*बिना खिले #मुरझा गये*
*पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी* -----
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आर्यसमाज का इतिहास-
(इन्द्र विद्यावाचस्पति) -----
ईश्वरीय नियम अपना बदला लिये बिना नहीं छोड़ते। जो बरसात समय से पहले आ जाती है
वह शीघ्र ही समाप्त हो जाती है।
पण्डित गुरुदत्त जी में #प्रतिभा समय से पूर्व ही बरस पड़ी थी। जिस उम्र में दूसरे बच्चे गिल्ली-
दण्डा खेलते हैं, उसमें गुरुदत्त जी ने प्राणायाम
करना आरम्भ कर दिया। 19 वर्ष की अवस्था
का विद्यार्थी पंजाब की आर्यसमाज का प्रतिनि-
-धि बनकर अजमेर भेजा गया था। 24वर्ष पूरा
नहीं होता कि नौजवान एम॰ए॰ की गवर्नमेंट कालेज में साइन्स का बड़ा अध्यापक नियुक्त कर दिया जाता है। कदम-कदम पर #कुदरत
का कानून टूटता दिखाई देता था।
फिर पण्डित जी ने भी नियमों को तोड़ने में कोई कसर न छोड़ी। कार्य की धुन में शरीर की
चिन्ता छोड़ दी। यहाँ तक इन्द्र जी का लेखन है
। सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, जागरण-निन्द्रा सबका अतिक्रमण किया। आर्यसमाजी लोग भी उनको देर रात तक घेर कर रखते थे।
शेष फिर ----
अद्भुत #बौद्धिक_क्षमता के धनी आर्यसमाज के बहुमूल्य रत्न, ऋषि मिशन हेतु पूर्ण-समर्पित
त्यागी, तपस्वी, परिश्रमी #सैद्धांतिक दृढ़ता से
से परिपूर्ण (ओत-प्रोत) पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी
#अहंकार_अभिमान_घमंड से रहित पुरुष थे।
वे एक प्रोफेसर, योग्य वक्ता -लेखक -प्रचारक और वैज्ञानिक समझ वाले होने के साथ में एक
फकड़ स्वभाव वाले थे। डी ए वी के यथार्थ में
संस्थापक आप ही थे, लेकिन गलत मानसिकता
वाले व्यक्तियों का बहुमत या अधिकार होने से ये संस्थान #आर्ष_शिक्षा से विपरीत #अनार्ष_ शिक्षा की ओर #लपक गयी। परिणाम स्वरूप
गुरुकुल कांगड़ी जैसे संस्थानों का उदय हुआ।
#मूर्ख_अहंकारी_अल्पपठित आर्यसमाजी वर्ग
को #पंडित_गुरुदत्त_विद्यार्थी जी के जीवन से शिक्षा और प्रेरणा लेकर #अहंकार_अभिमान_
घमण्ड से रहित होकर आर्यसमाज के संगठन
में समर्थ-मजबूत बनाने के लिए पहल करनी चाहिए। लेकिन ये झूठे आर्यसमाजी कभी ऐसा नहीं कर सकते या सोच भी नहीं सकते। क्योंकि
इनको संगठन से अधिक #नीजि स्वार्थ व लाभ के साथ में #अभिमान_अहंकार_घमण्ड प्यारा
है।
*नमस्ते। शुभकामनाएं*।
*बहुत बहुत धन्यवाद*।
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