा भी उसी क्रम में...!


जैसे कि, अभी दुबई में हमारी एक मंदिर बनी है.

फिर, अन्य मुसरिम देशों में बनी.


और, धीरे धीरे पूरी दुनिया में मंदिर बन गए... 

तथा, सारी दुनिया के लोग सनातन धर्म की ओर आकर्षित होने लगे.


यही पूरी दुनिया में अपने सनातन धर्म का ध्वज लहराना हुआ..!


ये बात मित्र को थोड़ी जमी... 


लेकिन, फिर उसने प्रतिवाद करते हुए कहा : अरे यार, कलयुग के बाद जब सतयुग की जगह द्वापर आएगा तो क्या द्वापर में ही सारे राक्षसो का नाश हो जाएगा ??? (वर्तमान समय में आतंकवादी बलात्कारी दंगाई, अपने धर्म को अच्छा और दूसरे को बुरा बताने और बुरे आचरण करने वाले ही राक्षस हैं)


उसकी बात सुनकर... मुझे जोरों की हँसी आ गई और प्रत्यक्षतः भी मैंने हंसते हुए कहा : राक्षस गण तो द्वापर छोड़ो... सतयुग तक भी रहेंगे.


सतयुग , त्रेता अथवा द्वापर युग आ जाने का मतलब ये नहीं होता है कि असुरों और राक्षसों से तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी.


क्योंकि, जहाँ द्वापर में दुर्योधन के अलावे पूतना, शकटासुर, त्रिनावत, बकासुर, अघासूर, धेनूकासुर, प्रलंबासुर, अरिष्टासुर, केशी आदि राक्षस मौजूद थे..


तो, रामायण काल में भी रावण के अतिरिक्त ताड़का, खर-दूषण, अतिकाय और लवणासुर आदि मौजूद थे जो देश के विभिन्न भागों में विभिन्न स्तर पर आतंक फैला रहे थे.


यहाँ तक कि... ताड़का तो अयोध्या के बहुत बगल में (अयोध्या और मिथिला के बीच) ही आतंक फैला रही थी जिसे भगवान राम ने मारा था.


जबकि, सूर्पनखा एवं खर-दूषण दंडकारण्य में कार्यरत थे जो आधुनिक छत्तीसगढ़ में है.. जो कि अयोध्या (उत्तरप्रदेश) से बहुत दूर नहीं है.


और, अगर हम बात करें सतयुग की तो.... रक्तबीज से लेकर हिरणकश्यपु , शुम्भ-निशुम्भ , महिषासुर, भस्मासुर जैसे दुर्दांत राक्षस उस समय भी मौजूद थे.


इसीलिए, ये तो भूल ही जाओ कि कलयुग खत्म हो जाएगा तो तुम्हे राक्षसों से मुक्ति मिल जाएगी.


क्योंकि, हजारों-लाखों साल का इतिहास गवाह है कि.... किसी भी युग में राक्षसों से मुक्ति नहीं मिलती है.

बल्कि, हर युग में उनका दमन ही होता है.


इसीलिए, हो सकता है कि आगामी समय में तुम इन आंतक से मुक्ति पा लो.

लेकिन, फिर धर्मांतरण वाले तुम्हारे सामने आकर खड़े हो जाएंगे...!

किसी तरह इनसे भी मुक्ति पा लोगे तो फिर बलात्कार..

दंगाई आदि आकर खड़े हो जाएंगे.


इस तरह , ये एक अंतहीन सिलसिला है.


इसीलिए, इन सबसे मुक्ति का एकमात्र उपाय खुद को शक्तिशाली रखने का है.


ये बहुत कुछ वैसा ही है कि... हजारों लाखों तरह के हानिकारक बैक्टेरिया-वायरस आदि प्रकृति में मौजूद हैं... जो टाइफाइट, कोरोना, पोलियो, एड्स आदि लाखों तरह की बीमारी द्वारा क्षण भर में हमारी इहलीला समाप्त कर सकते हैं...!


लेकिन, जबतक हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली मौजूद रहती है...

तबतक, हमें किसी से कोई दिक्कत नहीं होती है.


और, अगर कभी हो भी गई तो फिर एंटीबायोटिक एवं अन्य दवाइयों से उसका इलाज होता है.

जैसे कि, पुरातन काल में भी बीमारी बढ़ जाने पर महिषासुर, हिरणकश्यपु, रावण, नरकासुर आदि का इलाज हुआ था.


इसीलिए, तुम युग बदल जाने का इंतजार करने की जगह खुद को मजबूत करने के प्रयास में लग जाओ.


क्योंकि, जबतक तुम में खुद का आत्मबल नहीं होगा तबतक मोदी-योगी तो क्या कोई भगवान का अवतार भी तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाएंगे...!


आखिर, रामायण में भी अयोध्या में उतनी चतुरंगिणी सेना के रहते हुए भी भगवान राम को खुद ही युद्ध करना पड़ा था कि नहीं ?


और, महाभारत में भी खुद नारायण के युद्धभूमि में मौजूद रहते हुए भी पांडवों ने ही युद्ध लड़ा था या नहीं ?


इसीलिए, काम तुम्हारे तुम्हारा ताकत ही आएगा.

बाकी, अपनी सरकार और पराई सरकार महज सारथी की भूमिका में रहते हैं.


अर्थात, अगर सारथी श्री कृष्ण (अपना फेवरेबल) रहे तो तुम्हें इसका एडवांटेज मिल जाएगा.


और, अगर सारथी शल्य (तुमसे नफरत करने वाला) रहा तो तुम्हें इसकी कीमत चुकानी होगी.


लेकिन, दोनों ही हालात में युद्ध तो तुम्हीं को लड़ना होगा.


इसके बाद शायद मित्र को मेरी बात समझ आ गई और हमारी बातचीत भी समाप्त हो गई.


जय महाकाल...!!!


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