एमबीए की एंट्रेंस की कोचिंग हेतु चडीगढ़ के एक प्रतिष्ठित कोचिंग इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया था। हमारे बैच में 50 से अधिक छात्र छात्राएं थी।
शीर्ष पर हमेशा एक कन्या रहा करती थी।
रीडिंग... लॉजिकल रिसनिंग... डाटा एनालिसिस ... डाटा इंटरप्रेटेशन ... हर सब्जेस्ट में अव्वल।
कोचिंग के दौरान मॉक टेस्ट हुआ करते थे जिसमें लगभग वही छात्रा अव्वल रहा करती थी।
कुछ दिन वह कोचिंग से एब्सेंट रही।
फिर मालूम हुआ कि किसी घरेलू कलह के कारण वह नदारद थी।
शनिवार को मॉक टेस्ट होता था और सोमवार को नतीजे घोषित होते थे।
मॉक टेस्ट हुआ और इस बार वह अव्वल तो क्या टॉप 20 में भी नहीं थी।
हमारा इंस्टीट्यूट बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर था।
सहपाठियों ने देखा कि कन्या छत पर खड़ी होकर जमीन की ओर देखती रहती थी।।
कयास यह भी लगाए गए कि आपसी कलह से परेशान कन्या छत से कूद कर आत्महत्या कर सकती है।
हमारे इंस्टिट्यूट के हेड धाकड़ आदमी थे।
धाकड़ मने दिलेर..... मुंहफट .....।
उन तक बात पहुंची तो उनने कन्या को बुलाया।
पूछा.... "बिटिया क्या हुआ?"
कन्या ने बताया कि किसी कारण से बड़ी बहन की सगाई टूट गई। घर में भयंकर टेंशन चल रही है।
उसी वजह से पढ़ाई से फोकस उठ गया है।।
कोचिंग के लिए आती हूं तो कन्याएं ताना मारती हैं।
एक दो छात्रों ने भी मजाक बना दिया है और कहा है कि मैं हीरो से जीरो हो गई हूं।
मन करता है कि मर जाऊं।
जीवन समाप्त कर लूं।
मास साहब बोले कि उन छात्र छात्राओं को इक्ट्ठा करो जिनने लड़की पर तंज कसा है।
अगले 10 मिनट में मास साहब के केबिन में छात्र छात्राएं एकत्रित हो गए।
मास साहब ने उन सब की ओर एकटक देखा और बोले..... "बैक टू योर क्लास..."
अर्थात अपनी अपनी क्लास की ओर वापिस जाइए।
कन्या हैरान परेशान खड़ी रही।
मास साहब बोले कि यही नमूने हैं जिनकी वजह से तू छत से जमीन की ओर देखती है।
यही नमूने हैं जिनके कारण तू मरने की प्लानिंग कर रही है।
कन्या रोने लगी।
मास साहब ने कन्या के आंसू तो क्या पोछने थे.....
उल्टा बोले ....बिटिया एक काम कर .....तू छत से कूद जा।
जा सच में कूद जा।
कन्या का रोना धोना बंद। आंसू बंद।
अरे.....जे मास साहब ने का कह दिया?
मास साहब बोले कि जो दस बारह लड़के लड़कियां मेरे केबिन में आए उनमें से कितनों के सिलेक्शन की संभावना है?
एक की भी है ?
.........और वह निकम्मे मेरे इंस्टीट्यूट की टॉपर को कमजोर बना रहे हैं कि वह अपनी जान देने को है।।
कन्या सुबकते हुए बोली कि मुख्य कारण घर की समस्या है।
मास साहब ने कड़क जवाब दिया कि घर की समस्या घर में सुलझा ली जाएगी।
आज नहीं तो कल सुलझेगी।
घर के बड़े बुजुर्ग मां बाप रिश्तेदार संगे संबंधी मिल कर सुलझा लेंगे।
वह घर का मामला है।।
लेकिन घर के मामले में किसी बाहर के आदमी की किसी भी बात का प्रेशर लेना कहां तक जायज है?
घर की समस्या है ......सो है।
समस्या है तो घर में समाधान भी निकलेगा।
इसमें बाहर का व्यक्ति कहां से आ गया?
बाहर के व्यक्ति की कही हुई बात का क्या मूल्य है?
..................
कभी बाहर का व्यक्ति कहता था कि .......
राम लला हम आएंगे.....पर तारीख नहीं बताएंगे!
हमने तारीख बता दी।
तारीख पर मंदिर निर्माण भी हो गया।
मंदिर निर्माण के पश्चात सिंगल लार्जेस्ट पार्टी भी बने और सरकार भी बन गई।
अब कह रहे हैं कि मंदिर की छत से पानी आ गया।
अबे तुम्हें क्या टेंशन है?
तुम्हारे एजेंडा के हिसाब से तो मंदिर नहीं "हॉस्पिटल" बनना चाहिए था।
तुम्हारे हिसाब से तो मंदिर निर्माण चरमपंथ का प्रतीक है और तुम तो ठेकुलर हो।
हम संकीर्ण मानसिकता के हैं और तुम उदार हृदय के हो।
अरे तुम तो हिंदू मो** एकता के प्रतीक हो।
भइया जे तुमाई टेंशन ना है।
क्योंकि तुमाई बात का कोई मूल्य ना है।
रामभक्तों का आपस का मामला है।
हम समझ लेंगे।
तुम सामाजिक एकता बढ़ाओ।
सर्वधर्म सद्भाव बढ़ाओ।
हमारी छत से पानी टपक रहा है , पर #छत तो है।
हमाई टेंशन ना लो।
हमाई छत रिपेयर हो जायेगी।
परंतु तेरा का होगा रे #ठेकुलर?
तेरा क्या होगा रे लेफ्ट विंगर?
तेरा क्या होगा?
आज की तारीख में ना तो तेरे सर पर छत है और तेरे पैरों के नीचे से तो ......जमीन भी खिसक रही है।

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