गंगा कितनी भी अपवित्र हो जाएं
रहेंगीं गंगा ही
ऐसा इसलिए क्योंकि गंगा का उद्गम गंगोत्री है
व्यक्ति, समाज, राष्ट्र, सभ्यता
अपना मूल नहीं छोड़ सकती
मूल में ही उसकी सारी व्याख्या है
भारत कितना भी अभिमानी हो जाय
फिर भी अमेरिका नहीं हो सकता
हिंदू कितना भी कट्टर हो जाय
फिर भी वह तालिबान नहीं बन सकता
ऐसा इसलिए है
क्योंकि सबका मूल चिंतन अलग है
सबके विचार का उद्गम अलग है
इसे समझने के लिये
उस आदिम मानव तक जाना होगा
जो भिन्न भिन्न सभ्यता में मूल्य स्थापित कर रहा है
यहाँ आलोचना या प्रंसशा की बात नहीं हो रही है
उस भिन्नता को समझना होगा
जो हमें भिन्न बनाता है
बाइबिल और कुरान का मूल लगभग एक ही है
वास्तव में कुरान में बहुत कुछ बाइबिल से लिया गया है
बाइबिल/कुरान आदिम मनुष्य संघर्ष को प्रमुखता देता है
वह मजहब/रिलीजन को भय से जोड़ता है
यह संघर्ष का विचार, मजहब/रिलीजन तक रति है - survival of fittest. सीमित नहीं है
वह विज्ञान और एथिस्ट तक जाता है
जायेगा ही !
कोई भी विचार अपने मूल को पकड़े रहता है
हम पश्चिम के विचारकों को ही लेते है -
डार्विन का विकासवाद - संघर्ष पर आधारित है
मार्क्स का साम्यवाद - संघर्ष पर आधारित है
नीत्से का अस्तित्ववाद - संघर्ष पर आधारित है
फ्रायड का मनोविज्ञान - संघर्ष पर आधारित है
इस्लाम/ईसाइयत के विचार - संघर्ष पर आधारित हैं
जिहाद और क्रुसेड के विचार
इस्लाम और ईसाइयत के ही हैं
यहाँ इस्लाम और ईसाइयत में एक अंतर यह आ गया
कि ईसाइयत ने परिवर्तन और स्वीकृति को
अपने अनुभव से स्वीकार कर लिया
लेकिन इस्लाम ने सब कुछ अंतिम मान लिया !!
1-किताब अंतिम
2-पैगम्बर अंतिम
3-मजहब अंतिम
यही तीन मूल कारण है
जिससे इस्लाम में संघर्ष, हिंसा का विकराल रुप ले लिया है
जो इन तीनों बातों पर दृढ़ है
वे चाहें कितने भी शांत क्यों न हो
कभी भी हिंसक हो सकते हैं
जब परिवर्तन कि स्वीकृति में शून्यता आ जाय
तो परिवर्तन अपना रास्ता लाशें बिछाकर बनाता है
संघर्ष एक राजनीतिक शब्द है
और राजनीति, सत्ता का खेल है
इसमें कोई संशय नहीं रहना चाहिये
इस्लाम और ईसायत ने अपने सम्प्रदाय का हिंसक उपयोग सत्ता पाने के लिये किया
ईसाइयत ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्वीकार करके
इस पाप से मुक्त होने का प्रयास किया
लेकिन इस्लाम अब भी इसमें विश्वास करता है
कुछ उत्साही बडबोलेपन में लिखते हैं
सभी धर्म एक जैसे हैं
इससे बढ़कर मूर्खतापूर्ण बात अब तक
कही ही नहीं गई है
इनको मैं मौकापरस्त या मंदबुद्धि मानता हूँ
जिनके पास चिंतन शक्ति शून्य है
जब तक आप भिन्न भिन्न विचारों को
उसके मूल से नहीं समझेंगें
समस्या को समझ ही नहीं सकते
भारत का मूल चिंतन उपनिषद है
जिसमें न्याय, योग, सांख्य, मीमांसा, वेदांत
आदि शामिल हैं
यदि आप इन सभी विचार को गहरे से चिंतन करिये
तो पायेंगे कि सब सहयोग पर आधारित हैं
जो दर्शन भारत के प्रारंभिक काल में प्रभावी था
वह है सांख्य दर्शन
सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल कहते है -
'हमारा अस्तित्व तब है, जब दूसरे का है'
यहाँ मात्र मनुष्य कि बात नहीं हो रही है
हर जीव कि बात हो रही है
यह मूल विचार आज भी कितना प्रभावी है !!
शाकाहारी होना, जीव हत्या न करना, नदियों, वृक्षों, पर्वतों कि पूजा करना आदि
यह सभी सांख्य दर्शन है
जो हम करते हैं जो हम जीते है
उसके पीछे
सभ्यता के मूल विचार अवचेतन में चलते रहते है
क्या भारत ने युद्ध नहीं लड़े !!
बिल्कुल लड़े
लेकिन वे कालक्रम का घटनाक्रम है
उसका सम्बंध किसी विचार से नहीं है
हम विभिन्नताओं को समझे
श्रेष्ठता, हीनता में ना उलझे
जो हमें चाहिए, उस समाधान तक
हम आज नहीं तो कल पहुँच ही जाएंगे
____________
Follow
No comments:
Post a Comment