मित्रों, पुरानी पोस्ट
पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी महिलाओं में "कॉकरोच" के डर के विषय मे ...........
जिसे किसी ने नही पढा ..... किसी ने पढ़ा भी तो मात्र मजाक की विषय वस्तु के रूप में.....
जबकि मैंने हास्य मजाक के लिये तो बिल्कुल भी अंगूठा नही घिसा था ।
देखो मित्रों ये कॉकरोच ,चूहे ,छिपकली आदि को देख कर सिर्फ और सिर्फ सनातनी महिलाओं का ही रक्तदाब उच्चतम स्तर पर जाता है .....
के2ओं की महिलाओं का बिल्कुल भी नही .....
कारण????????
अब मेरे सेक्युलर टैप के या खूब पढ़े लिखे बन्दे कहेंगे कि यार इसमे धर्म वाली बात कहाँ से आ गई ?
मेरी उक्त पोस्ट पर मेरी एक महिला मित्राणि ने लिखा कि महिलाएँ नाजुक होती हैं इसलिये डरती हैं......
कमाल है देवी जी आप ही नाजुक क्यूँ हैं?
उधर वाली तो मुर्गे बकरे की गर्दन पर चीरा लगाने में एक मिनट भी नही लगातीं और कुछ समय तड़पने के बाद वो मुर्गा बकरा जब दम तोड़ देता है तो छील कर
काट कर
साफ कर
धो कर
भगोने में डाल कर
चढ़ा देती हैं चूल्हे पर ......
वो तो नाजुक नही हैं तो क्या वो महिला नही हैं???
कारण क्या है कि वीरांगनाओं की गाथाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है फिर क्यूँ और कैसे हमारी लड़कियाँ इतनी बुजदिल होती चली गई कि हमारे हाथ के अंगूठे से भी छोटे आकार के कॉकरोच से भयभीत होकर हाय तौबा मचाकर पूरे घर को सिर पर उठा लेती हैं......
जबकि बेचारा कॉकरोच न तो आक्रामक होता है न ही किसी को काटता है न ही कोई विषैला डंक होता है ।
मेरी बुद्धि जहाँ तक काम करती है तो इसके पीछे मैं भाँड़वुड को ही पाता हुँ ,
फिललल्लम हो या टेल्लीबिजन दोनों ही पटल पर ये दृश्य आम है कि पढ़ी लिखी मॉडर्न हिरोइनी को चूहा /छिपकली/कॉकरोच आदि नजर आता है तो वो जोर से अदा के साथ चिल्लाती है और हीरो से चिपट जाती है ...... और फिर शुरू होती है ---- नाइंटी फोर्टी टू ए लव स्टोरी ।
अब ऐसे दृश्य हमारे बच्चे देखते हैं तो साधारण सी बात है कि उनके मन मे भी इन जीवों के प्रति भय उत्तपन्न होना लाजमी सी बात है .... फिर वही भय लिये लिये वो बच्चा बड़ा होता जाता है पर माता पिता इस बात को गम्भीरता से नही लेते बल्कि हँसते हैं पर ये कभी कोशिश नही करते कि बच्चों के मन से ये बिना बात का नाहक का भय निकाला जाये .... उम्र के साथ साथ भी बढ़ता ही जाता है और ताउम्र ये भी निकल नही पाता ।
इस विषय पर मेरी पिछली पोस्ट लिखने के शायद अगले ही दिन दिल्ली के मंगोलपुरी में रिंकू शर्मा की घर मे घुस कर परिवार के सामने हत्या हो गई.......
मित्रों मेरी उक्त पोस्ट लिखने का उद्देश्य भी यही था कि जब हम कॉकरोच देख कर मूत दे रहे तो राक्षषों का क्या खाकर मुकाबला कर सकते हैं ????
अगर रिंकू शर्मा का परिवार भी आक्रामक रहा होता तो परिणाम कुछ और ही होता इस घटना का पक्के तौर पर .
ये कॉकरोच जैसे विषय हमें अति सूक्ष्म व ध्यान न दिये जाने योग्य लगते हैं पर ये इतने सूक्ष्म नही हैं भई ......
लड़की ही नही बहुत से लड़के भी देखता हूँ कि इन जीवों को देखकर चिंघाड़ मार देते हैं .......
भैय्ये धीरे धीरे आपको हर तरह से नपुंसक बनाया जा रहा है और आप हैं कि सुप्त अवस्था से बाहर निकलने को तैयार ही नही ।
समय आ गया है कि हमे मजबूरन कट्टर होना पड़ेगा कट्टरता का प्रदर्शन भी करना हो .....आप कट्टर हैं अच्छी बात है पर सामने वाले को पता भी होना चाहिये कि आप कट्टर हैं ,
आप समझते हैं न कि 26 जनवरी की परेड में क्यों राष्ट्र के सभी विध्वंसक हथियारों का प्रदर्शन किया जाता है ?
कोई भी लड़ाई रक्षात्मक होकर नही जीती जा सकती आक्रामक होकर ही जीती जा सकती है ,
और हमारा दुर्भाग्य तो ये है कि हम तो रक्षात्मक भी नही रहे ।
बताओ भला कॉकरोच को देखकर जिसकी हालत खराब हो जाती है वो किस प्रकार सामने खड़े भाईजान के हाथ मे तलवार खंजर कट्टा पिस्तौल बम आदि देख कर क्या प्रतिक्रिया दे सकता है ??
किस प्रकार हम आशा रख सकते हैं कि वो रक्षात्मक ही सही पर क्या वो खेल भी पायेगा???
ये बात बात पर मोदी शाह को कोसना छोड़ कर सन्तति को सम्भालो न यार ..... क्या नमूना पैदा कर दिया है वो देखो .... मोदी शाह नही खड़े मिलेंगे तुम्हे हर जगह...
वोट देकर उनको खरीद लिया क्या जो उनको हर घटना पर गाली देने लगते हो ?
अरे वो शासन प्रशासन देखें या तुम्हारी गाली सुनें?
होश में आ जाओ ऐसी कोई सरकार कभी नही बनेगी जो हर आम आदमी के पीछे 2 SPG के बन्दे लगा दे सुरक्षा हेतु....
यहाँ तो भैय्ये सवारी अपने सामान की स्वयम जिम्मेदार होगी वाला फार्मूला ही चलेगा ।
हम अक्सर चिंतन करते हैं कि घर मे हथियार रखो........ पर जब हथियार उठाने वाले हाथ ही कांपते हों तो भला हथियार जमा करके भी क्या उखाड़ लोगे भई ?
खैर बहुत हुआ अथ श्री कॉकरोच पुराण ।
राजा राम चन्द्र की जय ।
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