परसों लोकसभा में मोई जी ने अपने भाषण में खांग्रेस के इकोसिस्टम का जिक्र किया.
और, मोई जी ही क्यों... भाजपा और संघ के लगभग सभी नेता और प्रवक्ता खान्ग्रेसी और वामपंथी इकोसिस्टम की बात करते रहते हैं.
हालाँकि, मैं भाजपा का कट्टर समर्थक हूँ और मोई जी का बड़का वाला अंधभक्त हूँ..
लेकिन, ये जितना सच है... उतना ही सच ये भी है कि... मोई जी अथवा भाजपा प्रवक्ताओं के मुँह से इकोसिस्टम की बात सुनते ही मेरे तन-बदन में आग सी लग जाती है.
अरे भाई... सरकार में आप हो पिछले 10 साल से.
आपके पास हर वो मशीनरी है जिससे इस इकोसिस्टम को छिन्न-भिन्न किया जा सकता है.
लेकिन, आज 10 साल के बाद भी अगर आप उनके इकोसिस्टम का रोना रोते हो...
तो फिर, आप किससे आशा कर रहे हो कि वो इस इकोसिस्टम को खत्म करे ???
चलो, किसी कारण आप उनके इकोसिस्टम को ध्वस्त करने में असमर्थ हो तो भी कोई बात नहीं...!
पिछले 10 सालों में आपको किसने रोका था उनसे बेहतर और मजबूत इकोसिस्टम बनाने से ???
आपके पास पैसा है, पावर है, लोग हैं, सरकार तक है.
फिर भी, क्या आप अपना एक इकोसिस्टम तक खड़ा नहीं कर सके ???
इको सिस्टम मतलब कि... अपने पास पिछले 10 सालों तक हर संसाधन रहने के बाद भी ... आप अपने फेवर के 100-50 जज, वकील, NGO, पत्रकार, यू ट्यूबर, ट्विटर हैंडल, फेसबुक id तक जुगाड़ नहीं कर सके ????
चलो, ये भी जुगाड़ न कर सके तो कोई बात नहीं...
क्या आपसे ये जुबेरवा और वो जर्मन राठी तक नहीं संभाला जा रहा है जिसके लिए शायद मंत्रालय का एक फोन कॉल ही काफी होता ????
हद तो ये है कि.... अपना इकोसिस्टम तो जाने दो...
यहाँ, सोशल मीडिया पर ही हजारों लाखों ऐसे समर्थक हैं जिन्हें अगर प्रोत्साहन दिया जाए और सिर्फ उनकी id न उड़ने और उनपर FIR न होने की गारंटी दी जाए...
तो, वे ही सारे यू ट्यूबर और खांग्रेसियों की चिन्दी-चिन्दी बिखेर देने के लिए काफी हैं.
लेकिन, ये मजाक नहीं तो और क्या है कि.... आपके सरकार में रहते हुए ही कभी आपके समर्थकों की रिच शून्य कर दी जाती है तो कभी id ही उड़ा दी जाती है.
ऊपर से किसी पर FIR आदि होने पर सबसे पहले पल्ला आप ही झाड़ लेते हो.
शायद यही कारण है कि... पिछले दो चुनावों में खान्ग्रेसी बयानों के बाद उसके 10 पुश्तों तक का इतिहास खोद निकालने वाले सोशल मीडिया कार्यकर्त्ता इस बार के चुनाव में लगभग निष्क्रिय रह गए..!
पता नहीं सरकार और पार्टी ने किस आदमी को सोशल मीडिया प्रभारी बना रखा है कि.... उससे अपने नए नैरेटिव गढ़ना तो दूर... दुश्मनों के नैरेटिव का उत्तर भी नहीं जाता है.
तो, क्या ये समझा जाए कि देश की 140 करोड़ की जनसंख्या में भाजपा को अथवा सरकार को एक आदमी भी ऐसा भी नहीं मिल पाया जो यह काम कर सके ????
असल में मुझे लगता है... भाजपा एवं उनके नेतागण वामपंथियों से "करेक्टनेस" के सर्टिफिकेट के लिए इतने लालायित रहते हैं कि... उनसे चाह कर भी अपनों का सपोर्ट नहीं हो पाता है.
या फिर ये भी हो सकता है... भाजपा एवं सरकार में बैठे लोगों को सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र बनने का कुछ ज्यादा ही शौक चर्राया हुआ है.
तो, साहेबान... राजा हरिश्चन्द्र बनना है तो बेशक बनो...
लेकिन, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र बनने से पहले एक बार उनकी कहानी जरूर दुहरा के पढ़ लेना कि भले ही बाद में उन्हें स्वर्ग मिल गया हो लेकिन जीते जी तो ....
सत्यवादिता के कारण कैसे राजा हरिश्चंद्र का राज-पाठ चला गया था, पत्नी बिक गई थी और एकलौते पुत्र तक को सांप काट लिया था.
मतलब कि... अभी कलयुग में ज्यादा राजा हरिश्चंद्र बनने की कोशिश करोगे तो आपका भी राज-पाठ चला जायेगा.. पत्नी बिक जाएगी और आपके पुत्र को सांप काट लेगा.
बाद में भले आपको स्वर्ग (अच्छा आदमी होने का खिताब) मिल जाए तो मिल जाए.
इसीलिए, मेरा निवेदन है कि यदि अपना राज-पाठ बचाए रखना है और पुत्र को सांप से नहीं कटवाना है तो बेहतर है कि....
उनके इकोसिस्टम का रोना छोड़कर जल्द से जल्द उनसे बेहतर और अच्छा इकोसिस्टम बनाओ.
ताकि, कल को हम भी छाती तानकर कह सकें कि.... साली, "सरकार किसी भी रहे.
सिस्टम तो अपना ही रहेगा."
क्योंकि, लंबे समय से इतने सर्वशक्तिमान एवं हर तरह से समर्थ रहने के बावजूद भी दुश्मनों के इकोसिस्टम के सामने बेबस दिखना आपको शोभा नहीं देता है.
जय महाकाल...!!!
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