यह देश के लोकतांत्रिक इतिहास का यह पहला मौक़ा है जब प्रधानमंत्री पद, उसका आभामंडल और यह देश लगातार एक दशक से अधिक समय तक गांधी नेहरू परिवार के बिना चल रहा है।
इस देश को अपनी रियासत और अपने आप को राजा समझने वाला यह परिवार और इसके चट्टे बट्टे इस बार सत्ता न मिलने से बिलकुल पागल हो उठे हैं। जैसे पानी में साँस रोककर बिना छटपटाये ज़िंदा रहने की एक छोटी सी समय सीमा होती है, उसी तरह कांग्रेस और उनके चट्टों बट्टों की यह समय सीमा एक दशक में समाप्त हो चुका है।
अब यह ये मानसिक दिवालियापन हो चुके हैं। जिस देश का निर्माता होने का यह दावा करते रहे हैं, वह न मिलने की स्थिति में उसे बेचकर खाने, उसे बर्बाद करने, उसमें आग लगाने में भी यह संकोच नहीं करने वाले।
इनको आज तक विश्वास नहीं हो रहा है कि यह देश इनके बिना भी चल सकता है। इसलिए यह देश में आग लगाकर यह साबित करने में लगे हैं कि इनके बिना कुछ चलने वाला नहीं है। सेंस वैल्यू नहीं बची तो न्यूसेंस वैल्यू साबित करना चाहते हैं। उसके लिए झूठ बोलना पड़े, हिंदू समाज को विभाजित करना पड़े, उनको गाली देना पड़े, संसद में अहमक व्यवहार करना पड़े, सब करेंगे लेकिन ये अपनी न्यूसेंस वैल्यू साबित करके रहेंगे।
कांग्रेस और राज परिवार सत्ता के लिए तड़प रहा है, भयानक तौर पर कुंठित हो चुका है, मानसिक दिवालियापन हो चुका है लेकिन शायद इनको नहीं पता कि घाघरा उठाकर मुँह ढकने से इज़्ज़त जाती ही है, बचती नहीं है।
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