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Tuesday, August 6, 2024

ब्रह्म नगरी पुष्कर में जन्माष्टमी के पूर्व की वो भयानक खोपनाक काली रात ।

 ब्रह्म नगरी पुष्कर में जन्माष्टमी के पूर्व  की वो भयानक खोपनाक काली रात । चारों और लाशों के ढेर ,नगर की गलियों में बहती खून की नदियां । मन्दिरो में भय से दुबके पुजारी ,ना कृष्ण जन्म की पूजा ना वेद मंत्रों का उच्चारण  ना आरती का गान ना झालर टैंकोरे की पवित्र ध्वनि ना शंख नाद ।                                                  चारो ओर मौत का सन्नाटा । यह खोपनाक मंजर था तीर्थ नगरी पुष्कर में आज से 343 वर्ष पूर्व सम्वत 1737 के भाद्रपद की कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व रात का ।                                  जब मुगल शासक औरंगजेब के अजमेर दुर्दांत जालिम फौजदार तहव्वर खान ने जन्माष्टमी के पावन दिन पर प्राचीन वराह मन्दिर को ध्वस्त , सरोवर के तट पर एक सो एक गौ माता की कुर्बानी के साथ साथ यहाँ के ब्राह्मणों के कत्लेआम की घोषणा कर दी ।                                              खूंखार आततायी खान की घोषणा से पूरे नगर में भय का माहौल हो गया । खोपजदा ब्राह्मणों में त्राहि त्राहि मच गई । तब ब्राह्मणों ने अपने आराध्य श्री पुष्कर राज से करुण पुकार की। हे, प्रभु अब मन्दिर गौ माता व ब्राह्मणों की रक्षा आपके हाथ मे हैं । प्रभु कृष्ण के जन्मोत्सव पर तीर्थ को इस जालिम के पापकर्म से  रक्षा करे । तभी पुष्कर राज की प्रेरणा से उधर से गुजर रहे घुड़सवार ने                         तीर्थ के ब्राह्मणों की करुण पुकार की जानकारी आलनियावास  राज घराने के तत्कालीन  ठाकुर प्रताप सिंह जी के वीर पुत्र कुंवर राज सिंह जी जो विवाह संस्कार के बाद  अपनी नई नवेली दुल्हन के संग राज महल में प्रवेश करने ही वाले थे । खबर को सुनकर  कुंवर राज सिंह जी ने ऐलान कर दिया कि अब पुष्कर तीर्थ में ब्राह्मणों व गौ माता की रक्षा करना ही मेरी पूजा है विवाह के लिए पहना केसरिया को मैने धर्मयुद्ध के निमित मान लिया है । अपनी विवाह की पूजा  रस्म पूरी किए बगैर अपने दूल्हे रूप में ही कुँवर राज सिंह जी अपने दो साथी सरदारो  चतर सिंह जी रूपसिंह जी  व 50 -60 घुड़ सवारो के साथ पुष्कर कूच करने की घोषणा कर दी वही उनकी नव नवेली  दुल्हन ने भी  वीरता के संगीत से उनको विदाई दी । कुंवर राज सिंह जी अपने  कुछ मेड़तिया सरदारों के साथ पुष्कर आकर विशाल मुगल सेना  पर टूट पड़े। इसी दरमियान आसपास के राजघराने को सूचना मिली तो  तत्कालीन रिया ठाकुर केसर सिंह जी  ,बजोली ठाकुर गोकुल सिंह जी ,ठाकुर हठ सिंह जी ,ठाकुर जगत सिंह जी ,ठाकुर सुजान सिंह जी अपने सैनिकों के साथ पुष्कर पहुंचे। जैसे ही पुष्कर "रण बंका राठौड़ा "की गगनभेदी ध्वनि से गुंजायमान हुआ  वैसी ही वीर कुंवर राजसिंह जी अकेले ही मुगल सेना के बीच कूद पड़े । जब आस पास के सरदार ठाकुर वहाँ पहुचे तो देखा कि दूल्हे के भेष में बिना सिर का एक कुंवर  अपने दोनों हाथों में तलवारे लिए मुगल सेना का नरसंहार कर रहे हैं । वीर क्षत्रियो  व मुगल सेना में  नवमी तक चले युद्ध मे 8000 मुगल सैनिक मारे गए वही तीर्थ व गौ माता की रक्षा करते 700  क्षत्रिय वीर गति को प्राप्त हुए परन्तु उन्होंने गौमाता व ब्राह्मणों को खरोच तक नही आने दी व कुर्बानी के लिए लाई गई एक सौ एक गौ माता को बंधन मुक्त करा दिया । वही फौजदार  खान राजपूतों की बहादुरी से भयभीत होकर तारागढ़ की पहाड़ियों में भाग  गया व छुप कर अपनी जान बचाई ।धर्म के लिए वीरगति पाने वाले कुंवर राज सिंह जी  ठाकुर केशर सिंह जी  ,ठाकुर सुजान सिंह जी  ,ठाकुर चतुर सिंह  जी ठाकुर रूपसिंह जी  ठाकुर हठी  सिंह जी ,ठाकुर गोकुलसिंह जी  की  आज भी तीर्थ नगरी में दो जगह पर  समाधिया बनी हुई हैं ।साथ ही  गौ माता के रक्षा के  यादगार में मुख्य घाट को " गऊ- घाट "का नामकरण किया गया । 🙏🏻🌞🚩

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