मोमिनों ने वैदिक रीति से शव को जलाने में आने वाले खर्च से बचने के लिए दफ़नाने को अच्छा बताया है | उनकी बात सुन कर मैंने शोध किया तो पता चला कि दिल्ली प्रान्त में 82 % हिन्दू रहते हैं और उनके शव दाह के लिए यहाँ केवल 56 शमशान घाट हैं | जबकि 13 % मुस्लिमों के लिए 562 कब्रिस्तान हैं |
यदि इसी अनुपात में यदि हिन्दू शवों को दफ़नाने लग जाएँ तो 3500 अतिरिक्त कब्रिस्तानों की आवश्यकता पड़ेगी |
इसका कारण यह है कि एक कब्र में शव को कंकाल सहित पूरी तरह नष्ट होने में 50 वर्ष का समय लगता है | जबकि एक चिता में शव को भस्म होने में कुल 2 दिन का समय लगता है और तीसरे दिन अगला शव जलाया जा सकता है |
अतः 50 वर्ष की अवधि में जहाँ एक कब्र में केवल एक शव को दफनाया जा सकता है जबकि उतनी ही अवधि में एक चिता में 9125 शवों को भस्म किया जा सकता है |
दिल्ली में दो वर्ग गज जमीन का किराया औसत 24000 रूपये से 24,00,000 रूपये वार्षिक तक हो सकता है | अतः एक कब्र के 50 वर्ष के किराए में हजारों शवों का बहुत बढ़िया ढंग से अंतिम संस्कार हो सकता है |
आप देख सकते हैं कि मुर्दों ने दिल्ली की बहुत सारी कीमती जमीन पर कब्ज़ा कर रखा है | यदि उन सभी शवों को निकाल कर शमशान घाटों में जला दिया जाए और 562 कब्रिस्तानों की जगह पर स्कूल, कोलेज, अस्पताल और घर बना दिए जाएँ तो सभी नागरिकों का जबरदस्त फायदा होगा |
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