शंकराचार्यों को तब चिंता नहीं थी जब वह टेंट के थे। शंकराचार्यों की इच्छा थी कि वह और दो चार साल टेंट में रहें।
इन लोगों की कुंठा यह भी थी कि यदि किसी को प्राण प्रतिष्ठा करने का अधिकार है तो वह उन्हीं लोगों को है, मोदी जी को नहीं।
शंकराचार्य नामक व्यवस्था एक फ्रॉड व्यवस्था है। हिंदू समाज का किसी भी शंकराचार्य के चयन में कोई भूमिका नहीं है।
शूद्रों को शिखर दर्शन का ज्ञान बाटने वाले ये निकृष्ट और अहंकारी हिंदू समाज को विभाजित रखकर इसे ग़ुलाम बनाने के प्रक्रिया के एक हिस्सा हैं।
वह प्रत्येक व्यक्ति जो हिंदू समाज के बीच भेद पैदा करने वाले हैं, वह हिंदू धर्म पर एक कलंक हैं।
राम मंदिर आराम से दस साल में बने, कोई समस्या नहीं है। खूब अच्छा बने, भव्य बने।
कोई भी निर्माण कार्य होता है तो उसके निर्माण काल में कुछ न कुछ दिक्कते लगी रहती हैं।
हिंदू धर्म के उन्नति के लिए विभेदकारी प्रत्येक ताक़त को रास्ते का काटा समझकर हटाना ही होगा चाहे उसके पद का नाम कितना भी बड़ा लगे।
भारत के हर हिंदू को ध्यान रखना चाहिए कि जो भी हिंदुओं की एकता में बाधा बनता है वह हमारा विरोधी ही नहीं दुश्मन है दुश्मन,
हमारे लिए जो हिंदुओं में एकता कर रहा है हमारे लिए वही सबसे बड़ा शंकराचार्य है और यदि शंकराचार्य ऐसा कर रहे हैं तो हम उनको भी भगवान मान लेंगे
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