इस बार के आम चुनाव परिणाम को असम लोक सभा से समझने का प्रयास करते है।
आखिरकार असम के हिमंत बिस्व शर्मा लोकप्रिय मुख्यमंत्री है, ठीक योगी जी की तरह। माना जाता है कि वे एक कुशल प्रशासक है, बाबुओ की नहीं चलने देते, सांप्रदायिक तत्वों का तुष्टिकरण भी नहीं करते।
असम की 14 लोक सभा सीट में से भाजपा को 9, भाजपा के अन्य सहयोगी दलों को 2 सीट मिली। अर्थात, कुल 11 सीट। इसके विपरीत कांग्रेस को 3 सीट मिली।
आप कह सकते है कि भाजपा को निर्णायक जीत मिली।
लेकिन यह कम्पलीट पिक्चर नहीं है।
इस राज्य में कांग्रेस को भाजपा से अधिक वोट मिला है।
जहाँ कांग्रेस को 74.78 लाख वोट मिले, वहीँ भाजपा को केवल 74.67 लाख वोट से संतोष करना पड़ा। पिछले आम चुनावो में भाजपा को कांग्रेस से एक लाख वोट अधिक मिले थे; तब भी 9 सीट मिली थी।
दूसरे शब्दों में, अगर भाजपा का एक समूह भी किसी बात से रुष्ट होकर असम में वोट देने नहीं निकलता, या कांग्रेस को वोट दे देता, तो स्थिति पलट जाती।
तभी मुख्यमंत्री हिमंत ने कहा था कि कांग्रेस केवल एक समाज की पार्टी बनकर रह गयी है (शर्मा जी ने सीधा नाम लिया था)।
अब यूपी की स्थिति देखते है। यहाँ भाजपा को 3.63 करोड़; सपा को 2.95 करोड़ एवं कांग्रेस को 83 लाख वोट मिले। सपा-कांग्रेस को 3.78 करोड़ वोट मिले। भाजपा-अपना दल-RLD को 3.8 करोड़ वोट मिले।
परिणाम सबको पता है।
अब आते भारत के सन्दर्भ में आंकड़ों की।
भाजपा को 23.60 करोड़ वोट, तो कांग्रेस को 13.67 करोड़ वोट मिले।
पिछले चुनावो में भाजपा को 22.90 करोड़ वोट, तो कांग्रेस को 11.95 करोड़ वोट मिले थे।
दूसरे शब्दों में, भाजपा ने 70 लाख वोट की वृद्धि की है; लेकिन कांग्रेस 1.72 करोड़ अधिक जोड़ लिया।
2019 की तुलना में अकेले यूपी में भाजपा को 65 लाख वोट कम मिले है।
असम एवं यूपी का परिणाम बतला रहा है कि अगले समाज ने यह सोच लिया है कि कुछ भी हो जाए, उसे कांग्रेस को वोट देना है।
यह आपको सोचना है कि क्या आप जाति के नाम पर या किसी अन्य बात पर रुष्ट होकर अपना वोट इधर-उधर दे देंगे?
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