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Friday, July 5, 2024

भारतीय संसदीय राजनीति एक बार फिर से करवट बदल चुकी है

 भारतीय संसदीय राजनीति एक बार फिर से करवट बदल चुकी है । विश्व के इस सबसे बड़े प्रजातंत्र ने दिखा दिया है कि उसकी जड़ें इस देश में बड़ी गहरी हैं । इस वर्ष अमेरिका , ब्रिटेन और भारत में चुनावी वर्ष था । भारत में चुनाव हो गया , कुछ मतांतर से वही सरकार लौट आई । ब्रिटेन में वोटों की गिनती जारी है , ऋषि सुनक का जाना और बारह साल बाद लेबर पार्टी का सत्ता में आना तय है । अमेरिका में इसी साल चुनाव हैं और दलों में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया जारी है । भारत में विपक्ष के नेता खासकर राहुल गांधी के सामने खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती है , जिसका ट्रेलर बहुत प्रभावी नहीं रहा ।


संसद के दोनों सत्रों में विपक्ष के अनेक नेताओं ने अपने संबोधन से अच्छे वक्ता होने की छाप छोड़ी । इनमें गौरव गोगोई , अखिलेश यादव , महुआ मोइत्रा , कल्याण बनर्जी , प्रमोद तिवारी आदि उल्लेखनीय हैं । सत्तापक्ष की बात करें तो इस तरफ अनेक बढ़िया वक्ता चले आ रहे हैं । निशिकांत दुबे और अजय भट्ट सहित बहुत से नाम गिनाए जा सकते हैं । कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अच्छा बोलते हैं । लेकिन बगल में बैठी सोनिया और पीछे से लगाम खींचते जयराम रमेश उन्हें लड़ाका वक्ता बनने पर मजबूर कर देते हैं । 


जहां तक पहली बार एलओपी बने राहुल गांधी की बात करें तो अपनी तमाम कारीगरी एक साथ उगलकर और पीएम के खिलाफ सांसदों को जबरन वेल में उतारकर एक बार फिर अपनी घोर नफ़रत को उजागर कर दिया है । संसद सत्र तो बीत गया , उन्हें और कांग्रेस पार्टी को अब धीरे धीरे अहसास होता जाएगा कि सरकार तो फिर से सचमुच मोदी की बन गई है । अब बन गई तो चलेगी भी । परिणाम आने के बाद राहुल गांधी को जिस जीत का खुमार छाया था , वह भी अब शनै शनै उतरता जाएगा । उन्हें लेवल में आने में अब बहुत वक्त लगने वाला नहीं ।


चुनाव परिणाम आए एक महीना बीत गया है । वैसे तो कांग्रेस पार्टी दूसरों की किसी भी सलाह का बुरा मानती है , पर राहुल को राजनैतिक पुस्तकों का गंभीरता से अध्ययन अवश्य करना चाहिए । संसद की लाइब्रेरी में संसदीय परंपराओं पर बेशकीमती पुस्तकें उपलब्ध हैं । अनेक गंभीर सांसद संसद पुस्तकालय का लाभ उठाते हैं । नेता प्रतिपक्ष का पद छोटा नहीं होता । देखिए ना राहुल एलओपी बने तो वे मुकेश अंबानी आपको बेटे की शादी में बुलाने उनके घर आए , जिन्हें राहुल दस सालों से कोस रहे हैं । नेता प्रतिपक्ष के लिए बदले वक्त की नज़ाकत समझना बहुत जरूरी है । 


सरकार उनका मान तभी करेगी जब वे अपना रवैया बदलेंगे । ठीक है बहुत हो गए आरोप दर आरोप , अब मोदी का भूत उतारिए । याद रखिए , दिन सबके आते हैं । कभी आपके खानदान के थे , अब उनके हैं । कल फिर आपके हो सकते हैं बशर्ते कि आप दूसरों को नीचा दिखाने की राजनीति छोड़कर वास्तविक धरातल पर उतर आएं । अच्छा होता जैसे दोनों सदनों ने विपक्ष को सुना , विपक्ष को भी उन्हें सुनना चाहिए था । यह संसद है चुनावी मंच नहीं । यहां खट खटाखट नहीं चलेगा , आपका वजूद आपकी वाणी बताएगी । कोई भी अच्छा और लोकप्रिय नेता तभी बन सकता है जब उसकी वाणी में दम हो , विचारों में गंभीरता हो । तो छोड़िए नफरत की गलियां , अब यदि हो सके तो मुहब्बत की दुकान के दरवाजे सचमुच खोल दीजिए ।


ऐसी नौटंकी करने से राहुल गांधी की छवि बनेगी नहीं निश्चित रूप से गिरेगी

क्योंकि 60 साल सत्ता में रहने के बाद भी यदि आप रहते हो कि इस देश में गरीब है तो जवाबदारी आपकी बनती है 60 साल तक आपकी सरकार ने क्या किया था




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