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Wednesday, June 26, 2024

हो गया स्पीकर का चुनाव, कांग्रेस ने निकाल ली भंडास, बोलते हुए न सोचते हैं और न गिरेबान में झाँकते है

 हो गया स्पीकर का चुनाव,

कांग्रेस ने निकाल ली भंडास,

बोलते हुए न सोचते हैं और 

न गिरेबान में झाँकते है - 


कांग्रेस ने स्पीकर पद के लिए ओम बिरला का विरोध करते हुए सामने से के सुरेश को चुनाव में उतार दिया - क्योंकि के सुरेश दलित हैं, बस कांग्रेस जिद पकड़ गई कि हमारे सुरेश को सरकार समर्थन दे और जब नहीं दिया तो भाजपा को प्रमाणपत्र दे दिया “दलित विरोधी” होने का - ये ऐसे बात करते हैं जैसे स्कूल में लड़के एक दूसरे से झगड़ा करते हैं -


के सुरेश का भाजपा द्वारा समर्थन न करने पर तो उसे दलित विरोधी बता दिया लेकिन यह भूल गए कि राष्ट्रपति पद के चुनाव लिए जो दलित चेहरा रामनाथ कोविंद भाजपा ने उतारा था, उसका कांग्रेस ने विरोध किया था - तो फिर कांग्रेस “दलित विरोधी” कैसे न हुई -


इसके बाद आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को जब राष्ट्रपति पद के चुनाव में भाजपा ने उतारा तो उनका तो कांग्रेस और विपक्ष के अन्य नेताओं ने द्रौपदी जी का भरपुर मज़ाक उड़ाया और कांग्रेस के एक नेता अजोय कुमार ने उन्हें Evil Philosophy की प्रतिनिधि बताया था और कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने उनके विरोध में वोट दिया - क्यों न कहा जाए कि कांग्रेस और विपक्ष “आदिवासी विरोधी” है -


अब दूसरा मामला उपाध्यक्ष (Dy Speaker) का - अनेक बार विपक्ष का नेता Dy Speaker रहा है लेकिन यह परंपरा भी कांग्रेस के समय में टूटी थी - 14th और 15th लोकसभा में गुलाम नबी आज़ाद और पवन बंसल कांग्रेस के Dy Speaker थे और स्पीकर भी सत्ता पक्ष के थे -


ये परंपरा केवल लोकसभा के लिए नहीं कही जा सकती, यह तो विधान सभाओं में भी लागू होनी चाहिए लेकिन ऐसा है नहीं क्योंकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने दोनों पद अपने पास रखे हुए हैं - बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश सभी राज्यों में स्पीकर और उपाध्यक्ष के पद सत्ता पक्ष के पास ही हैं - इसलिए कुछ मांगने से पहले अपने गिरेबान में भी झाँक लेना चाहिए -


आज ओम बिरला जी को स्पीकर बनने पर जितनी बधाई दी राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने उन्हें, उससे ज्यादा उन्हें ताने मारे - राहुल गांधी का वही पुराना राग कि संविधान की रक्षा में आपसे मदद की उम्मीद है और अखिलेश ने कहा कि सदन से निष्कासित करना फिर से शुरू न हो - इसका मतलब साफ़ था कि हम जितना मर्जी हंगामा करें और चाहे प्रधानमंत्री को भी न बोलने दें, आप आंखे बंद करके हमें देखते रहो - अपने तरफ देखते नहीं विपक्षी, परसो ही राष्ट्रगान के समय राहुल गांधी मौजूद नहीं थे और ख़तम होने बाद ही आए; फिर कहते हैं संविधान की रक्षा करेंगे -


सदन के शांति से चलने की उम्मीद तो न के बराबर है लेकिन फिर देखते हैं विपक्ष किस हद तक गिरेगा हंगामा करने के लिए - हंगामा करने वालों को तो मार्शल से उठवा कर बाहर करवा देना चाहिए क्योंकि सदन की कार्रवाई पर करोड़ों रुपया खर्च होता है -




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