मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस : संपादकीय
मुस्लिमों की खुशामद में करोड़ों हिंदुओं को आहत कर गए राहुल.
संसद के भीतर कुछ भी बोलने पर चूंकि मानहानि का मुकदमा नहीं लग सकता इसलिए अनेक सांसद वहां बहुत कुछ ऐसा बोल जाते हैं जो बाहर आकर बोलने का साहस नहीं करते. गत दिवस लोकसभा में बोलते हुए नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी कुछ बातें ऐसी कही जो बाहर बोलने पर उनके विरुद्ध प्रकरण दर्ज हो सकता है. श्री गांधी के उक्त भाषण की काफी चर्चा हो रही है जिसमें उन्होंने कहा कि जो लोग अपने को हिन्दू कहते हैं वे हिंसक हैं और असत्य का सहारा लेते हैं. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समूचे हिन्दू समाज को हिंसक कहे जाने पर आपत्ति की तब वे पलटी मारते हुए बोले उन्होंने तो भाजपा को लेकर कहा था. उसके बाद उन्होंने भाजपा और रास्वसंघ पर हिंसा फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी, भाजपा और संघ हिंदुओं के ठेकेदार नहीं है. प्रधानमंत्री से मुखातिब होकर वे यहां तक बोल गए कि आप लोग हिन्दू हो ही नहीं. वैसे श्री गांधी ने अन्य विषयों पर भी सरकार को घेरने का प्रयास किया किंतु सबसे ज्यादा विवाद हिंदुओं को हिंसक कहने वाली बात पर हुआ. ऐसा लगता है जोश -- जोश में वे होश खो बैठे. नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अपने प्रथम भाषण से उन्होंने पप्पू की छवि से निकलने की जो कोशिश की वह फुस्स हो गई. हिंदुओं को हिंसक कहने के बाद भले ही उन्होंने बात को संभालने का भरपूर प्रयास किया किंतु उनकी जुबान से निकले ये शब्द वापस नहीं आ सकते थे कि अपने को हिन्दू कहने वाले हिंसक होते हैं और असत्य का सहारा लेते हैं. प्रधानमंत्री से ये कहना भी कि आप हिन्दू हो ही नहीं इस बात का परिचायक है कि 54 साल के हो जाने के बाद भी उनमें न गंभीरता है और न ही परिपक्वता. अन्यथा श्री मोदी को हिन्दू न बताना सिवाय मूर्खता के और क्या हो सकता है? और वह भी उन जैसे व्यक्ति द्वारा जिसके अपने धर्म की कोई प्रामाणिकता ही नहीं है. भाजपा और संघ को हिंसक बताना भी उस नेता को शोभा नहीं देता जिसकी पार्टी पर हजारों सिखों के नरसंहार का आरोप हो और उसके कई नेता और पूर्व मंत्री अदालत द्वारा दंडित हो चुके हैं. कुछ पर अब तक मुकदमा चल रहा है. उस नरसंहार के औचित्य को सिद्ध करने संबंधी उनके स्वर्गीय पिता राजीव गांधी की वह टिप्पणी शायद वे भूल गए कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है. असल में उनके भाषण का निहित उद्देश्य भाजपा से हिंदुत्व का मुद्दा छीनना था किंतु रामभक्तों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश और सनातन की तुलना डेंगू और कोरोना से करने वाली द्रमुक के साथ बैठने वाले राहुल यदि हिंदुओं को हिंसक बताएं तो वह संगत का असर है या गठबंधन की मजबूरी ये वही बेहतर जानते होंगे. लेकिन उनमें हिम्मत है तो उन लोगों को हिंसक बताने की जुर्रत करें जो सिर तन से जुदा के नारे लगाते हैं. नेता प्रतिपक्ष के मुंह से प. बंगाल और केरल में आये दिन होने वाली राजनीतिक हत्याओं के बारे में शायद ही एक शब्द किसी ने सुना हो. इसका कारण वहां की सत्ता में बैठी तृणमूल कांग्रेस और वामपंथियों का इंडिया गठबंधन का सदस्य होना है. इसी तरह क्या वे उद्धव ठाकरे को हिंसक कह सकते हैं जो हिंदुत्व को लेकर भाजपा से कहीं अधिक आक्रामक और मुखर रहे हैं. श्री गांधी के पास इस बात का क्या उत्तर है कि अचानक उन्होंने सावरकर का नाम लेना क्यों बंद कर दिया? सही बात ये है कि जबसे शरद पवार ने सावरकर की आलोचना से महाराष्ट्र में राजनीतिक नुकसान होने का भय दिखाया, श्री गांधी ने डर के कारण उनका नाम लेना बंद कर दिया. द्रमुक तो खैर, अलग पार्टी है लेकिन कांग्रेस पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे ने भी जब सनातन विरोधी बयान का समर्थन किया तब भी श्री गांधी शांत रहे. कभी खुद को जनेऊधारी सारस्वत ब्राह्मण प्रचारित करने वाले राहुल ने हिंदुओं को हिंसक बताकर उस मुस्लिम वोट बैंक के तुष्टीकरण का दांव चला है जो श्री मोदी को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए इंडिया गठबंधन के पक्ष में पूरी तरह गोलबंद हो गया था. लेकिन इस कोशिश में उन्होंने करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को आहत कर दिया. आश्चर्य की बात है उद्धव ठाकरे और उनके बड़बोले प्रवक्ता संजय राउत ने अब तक अपने को हिन्दू कहने वालों के हिंसक होने वाले श्री गांधी के विचार पर प्रतिक्रिया नहीं दी.
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