राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद सेंगोल के नाम और संदर्भ पर बहस छिड़ गई तो क्या हुआ ? इस कार्यकाल में किसी न किसी के नाम पर या किसी न किसी के काम पर बहस छिड़ेगी ही । तभी तो अठारहवीं संसद में कार्रवाई आगे बढ़ेगी ? अब 234 लाए हैं , खुद भी 99 का पहाड़ा पढ़ आए हैं तो अब न बोले तो कब बोलेंगे ?
सत्र पहला है और जोश गहरा है तो हो जाने दीजिए राजशाही और राजदंड के प्रतीक सेंगोल पर भी बहस ? अब जिस दिन ओम बिरला अध्यक्ष चुने गए , विपक्ष ने प्रत्याशी खड़ा किया , पर मत विभाजन नहीं मांगा । तो उसी दिन अध्यक्ष ने आपातकाल पर प्रस्ताव रखकर मौन क्यों रखवाया ? अगले दिन रखवा लेते ? अब उसी दिन रखवाया तो सैंगोल भी आया ? अब राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी आपातकाल का जिक्र होगा तो सेंगोल का जवाब भी दीजिए ?
बात साफ है , संसद चलेगी , इसी तरह चलेगी , चलती रहेगी । सेहत के लिए अच्छा रहेगा , यह ख्वाब देखना छोड़ दीजिए कि एनडीए टूट जाएगा । सत्ता से जुड़े दल क्यों टूटेंगे भला ? और किसलिए टूटेंगे ? क्या विपक्ष में बैठने के लिए या विपक्ष में नंबर 29 और 30 बनने के लिए । एनडीए दस सालों से चल रहा है । हां , शिवसेना और अकाली दल जैसे नैसर्गिक साथी छोड़कर गए पर कईं अन्य आन मिले । हमारा मानना है कि इस कार्यकाल में कुछ बिंदुओं पर एनडीए ने आम सहमति बनाकर विकास और रोजगार के मुद्दों पर स्पीड बढ़ाई तो यह गठबंधन पूरे पांच साल चलेगा ।
इस समय सबसे बड़ा मंथन सत्तारूढ़ भाजपा में चल रहा है । भाजपा से यूपी और महाराष्ट्र में हुई हार पचाई नहीं जा रही । साथ ही यह सवाल भी गंभीरता से उठाया जा रहा है कि तीन महीने पहले राजस्थान में सरकार बनाने वाली बीजेपी ने 11 लोकसभा सीट कैसे गंवा दी ? यूपी में बीजेपी ने इतना कैसे गंवाया इसकी रिपोर्ट आलाकमान को मिल गई है । बीजेपी जैसा अंदरूनी संकट दोनों शिवसेनाओं में भी है और एनसीपी में भी । और अकाली दल ? वहां तो अस्तित्व ही खत्म हो गया । आम आदमी पार्टी का संकट और भी बड़ा है । मायावती बेचैन हैं और ममता पिंड छुड़ाने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा कर रही हैं ।
पार्टियों के भीतर यह सब चलता रहेगा । सेंगौल जैसे सवाल संसद के भीतर उठते रहेंगे । यों तो संसद संवाद का सबसे बड़ा मंच है । लेकिन विवाद का सबसे बड़ा मंच भी अब संसद ही बन गई है । इन दिनों राहुल का उत्साह देखने वाला है । संसद में वे सचमुच गंभीरता पूर्वक पेश आएं , तंज छोड़ें और जिम्मेदार सांसद बनें यह हमारी कामना है । हालांकि मीठा या टु दा प्वाइंट बोलने की उन्हें आदत नहीं है ।
जाहिर है लीडर ऑफ़ अपोजिशन बने हैं तो आदत डालनी पड़ेगी । सत्तापक्ष और खासकर प्रधानमंत्री को भी राहुल , कांग्रेस और विपक्ष को हल्के में लेने की नीति छोड़नी पड़ेगी । देखिए विपक्ष की स्थिति अब पिछली दो बार वाली नहीं । संसद में व्यंग , तंज और प्रहार बहुत हो लिए । विघटन बहुत हुआ , आइए अब निर्माण कीजिए । सहमति के आधार पर राष्ट्र को गति प्रदान करने का सबसे बढ़िया समय अब एकदम सामने खड़ा है ।
No comments:
Post a Comment