बालक बुद्धि का अर्थ मासूम या अबोध बुद्धि से नही बल्कि जिद्दी और हठी होने से है।
जैसे बच्चे की अल्पबुद्धि को सीखाना, समझाना मुश्किल होता है, वही हाल इस का है।
इसके दिमाग में जो फितूर इसके आका डाल देते हैं, ये वही जिद्द पकड़ लेता है।
गौरव भल्ला ने एक इंटरव्यू में बताया था कि बिहार के किसी नेता ने इसके दिमाग मे जातिगत जनगणना का फितूर भर दिया था और उसके बाद से ये हर जगह वही करने लग गया। बाकी, जब ऐसा फितूर डाला जाता है तो फिर असली प्लेयर्स सामने आते हैं जो इसके डिस्ट्रक्टिव दिमाग का उपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं।
इसको तो इतना भी नही पता कि इसको चला कौन रहा है। ऐसे ही लोग टुकड़े गैंग के कन्हैया को ला, सीनियर कांग्रेसियों पर छोड़ दिए और वो बेचारे पार्टी छोड़ने से लेकर गुमनामी में चले गए जिन्होंने वर्षों कांग्रेस को दिए थे।
विदेशी शक्तियां इसी तरह तो खेल खेलती हैं वरना बाहर से बैठकर चुनावी बारीकियों का अध्ययन कहाँ होता है। जैसे हम जितना अमेरिकी चुनाव को जानते हैं, उतना ही तो वो भारतीय चुनाव को। लेकिन क्या जितना हम जानते हैं बस वही अमेरिकी चुनाव में विनिंग फार्मूला है?
जवाब है नहीं, जब तक कोई अमरीकी विभीषण आकर न बताए कि स्थानीय स्तर पर कौन से मुद्दे इंपैक्ट डालेंगे।
ये जो इधर दूसरों की पेरोल पर बैठे हैं और कांग्रेस पर कब्जा कर चुके हैं, इन्ही की मदद से विदेशी शक्तियां अपना काम निकालती हैं और जब एक पार्टी में ऐसा बालक बुद्धि हो जिसके अंदर बस फितूर भर डालना हो तो काम आसान हो जाता है। गिरीराज सिंह ने तो एक बार कहा भी था कि चीन इससे दो चॉकलेट में अपनी बात मनवा लेगा, इस लेवल का है ये।
मनमोहन जैसा भी था लेकिन उसे पता तो था कि वो क्या कर रहा है। कहते हैं कि जब मनमोहन ने लगातार जलील होने के बाद स्तीफा देने का मन बना लिया था तो कुछ लोग मनमोहन के पास गए कि क्या कर रहे हो? सोनिया अपने लाल को कुर्सी पर बिठा देगी और देश की ऐसी तैसी हो जाएगी। तब जाकर मनमोहन ने अपमान का घूट पीकर भी कुर्सी संभाली रखी। शायद तभी मनमोहन ने कहा था कि "हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखती है"।
हालांकि मैं मनमोहन को कोई महान नही बता रहा क्योंकि वो एक रीढ़विहीन प्रधानमंत्री ही रहा जिसके पास दूसरा नरसिम्हा राव बनने का ऑप्शन था, पर ये काम उन्होंने अच्छा किया था जब इस को सत्ता सौंपने से मना कर दिया।
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