हमारे जीवन को उच्चतम शिखर तक पहुँचाने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहने वाले समस्त शिक्षकों को *शिक्षक दिवस की आत्मीय शुभकामनाएं।*
माता-पिता हमारे प्रथम शिक्षक होते हैं।
आज हम शिक्षक दिवस के इस अवसर पे ये जानने की कोशिश करेंगे कि *शिक्षक, अध्यापक, उपाध्याय, आचार्य, प्राचार्य, और गुरु -- इन सब में क्या अंतर होता हैं।*
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(1) *अध्यापक कौन है? :---* अध्यापक हमें सांसारिक विषयों का पुस्तकीय अध्ययन करवाता है, जिस से कोई प्रमाण-पत्र या डिग्री मिलती है। इसके बदले में वह नियोक्ता से वेतन लेता है, और गृह-शिक्षा (ट्यूशन) लेने वालों से शुल्क (ट्यूशन फीस) लेता है। इस पुस्तकीय ज्ञान से हमें कहीं नौकरी करने की या कुछ व्यवसाय करने की योग्यता आती है। इस से सांसारिक ज्ञान बढ़ता है, और सांसारिक व्यक्तित्व का निर्माण होता है। पुराने जमाने के अध्यापक अपने स्टूडेंट्स को जी-जान से पढ़ाते थे, और उनकी योग्यता बढ़ाने के लिए बहुत अधिक परिश्रम करते थे, आजकल यह देखने में नहीं आता।
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(2) *शिक्षक कौन है? :---* शिक्षक वह है जो हमें जीवन में उपयोग में आने वाली व्यवहारिक चीजों की शिक्षा देता है। सबसे बड़े और प्रथम शिक्षक तो माँ-बाप होते हैं। सिखाने के बदले में शिक्षक कोई आर्थिक लाभ नहीं देखता, सिर्फ सम्मान की अपेक्षा रखता है।
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(3) *आचार्य कौन है? :---* वास्तव में आचार्य एक स्थिति है। आचार्य अपने अति उच्च आचरण और अति उच्च चरित्र से अपने अर्जित ज्ञान की शिक्षा देता है। आचार्य के समीप जाते ही मन शांत हो जाता है और अपने आप ही कुछ न कुछ शिक्षा मिलने लगती है। उनके सत्संग से श्रद्धा उत्पन्न होती है।
आजकल तो आचार्य की डिग्री मिलती है जिसको पास करने वाले स्वयं को आचार्य लिखने लगते हैं। कॉलेजों के प्रोफेसरों को भी आचार्य कहा जाने लगा है।
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(4) *प्राचार्य कौन हैं? :---* वास्तव में प्राचार्य उस आचार्य को कहते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि जिसे वह ज्ञान दे रहा है, वह उसे अपने आचरण में ला रहा है। आजकल तो कॉलेजों के प्रिंसिपलों को प्राचार्य कहा जाता है।
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(5) *उपाध्याय कौन हैं? :---* जो शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त की शिक्षा देते हैं, उन्हें उपाध्याय कहा जाता है। वे बदले में कोई धन नहीं मांगते पर शिक्षार्थी का दायित्व है कि वह उन्हें यथोचित यथासंभव धन, दक्षिणा के रूप में दे।
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(6) *गुरु कौन है? :---* जो हमें आत्मज्ञान यानि आध्यात्मिक ज्ञान देकर हमारे चैतन्य में छाए अंधकार को दूर करता है, वह गुरु होता है। जीवन में गुरु का प्रादुर्भाव तभी होता है जब हम में शिष्यत्व की पात्रता आती है। यथार्थ में गुरु एक तत्व होता है जो एक बार तो हाड़-मांस की देह में आता है, पर वह हाड़-मांस की देह नहीं होता। गुरु के आचरण व वचनों में कोई अंतर नहीं होता, यानि उनकी कथनी-करनी में कोई विरोधाभास नहीं होता। गुरु असत्यवादी नहीं होता। गुरु में कोई लोभ-लालच या अहंकार नहीं होता। गुरु की दृष्टि चेलों की आध्यात्मिक प्रगति पर ही रहती है।
🙏ओम परम तत्वाय नारायन गुरुभ्यों नमः🙏
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