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Monday, August 26, 2024

*श्रीकृष्ण* (जन्माष्टमी पर विशेष)

 *श्रीकृष्ण* 

(जन्माष्टमी पर विशेष)

    आइए श्री कृष्ण के महान चरित्र को जानकर हम भी अपने जीवन मे अपनाने का संकल्प लें।

*श्रीकृष्ण का महान व्यक्तित्व*

*१.जुए के विरोधी:-*

वे जुए के घोर विरोधी थे। जुए को एक बहुत ही बुरा व्यसन मानते थे। जब वे काम्यक वन में युधिष्ठिर से मिले तो उन्होनें युधिष्ठिर को कहा-

*आगच्छेयमहं द्यूतमनाहूतोsपि कौरवैः।*

*वारयेयमहं द्यूतं दोषान् प्रदर्शयन्।।*

-(वनपर्व १३/१-२)

अर्थ:-हे राजन्! यदि मैं पहले द्वारका में या उसके निकट होता तो आप इस भारी संकट में न पड़ते। मैं कौरवों के बिना बुलाये ही उस द्यूत-सभा में जाता और जुए के अनेक दोष दिखाकर उसे रोकने की पूरी चेष्टा करता।

*२. मदिरा(शराब) के विरोधी:-*

वे मदिरापान के घोर विरोधी थे। उन्होंने यादवों के मदिरापान पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और उसका सेवन करने वाले के लिए मृत्युदण्ड की व्यवस्था की थी।

*अद्यप्रभृति सर्वेषु वृष्ण्यन्धककुलेष्विह।*

*सुरासवो न कर्त्तव्यः सर्वैर्नगरवासिभिः।।* 

मौसलपर्व

*यश्च नोsविदितं कुर्यात्पेयं कश्चिन्नरः क्वचित्।*

*जीवन् स कालमारोहेत् स्वयं कृत्वा सबान्धवः।।*

-(मौसलपर्व १/२९,३०,३१)

अर्थ:-आज से समस्त वृष्णि और अन्धकवंशी क्षत्रियों के यहाँ कोई भी नगरवासी सुरा और आसव तैयार न करे।

यदि कोई मनुष्य हम लोगों से छिपकर कहीं भी मादक पेय तैयार करेगा तो वह अपराधी अपने बन्धु-बान्धवोंसहित जीवित अवस्था में सूली पर चढ़ा दिया जाएगा।

*३. गोभक्ति:-* वे गोभक्त थे। गोपों के उत्सव में हल और जुए की पूजा होती थी। श्रीकृष्ण ने गोपों को समझाया कि वे इसके स्थान पर गोपूजन करें। हमारे देवता तो अब गौएँ हैं,न कि गोवर्धन पर्वत। गोवर्धन पर घास होती है। उसे गौएँ खाती हैं और दूध देती हैं। इससे हमारा गुजारा चलता है। चलो गोवर्धन और गौओं का यज्ञ करें। गोवर्धन का यज्ञ यह है कि उत्सव के दिन सारी बस्ती को वहीं ले चलें। वहाँ होम करें। ब्राह्मणों को भोजन दें। स्वयं खाएँ औरों को खिलाएँ। इससे पता चलता है कि वे परम गोभक्त थे।

*४.ब्रह्मचर्य का पालन (एक पत्नीव्रत):-*

महाभारत का युद्ध होने से पहले श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा था-

*ब्रह्मचर्यं महद् घोरं तीर्त्त्वा द्वादशवार्षिकम्।*

*हिमवत्पार्श्वमास्थाय यो मया तपसार्जितः।।*

*समानव्रतचारिण्यां रुक्मिण्यां योsन्वजायत।*

*सनत्कुमारस्तेजस्वी प्रद्युम्नो नाम में सुतः।।*

-(सौप्तिकपर्व १२/३०,३१)

अर्थ:- मैंने १२ वर्ष तक रुक्मिणी के साथ हिमालय में ठहरकर महान् घोर ब्रह्मचर्य का पालन करके सनत्कुमार के समान तेजस्वी प्रद्युम्न नाम के पुत्र को प्राप्त किया था। विवाह के पश्चात् १२ वर्ष तक घोर ब्रह्मचर्य को धारण करना उनके संयम का महान् उदाहरण है।

*ऐसे संयमी और जितेन्द्रिय पुरुष को पुराणकारों ने कितना बीभत्स और घृणास्पद बना दिया है।*

*राधा कौन थी? 😘

*वृषभानोश्च वैश्यस्य सा च कन्या बभूव ह।*

*सार्द्धं रायणवैश्येन तत्सम्बन्धं चकार सः।।*

*कृष्णमातुर्यशोदाया रायणस्तत्सहोदरः।*

*गोकोले गोपकृष्णांश सम्बन्धात्कृष्णमातुलः।।*

-(ब्रह्म० प्रकृति ४९/३२,३७,४०)

अर्थ:- राधा वृषभानु वैश्य की कन्या थी। रायण वैश्य के साथ उसका सम्बन्ध किया गया। वह रायण यशोदा का भाई था और कृष्ण का मामा था। राधा उसकी पत्नि थी। सो राधा तो कृष्ण की मामी ठहरी।

मामी और भांजे का प्रेम-व्यापार कहाँ तक उचित है?

पुराणकारों ने कृष्ण के स्वरुप को बिगाड़ दिया। उनके पवित्र व्यक्तित्व को घृणित और बीभत्स बना दिया।

*योगेश्वर श्री कृष्ण महाराज की जय*

*सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय हो*

*आप सभी को जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं*

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