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Friday, July 5, 2024

जो चुनाव आयोग 2014 में 300 करोड़ की जब्ती करता है, वो चुनाव आयोग 2019 में 3500 करोड़ और इस बार 10000 करोड़ चुनाव में जब्त करता

 जो चुनाव आयोग 2014 में 300 करोड़ की जब्ती करता है, वो चुनाव आयोग 2019 में 3500 करोड़ और इस बार 10000 करोड़ चुनाव में जब्त करता है।

सोचने वाली बात है कि "बिका" हुआ चुनाव आयोग 2014 में 300 करोड़ ही कैसे जब्त कर पा रहा था और अब कैसे 10000 करोड़ जब्त कर गया?


इसी तरह 2014 के चुनाव में 30000 करोड़ का खर्च हुआ बताया जाता है जो 2019 में 60000 करोड़ और इस बार 120000 करोड़ का चुनाव था।

हालांकि आधिकारिक डेटा में बताया गया कि 2014 में करीब 4000 करोड़ और 2019 में 9500 करोड़ खर्च हुए और इस बार का आंकड़ा आना बाकी है।


ये सब इसलिए बता रहा हूँ कि याद कीजिये मोदी जी का टेम्पो में भर भरकर पैसे पहुंचाने वाला बयान? मोदी जी कोई भी बात यूं ही हवा में नहीं कहते हैं उस बात का कोई ना कोई तो उनके पास स्रोत था

आजकल ऐसे लोग कार्ड बांट रहे हैं।


इनकी समस्या मोदी से ये है कि जिस समय इन्हें पश्चिम के साथ मिलकर तेल पर मोनोपली कर पैसा छापना था, उस समय मोदी उस आम जनता के लिए दुनिया भर की दुश्मनी लेकर, रूस से तेल खरीद रहा था। रिलायंस अरामको डील तो आपको याद ही होगी।


और यदि मोदी सरकार तमाम दुश्मनी न उठाकर वही करती जैसा सब चाह रहे थे कि रूस से कोई सौदे नही तो आज आपको तेल 120 से 150 रुपये लीटर मिल रहा होता।(तब किस स्तर की छाती कूटी जाती और चुनाव में इसका क्या असर होता, आप समझ सकते हैं)

और इतना अच्छा मौका था ऐसे समय मे पैसे छापने का क्योंकि जब 100 रुपये के तेल पर यदि मार्जन 20 रुपये बनता है तो 150 पर 30 रुपये मार्जन निकलता है तो सीधे सीधे मोदी सरकार ने कितने हजार करोड़ का चूना इन्हें लगाया होगा, आप समझ सकते हैं।


और यही वो वजह फिर बनी होगी जिस कारण टेम्पो से पैसा भर भरकर जा रहा था जिसमें चुनाव आयोग ने अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा धन जब्त किया है लेकिन फिर भी बड़ी मात्रा में पैसा जहां पहुंचना था, पहुंचा ही।

और चुनाव आयोग की भूमिका भी संदिग्ध ही रही है जब उसने ऐसे दिनों पर चुनाव कराए जिसके आगे पीछे पहले ही छुट्टी वाले दिन थे और खुद बाद में स्वीकार किया कि हमसे गलती हुई जिसे आगे ध्यान रखेंगे।।


हालांकि इसमें गलती भाजपा की भी रही जिन्होंने इसपर आपत्ति नही उठाई कि ऐसे दिन क्यों चुने हैं क्योंकि सबको(विपक्ष को भी) लग रहा था कि चुनाव एकतरफा ही हैं इस बार के।


अंत मे ये बता दूं कि मोहन भागवत से मिलना और फिर उस सोनिया से मिलना जिसके बेटे ने 10 साल लगातार अम्बानी-अडानी किया है, इत्तेफाक न समझा जाये। महाराष्ट्र चुनाव भी आ रहे हैं और बहुत से खेल कार्ड देने के नाम पर खेले जा सकते हैं।

क्योंकि अंततः सारे लोग सबक तो एक ही जोड़ी को सीखाना चाहते हैं।।




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