2024 के चुनाव में जनता के बीच मंहगाई को एक मुद्दा बनाने का प्रयत्न हुआ !
और एक वर्ग तक ...ये मुद्दा सफल भी रहा !
यद्यपि मंहगाई को अर्थशास्त्र के ..नियम जैसे इन्फल्लेसन आदि की दृष्टिकोण से देखते ..सब्सिडी और नान सब्सिडी में विभेद करके देखते ..तो ये न्यूनतम स्तर पर थी ..परंतु फिर भी ..एक वर्ग के लिये मंहगाई सदैव से मुद्दा रही है।
सन् 1972-73 में जब पेट्रोल तीन या चार रुपये लीटर था ..तब भी मंहगाई मुद्दा हुआ करती थी !
बाकी जो बचा सो मंहगाई मार गयी !
मंहगाई विशेष कर पेट्रोल के दाम को मुद्दा बनाया गया.. सरकार परिवर्तन करने के लिए !
परंतु...प्रश्न ये था..कि सरकार को बदल कर जिस दल की सरकार केंद्र में लाना चाहते थे ,क्यो वो मंहगाई कम कर देती ?
पेट्रोल के दाम कम कर देती ?
चुनाव के परिणाम आने दस पंद्रह दिन में इस प्रश्न का उत्तर दिया गया...कर्नाटक से ! जहाँ पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ाये गये !
दाम बढ़ाने के लिये जिन ..परिस्थितियों को उल्लेख किया जा सकता हैं... उससे विकट परिस्थितियाँ खटाखट खटाखट.. परियोजना के परिणाम स्वरूप उठ खड़ी होती ! करीब 60 लाख करोड़ रुपये सालाना की व्यवस्था करनी पड़ती ?
यदि घाटे की वित्त व्यवस्था दिखा कर ..अधिक करेंसी नोट छापते ..तो मुद्रा स्फीत की दर इतनी अधिक होती की झोले मे नोट भर कर जाते..और पालीथीन मे आलू लाते !
ये चुनावी भाषण में बता रहे थे कि..खटाखट पैसा आयेगा तो शर्ट , जींस आदि खरीदेंगे...उससे उत्पादन बढेगा ! फैक्ट्री लगेगी !
वो ये शायद ही बताते कि..मुफ्त के पैसे से देशी ब्रांड नहीं खरीदे जाते ! ( ये मानसिकता होती हैं ) फायदा होता तो..विदेशी कम्पनियों का !
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