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Monday, July 1, 2024

रार नई ठानूँगा

 रार नई ठानूँगा 😎

कल की महान विजय के बाद तमाम भावनाएं उमड़ रही हैं, यह अद्भुत अवसर है। मैं इस विजय को एक नए नजरिए से देखता हूं। हम सबने गौर किया है कि बीते वर्षों में भारतीयों का मिजाज बदल रहा है, अब तेवर नए हैं, आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है।


स्वीकार करना कठिन है, लेकिन अतीत का प्रभाव हमेशा वर्तमान पर रहता है। भारतवर्ष को आजाद हुए पौन सदी बीत चुकी है, कई पीढ़ियां इस दौरान युवा होकर गुज़र गईं, लेकिन अतीत के साये उन पर हावी थे।


हम पहले भी जीता करते थे, लेकिन उनमें अक्सर किसी एक व्यक्ति का जबरदस्त प्रयास, दृढ़ इच्छा शक्ति या संयोग महत्वपूर्ण कारक होते थे। पर आज देश का मिजाज बदल गया है, हम अब जीतने को अपना हक समझने लगे हैं। जीतना एक आदत बन रही है, हमारी सामूहिक चेतना बदल रही है, अब हर खिलाड़ी बराबरी से लड़ता है।


पिछले विश्व कप फाइनल में हार के बाद प्रतिक्रिया अलग थी। पहले हम भावनात्मक रूप से कमजोर हुआ करते थे, बड़ी हार होने पर गम में डूब जाना और उसका प्रभाव लंबे समय तक दिखना आम था। लेकिन अब हार के बाद खिलाड़ी पलट कर आते हैं,  वे अपमान याद रखते हैं, लम्बी तैयारी करते हैं और क्रोध पालते हैं।


ऐसा ही कुछ चुनाव के बाद भी देखने में आया। जब अटल जी की हार हुई थी तो लोग जल्द ही भूल गए थे। लेकिन इस बार परिणाम देख कर जो अब तक शांत थे, वे भी मुखर हो गए, आने वाले मुकाबले की तैयारी में लग गए। हार से कंधे झुकाने की जगह पलटवार की इच्छा जागृत हुई।


ये जो नए तेवर और तिलमिलाहट हैं ना, यही हमें आगे ले जाएंगे। मैंने सिर्फ दो उदाहरण दिए हैं, लेकिन ऐसा हर क्षेत्र में हो रहा है। जैसे अंतरिक्ष क्षेत्र में चन्द्रयान की विफलता के बाद हमने जबरदस्त वापसी की। ऐसी मिसालें अभी सीमित हैं, लेकिन महत्वपूर्ण ये है की इनकी संख्या बढ़ रही हैं।


जब एक समाज जीत को आदत बना लेता है। हार के बाद पलटवार करने और अगले मुकाबले का अवसर खोजने लग जाता है, रार ठानना सीखता है, तब उसका भविष्य उज्जवल हो जाता है। हार जाना बुरा नहीं है, हार मान लेना बुरा है। 


नया भारत प्रोफेशनल है, वह हार नहीं मानता, भावनाओं को काबू कर दुगुने जोश से भिड़ता है, अपने निजी जीवन और प्रोफेशन को अलग रखना जानता है। ऐसा जज्बा बड़ी मुद्दत के बाद आता है, लेकिन जब आता है तो कल की तरह कमाल करता है।




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