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Friday, June 21, 2024

भाजपा की हार की समीक्षा

 भाजपा की हार की समीक्षा की जा रही है और विडंबना यह है कि समीक्षा वही लोग कर रहे है जो चुनाव से पहले भाजपा को 350 से 400 सीट दे रहे थे और वो भी "स्क्रीन शॉट ले लो" की ठसक पर तो समझ जाइये कि इस समीक्षा से क्या निकलने वाला है! भाजपा की हार की समीक्षा वही कर सकता हैं जिसने हार की भविष्यवाणी की हो, बार बार चेताया हो! 


मुझे इस बात का गर्व है कि आज तक मैने लाइक और शेयर के लिए कभी भी सनसनीखेज लिखने का प्रयास नही किया, कभी किसी विषय को प्रयोग के तौर पर भी स्टंट नही बनाया! जो भी लिखा उतना ही लिखा जो अनुभव किया! इसीलिए भाजपा की हार की समीक्षा करने का पहला अधिकार हमारा है क्योंकि शायद इस भीड़ में मैं अकेला आदमी था जो कह रहा था कि यदि राम मन्दिर निर्माण के बाद भी भाजपा बहुमत के लिए तरस जाए तो यह बहुत ही अपमानजनक होगा! वही हुआ! 


भाजपा की हार के कारण बहुत ही सरल है इन्हे ज्यादा जटिल बनाने का प्रयास नही किया जाना चाहिए, इनका विश्लेषण होना चाहिए! भाजपा की हार के मुख्यतः तीन कारण है! 


1. कम वोटिंग होना

2. गलत टिकट वितरण

3. अखिलेश यादव की शानदार जाति आधारित रणनीति


कम वोटिंग क्यों हुई इसका ना भी सोचे तो भी यह तो सोचना ही पड़ेगा कि आखिर वो कौन सा वर्ग रहा होगा जिसने वोट डालने से बेहतर छुट्टी लेकर घूमने की योजना बनाई होगी? मुसलमान तो वैसे ही भाजपा के विरूद्ध अतिउत्साह मे वोट करता है तो यह तो नही कह सकते कि मुसलमान ने वोट नही किया, आज जबकि सारे आंकड़े उपलब्ध हैं तो यह स्पष्ट हो चुका है कि हिंदू ने वोट नही किया और हिंदुओ मे भी भाजपा का कोर वोटर वोट ही नही डालने गया! उत्तर प्रदेश जैसे जटिल जातीय संरचना वाले प्रदेश में थोड़ा सा इधर से उधर होने पर परिणाम ही बदल जाता है वहाँ इस अघोषित बॉयकॉट ने विपक्ष का काम आसान कर दिया! उदाहरण के लिए मुज़फ़्फ़रनगर की सीट का विश्लेषण कर लीजिये, पिछली बार यह सीट भाजपा के संजीव बालियान ने बेहद कड़े मुकाबले में गठबंधन के उम्मीदवार और रालोद के कद्दावर नेता अजीत सिंह से मामूली अंतर से जीती थी, कम वोटिंग के चलते अबकी बार यह सीट अबकी बार गठबंधन के प्रत्याशी ने जीत ली! ऐसी लगभग 20+ सीट होगी जो भाजपा ने केवल अपने कोर वोटर की मूर्खता से गंवाई है! हिंदू 80-90% वोट करने पर उतर आये तो विपक्षी पार्टियां कयामत तक भी नही जीत पायेगी, क्योंकि क़यामत कभी नहीं आने वाली! 


दूसरा बिंदु ऐसा है कि जहाँ आम भाजपा समर्थक और आपेक्षकृत कम मुखर मोदी योगी प्रशंसक भी शर्मसार हैं, हम किसी को भी यह नही समझा सकते कि कुरुक्षेत्र से नवीन जिंदल को टिकेट क्यों दिया गया! गाजियाबाद से MLA अतुल गर्ग ने ऐसा कौन सा तीर मार दिया था कि जनरल वी के सिंह जैसे हैवी वेट नेता को हटाकर इस आदमी को लोकसभा का टिकेट दे दिया गया? कैराना लोकसभा से प्रदीप चौधरी अयोध्या से लल्लू सिंह बहुत ही अलोकप्रिय उम्मीदवार आराम से टिकेट पा भी गए और निपट भी गए! केवल UP मे 30+ उम्मीदवार ऐसे थे जो बेहद अलोकप्रिय थे, उनको लेकर भाजपा काडर मे कोई उत्साह नही था! गलत उम्मीदवारों के चयन ने भाजपा को ज्यादा सीटें हरवाई! जौनपुर से कृपाशंकर सिंह को टिकेट दिया जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नही लगता! भाजपा इस विषय पर सोचे! 


तीसरे कारण को गहराई से समझिये, यह ऐसा बिंदु है जिसका विश्लेषण करना आम फेसबुकिये की समझ से बाहर है! अखिलेश यादव के बस में केवल इतना ही था कि जातीय व्यूह रचना की जाए, इस से ज्यादा उसके पल्ले ना पहले कुछ था न आज है! जब भाजपा अपनी उपलब्धियां गिनवा रही थी उस समय मुलायमपुत्र जातीय व्यूह रच रहा था! झीवर, तेली, धोबी,  लोहार और अन्य लगभग नगन्य और राजनीतिक रूप से अछूत समाज के लोगो से मिल मिल कर उनके समाज के नेताओ को  पद बांटे जा रहे थे, जिला अध्यक्ष के पद ऐसे बांटे जा रहे थे जैसे रेवड़ी! हालात यह थे कि एक एक जिले में 50-50 जिला अध्यक्ष! मुझे इस बात का लगभग एक साल पहले से ही पता है पर यह विषय आज भी पब्लिक डोमैन मे नही है! अखिलेश की बारीक जातीय व्यूह रचना ने भाजपा के जड़ से पैर उखाड़ दिये, उनको लगता था कि 10 सालों में सब हिंदू बन गए है पर उनका अंदाजा गलत निकला! भाजपा के रणनितिकारो से मिल लेना, जहाज मे हुए इस सुराख का उन्हे आज तक कोई भान नही है! 


पोस्ट बहुत बड़ा हो जायेगा अतः आगे की किश्तों में विश्लेषण जारी रहेगा


क्रमशः ?




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