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Monday, September 30, 2024

अरिहंत पनडुब्बी

 ✅जब भारत ने अरिहंत पनडुब्बी बनाई थी तो दुनिया का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था क्योंकि यह भारत की पहली परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी थी। परमाणु पनडुब्बियों की खासियत यह होती है कि यह न्यूक्लियर रिएक्टर द्वारा अपना फ्यूल खुद पैदा करती है और इन्हें बार-बार फ्यूल लेने के लिए बाहर नहीं आना पड़ता और यह महीनों तक पानी के अंदर विचरण कर सकती है जिसके कारण इनकी पोजीशन का दुश्मन देश को पता ही नहीं चलता।


फिर भारत ने बनाई आईएनएस अरिघाट जो कि अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बी का उन्नत संस्करण है। यह विशाखापत्तनम में शिप बिल्डिंग सेंटर में परमाणु पनडुब्बी बनाने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (एटीवी) परियोजना के तहत भारत द्वारा बनाई गई दूसरी परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है और इसका कोड नाम S3 है।


इसके अवतरण के बाद दुनिया के कान खड़े हो गए। रूस अमेरिका फ्रांस जर्मनी जैसे देशों को समझ लगनी शुरू हो गई कि अब भारत उनका ग्राहक नहीं रहा। 

लेकिन जिस तेजी से भारत ने अपनी तीसरी परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी जो की अरिघाट का भी बाप है और जिसको अगले 6 महीनो में लॉन्च करने की योजना बनाई है उससे दुनिया की  सभी महाशक्तियों को पसीना आना शुरू हो गया है जिसके दो कारण है:

1. यह पनडुब्बी परमाणु हथियारों  से लैस होकर समुद्र के अंदर ही अंदर किसी भी देश की सीमा के पास पहुंचकर परमाणु मिसाइल (ब्रह्मोस) को लांच कर सकती है जिसे रोक पाना किसी भी देश के लिए असंभव है और परमाणु बम कितनी तबाही मचाएगा उस विषय पर ज्यादा डिटेल में जाने की जरूरत नहीं है।

2. दूसरा भारत जितनी तेजी से परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है उससे बड़े से बड़ा ताकतवर देश भी भारत की ताकत के आगे आने वाले समय में बेबस और नतमस्तक हो जाएगा।


यहां यह बताना जरूरी समझता हूं कि जहां एक और भारत कभी जर्मनी, कभी फ्रांस और कभी रूस के आगे हाथ जोड़कर एयर प्रोपल्शन वाली पनडुब्बियों के लिए याचक बनकर हाथ जोड़ रहा है वहीं भारत स्वयं  परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बीयों का तेजी से निर्माण कर रहा है। 


जल्द ही भारत एयर प्रोपल्शन वाली पनडुब्बियों के निर्माण की तकनीक का भी स्वयं ही विकास कर लेगा। 


हां हां ऐसा है विश्वास ❗

हम होंगे कामयाब ❗

एक दिन ❗


ऐसे और पोस्ट देखने के लिए 

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*विचारणीय : मुसलमान कहां दोषी है*

 *विचारणीय : मुसलमान कहां दोषी है*  

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      अभी अभी एक मामला आया था जिसमे एक आदेश जारी हुआ था कांवड़ मार्गो पर दुकानदारों को अपना वास्तविक नाम लिखने का।उसमे मैंने एक चीज नोटिस की कि कही भी दुकानदारों ने इस आदेश का बड़े स्तर पर विरोध नही किया,यहाँ तक कि मुस्लिम दुकानदार भी आसानी से इस आदेश का पालन करने लगे।उन्होंने अपनी दुकानों के बाहर,रेस्टोरेंट व ढाबो के बाहर अपने नाम लिखवा दिए।

*अगर किसी स्तर पर विरोध हुआ तो राजनैतिक स्तर पर।सबसे मजे की बात ये रही सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका किसी मुस्लिम ने दायर नही की।याचिका दायर की एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक NGO ने।ओर सुप्रीम कोर्ट में इस NGO के वकील थे कांग्रेस नेता अभिषेक मनुसिंघवी।*


आज इसी प्रकरण में मेरी बात एक मुस्लिम व्यापारी से हुए।मैंने उससे समुदाय विशेष स्तर पर इस आदेश का कोई विरोध न करने का कारण जाना। उसका जबाब सुनकर मैं बहुत अशांत हो गया।उसने बताया कि जनाब क्या फर्क पड़ता है नाम लिखने से । हिंदू और सिख तो हमेशा से ही उन लोगो का साथ देते हैं जो उनके  खिलाफ लड़ने के लिए उत्सुक रहते हैं  । 

*अब हमारे ख्वाजा मोइद्दीन चिश्ती साहब को ही ले लो,  उन्होंने पृथ्वीराज की बेटियों का सरेआम बलात्कार कराया और आज हिंदू उनकी मजार को चूमने को ही लालायत रहते हैं* 


अभी राममंदिर प्रकरण को ही ले ,यदि तुम्हारे हिन्दू ही राममंदिर के विरोध में खड़े नही होते तो क्या किसी मुस्लिम की हिम्मत थी जो बाबरी मस्जिद के पक्ष में खड़ा हो जाता। 

*हमारे पूर्वजों ने सिखों के गुरु गोविंद सिंह जी का सरे आम कत्ल किया, उनके बच्चों को दीवार में चुनवा दिया और आज उनकी पुश्तें हमारे तलवे चाटने को तैयार बैठी हैं ।*


आपने देखा नही कैसे वो लोग अपने गुरुद्वारों में हमे नमाज अदा करवा रहे हैं।रोजा इफ्तारी करा रहे हैं। 

*साहब तुम्हारे लोग बहुत भुलक्कड़ व लालची है।चौरासी के दंगों में कांग्रेस ने सिखों का कत्लेआम करवाया और आज सिख कांग्रेस के साथ साथ मुसलमान के तलवे चाटने को ललायत है।* 


*मुलायम सिंह ने हिंदुओं पर गोलियां चलवाई और आज हिंदू, उसके बेटे श्री अखिलेश यादव की चरण वंदना करने को लालायत हैं उनके लिए दरे बिछा रहे हैं ।* 

इसलिए साहब कोई फर्क नहीं पड़ता । अगर मुसलमान का नेम प्लेट भी लगी  हो और हिंदू को वही आम किसी मुस्लिम दुकानदार की दुकान पर ₹5 सस्ता मिल रहा है तो वह मुसलमान से ही खरीदेगा।

   आप ही के भाई,आपके हिन्दू धर्म का हिस्सा एस.सी., एस.टी. व दलित समाज के लोग जय मीम जय भीम में इतना खो गए हैं कि उन्हें इन चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता। और आप पड़े हो नाम के चक्कर में। 


*हिंदू को ₹ 5 प्रति किलो अगर सब्जी सस्ती मिले तो वो किसने थूका है किसने मुता है सब भूल जाएंगे,सामान हमसे ही खरीदेंगे।*


*मैं उसकी बात सुन सन्न रह गया और ये सोचते हुए कि हिन्दुओ की बर्बादी का वास्तविक जिम्मेदार खुद हिन्दू है या मुसलमान सोचते हुए घर वापिस आ गया।*

🤔


सादर

साभार

Sunday, September 29, 2024

"सरकारी नौकरी की मानसिकता"

 "सरकारी नौकरी की मानसिकता"


मै जब 12th पास किया उसके एक दो साल के बाद से ही अर्थात ग्रेजुएशन 2nd ईयर से ही फॉर्म भरना शुरू कर दिया था। मुझे नहीं पता था कि मुझे करना क्या है। सरकारी नौकरी की भेड़ चाल चल रही थी। घर में भी सरकारी नौकरी की घुट्टी पिलाई जा रही थी जो आज तक बदस्तूर जारी है।


कोचिंग गया तो वहां मेरे ही तरह कई स्टूडेंट्स थे वो भी इसी सरकारी नौकरी की मानसिकता और भेड़ चाल का हिस्सा बन बैठे थे। किसी भी कोचिंग जाओ तो वहां हर गधे से गधे स्टूडेंट को मोटीवेशन बहुत दिया जाता है। बच्चा मेहनत करते रहो सफलता एक दिन तुम्हारे कदम अवश्य चूमेगी। उस एक दिन के लिए स्टूडेंट 5 साल 10 साल से लगा पड़ा है पढ़ाई करने में, सफल हो गया तो ठीक और नहीं हुआ तो अंदर बहुत सारी फ्रस्ट्रेशन घर करने लगती है, उसको उसकी क्षमताओं के बारे में ही पता नहीं है। वो क्या कर सकता है, सरकारी नौकर बनने के बाहर जो अपार संभावनाएं है वो उसमे क्या बन सकता है। 


मुझे भी पता नहीं था कि क्या करना है आगे ? बस सरकारी नौकरी वाली बात शुरू से ठूसी गई थी। हम भी भेड़ चाल में कोचिंग करने लगे। ऐसा नहीं है कि कोचिंग करने से मुझे ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन बाहर बहुत कंपटीशन था, लोग बचपन से पढ़ते है तो भी ग्रेजुएशन तक मैथ और अंग्रेज़ी जैसे विषय में परफेक्शन के आस पास पहुंच पाते है। सरकारी नौकर बनने के लिए इंग्लिश और मैथ में परफेक्ट होना पड़ेगा, परफेक्ट नहीं तो उसके आस पास होना पड़ेगा क्योंकि बाहर बहुत कॉम्पटीशन है। 


जबकि सरकारी नौकरी की मानसिकता के बाहर अपार संभावनाएं है। आपको सरकारी नौकरी क्यो चाहिए ? घर चलाने के लिए ही न ? दो वक़्त की रोटी के लिए ही तो चाहिए ??? 40-50 हजार महीने की सैलरी ही तो चाहिए। बदले में आप मेहनत करने को भी तैयार है तो क्यो सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहे है ? मैंने अपने कई मित्रो को देखा है जो बीटेक करके भी प्लेसमेंट नहीं प्राप्त कर सके, उसके बाद सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग कर रहे है, उसके बाद ग्रुप डी का भी फॉर्म भर रहे है। मतलब इस हद तक कॉम्पटीशन है। एक बीटेक वाले को नहीं पता कि उसे क्या करना है। उसे 5 लाख खर्च करके ग्रुप डी का फॉर्म भरते देखता हूं तो यही सोचता हूं कि 10+2 वालों की नौकरी एक बीटेक वाला प्राप्त कर सकता है लेकिन इंजिनियर की नौकरी एक BA Bcom BSC वाला प्राप्त नहीं कर सकता। बीटेक करने के बाद लोग बीटीसी कर रहे है। डीलेड कर रहे है। नौकरी के लिए सरकार को कोस भी रहे है।


एक बात जो अच्छी थी वो ये कि मुझे मेरी क्षमताएं पता थी। स्टूडेंट कोचिंग की मोटिवेशनल स्पीच में फसकर 4-5-6 साल तैयारी करता उसके बाद भी परिणाम नहीं मिलता तो क्या होता ? डिप्रेशन में जाता है, सरकार को गाली देना शुरू करता है, 1 नंबर से लटक जाने पर भर्ती के खिलाफ कोर्ट जाता है और बाकी सारे स्टूडेंट्स का भविष्य अधर में लटका देता। जैसे आज 69000 शिक्षक भर्ती कोर्ट में अटकी है।


जब मै स्टूडेंट था मतलब आज से 3-4 साल पहले, मुझे दुनियादारी की रत्ती भर भी समझ नहीं थी, सिस्टम की समझ नहीं थी, मै भी अक्सर सिस्टम को दोष देकर पल्ला झाड़ा करता था। मुझे कोर्ट की कार्यप्रणाली की समझ नहीं थी, मै भी कट ऑफ, फीस, भर्ती में देरी, आरक्षण जैसा खूब एक्सक्यूज दिया करता था जैसे आज कल स्टूडेंट्स दे रहे है। 4 साल पहले तक सरकार के विषय में मेरी भी आज कल के स्टूडेंट्स की तरह ही राय थी, राजनीति से मतलब नहीं था इसलिए दुनियादारी की समझ नहीं थी। जबकि हर इंसान को चाहे वो सरकारी नौकर ही क्यो न बन जाए सरकारी नौकरी के बाहर की जो दुनियादारी है उससे अक्सर दो चार होना पड़ेगा। 


सरकारी नौकरी के बाहर की दुनिया को बेहतर बनाने के लिए एक अच्छी सरकार का होना आवश्यक है। मान लीजिए तैश में आकर आज स्टूडेंट्स ने सरकार बदल दी और लालू, अखिलेश या कांग्रेस जैसी सरकार ने तमाम भ्रष्टाचार करके स्टूडेंट्स को सरकारी नौकरी दे दी। लेकिन दूसरी तरफ तुष्टिकरण, महंगाई, जिहाद, घोटाला आदि अनेक समस्याओं से देश घिर गया। आप सुख शांति से जीवन व्यतीत करके हुए सरकारी नौकरी कर सके इसकी गारंटी कौन देगा ?


केवल सरकारी नौकरी या ऐसे ही एक दो मुद्दों पर सरकार चुनना बड़ा आत्मघाती होता है। ये जो भर्ती में 2 साल की देरी, भ्रष्टाचार वाला सिस्टम है ये क्या मोदी सरकार ने बनाया है ? ये सब कांग्रेस, सपा, बसपा, लालू जैसी सरकारों की देन है। एक अच्छी सरकार ही देश की जनता को इन सब समस्याओं से बचा सकती है।


मै जो भी लिखता हूं अक्सर अपना अनुभव ही लिखता हूं, अब जाकर समझ में आया कि सरकारी नौकरी के बाहर एक बहुत बड़ी दुनिया है। लोग छोटी छोटी परेशानियों के कारण सरकार को, सिस्टम को दोष देते है और अच्छी सरकारें बदलकर आत्मघात करते आए है। ऐसा नहीं है कि मै सिस्टम को दोष नहीं देता, बहुत देता हूं आज भी। इस सिस्टम के कारण वाकई मेरा और न जाने मेरे जैसे कितने लोगों का भविष्य अधर में लटका है, लेकिन बंधा नहीं है। वो सब बातें मै यहां नहीं लिखता क्योंकि वो मेरा पर्सनल मैटर है। सबके जीवन में कुछ न कुछ ऐसे पर्सनल मैटर होते है। लेकिन अधिकांश स्टूडेंट को सरकारी नौकरी के बाहर वाले वास्तविक जीवन में सिस्टम की खामियों के विषय में पता ही नहीं है, उन्हें नहीं पता कि इसे कौन सुधार सकता है। लेकिन मुझे पता है कि इस सड़े अंग्रेज़ो के जमाने के सिस्टम को कौन सुधार सकता है, कौन सुधार रहा है। इसलिए मै मोदी मोदी करता हूं। आप मोदी के 100 कामों में अगर 10 कम से असंतुष्ट है तो 10 अंक ही काट सकते है। 


मैंने ये कभी नहीं कहा कि मोदी सरकार कभी गलत नहीं हो सकती। ये तो स्वयं मोदी जी भी नहीं कहते की मै कभी गलत नहीं हो सकता। लेकिन मुझे आज तक मोदी सरकार का कोई निर्णय गलत नहीं लगा। या गलत नियत से लिया गया एक भी निर्णय नहीं दिखा। मुझे अक्सर लगता है कि क्या सही है क्या गलत ये लोगों की क्षमता और जानकारी के हिसाब से बदलता रहता है। जानकारी के अभाव में अक्सर निर्णय गलत ही लगते है।


बहुत से लोग इसी सिस्टम से सफल भी हो गए या उदासीन सरकारी नौकर बने बैठे है। सरकारी नौकरी पाने के बाद भी लोग संतुष्ट नहीं है। उन्हें और पैसा चाहिए, आराम चाहिए। 


पिछले 5 सालों में आपने बहुत से सरकारी नौकर चाहे बैंक का हो या रेलवे का या कोई और विभाग का, कहते सुना होगा कि ये सरकार बहुत काम करवा रही है। ऐसा क्यों कहते है लोग ? क्या 8 घंटे की जगह 10 घंटे काम करवा रही है ? काम 8 ही घंटे कर रहे है ज्यादा कर रहे है तो ओवरटाइम मिल रहा है। बड़े लेवल के अधिकारी है तो सारी सुविधाएं मिलती है। तमाम तरह के एलाउंस मिलते है। फिर भी असंतुष्ट है। पूरी ईमानदारी से अपनी सरकारी नौकरी नहीं करते।


स्टूडेंट फंसा है प्रोपोगंडा में, इस वक़्त स्टूडेंट्स की समस्या का फायदा उठा कर उसके दिमाग में ये डाला जा रहा है कि "भारत में बेरोजगारी है, लेकिन मीडिया दिखाता है कि हिन्दू को मुसलमान से खतरा है" "मोदी अपने मन की बात करते है" "स्टूडेंट्स हेट्स मोदी" "स्टॉप प्राइवेटाइजेशन"... ऐसे तमाम प्रोपोगंडा पोस्ट करने वाले यहां तक की मोदी की पढ़ाई को लेकर मज़ाक उड़ाने वाले स्टूडेंट्स ही है। डिग्री किसी की क्षमताओं या ज्ञान का पैमाना नहीं होता। बिहार ने न जाने कितने वर्ष लालू जैसे लोगों को चुना। तब डिग्री नहीं देखी थी क्या ? अखिलेश और राहुल जैसे लोग विदेशों से पढ़ाई की डिग्री रखते है लेकिन क्या इनमें देश या प्रदेश की सत्ता संभालने की क्षमता नजर आती है, इनके भाषणों में सुशासन का विजन दिखाई देता है ?


मै अक्सर स्टूडेंट्स को समझाने की कोशिश करता हूं उन्हें प्रोपोगंडा और हकीकत बताने की कोशिश करता हूं तो मेरे जैसे लोगों का आईटी सेल, अंध भक्त या कट्टर भक्त की संज्ञा देकर मज़ाक उड़ाया जाएगा.. एक तरफ तो न्याय पालिका और संविधान की वकालत करते है और जब सरकार उसी न्याय पालिका और संविधान के अनुसार आचरण करती है तो स्टूडेंट्स को लटकी भर्ती के नाम पर सरकार के खिलाफ भड़काते है, बजाय ये समझाने के कि कोर्ट और सिस्टम ऐसे ही काम करता है। बजाय ये बताने के कि केंद्र सरकार ने स्टूडेंट्स की इन समस्याओं को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय रिक्रूटमेंट एजेंसी का गठन किया है। इसमें फीस, भर्ती में देरी और बार बार एग्जाम देने के लिए दूर दूर सेंटर जैसी अनेक समस्याओं का समाधान है। कल ही सिविल सेवा को लेकर सरकार ने एक बड़ा बदलाव किया है।


मै ये नहीं कह रहा कि स्टूडेंट्स को समस्या नहीं है। बिल्कुल है। लेकिन उस समस्या को समाप्त करने के लिए सरकार की तरफ से क्या कदम उठाए गए है उसकी कोई बात नहीं कर रहा।

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महाभारत का एक सार्थक प्रसंग जो अंतर्मन को छूता है और ये बताता है कि आज के युग मे इसकी कितनी प्रासंगिकता है।

 महाभारत का एक सार्थक प्रसंग जो अंतर्मन को छूता है और ये बताता है कि आज के युग मे इसकी कितनी प्रासंगिकता है।


महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फटे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी .... !  

गिद्ध , कुत्ते , सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में *द्वापर का सबसे महान योद्धा* *"देवव्रत" (भीष्म पितामह)* शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था -- अकेला .... !


तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची , "प्रणाम पितामह" .... !!


भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी ,  बोले , " आओ देवकीनंदन .... !  स्वागत है तुम्हारा .... !!  


मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था" .... !!


कृष्ण बोले ,  "क्या कहूँ पितामह ! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप" .... !


भीष्म चुप रहे , कुछ क्षण बाद बोले," पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव ... ?  

उनका ध्यान रखना , परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है" .... !


कृष्ण चुप रहे .... !


भीष्म ने पुनः कहा ,  "कुछ पूछूँ केशव .... ?  

बड़े अच्छे समय से आये हो .... !  

सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !!


कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....! 


एक बात बताओ प्रभु !  तुम तो ईश्वर हो न .... ?


कृष्ण ने बीच में ही टोका ,  "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ...  मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...."


 भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... !  बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! "


कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले ....  " कहिये पितामह .... !"


भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया !  इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?"


  "किसकी ओर से पितामह .... ?  पांडवों की ओर से .... ?"


 " कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया !  पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ?  आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ और द्रोणाचार्य के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ?  यह सब उचित था क्या .... ?"


 इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... !  

इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !!  

उत्तर दें दुर्योधन, दुःशाशन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन  .... !! 


 मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !!


 "अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ?

 अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... !  

मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !"


 "तो सुनिए पितामह .... !  

कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... ! 

 वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !"


"यह तुम कह रहे हो केशव .... ?  

मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है ....?  यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया ..... ? "


 *"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह , पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है .... !* 


 हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है .... !! 

 राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था .... !  

हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह .... !!"


" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो .... !"


" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह .... !  

राम के युग में खलनायक भी ' रावण ' जैसा शिवभक्त होता था .... !!  

तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण, मंदोदरी, माल्यावान जैसे सन्त हुआ करते थे ..... !  तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे .... !  उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था .... !!

 इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया .... ! किंतु मेरे युग के भाग में में कंस , जरासन्ध , दुर्योधन , दुःशासन , शकुनी , जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं .... !! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह .... ! पाप का अंत आवश्यक है पितामह , वह चाहे जिस विधि से हो .... !!"


 "तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव .... ?  

क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा .... ?  

और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा ..... ??"


*" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह .... !*  


*कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा .... !*

  

*वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा ....  नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा .... !*  


*जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ  सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों,  तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह* .... !  

तब महत्वपूर्ण होती है धर्म की विजय , केवल धर्म की विजय .... ! 


 *भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह* ..... !!"


"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव .... ? 

और यदि धर्म का नाश होना ही है , तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ..... ?"


 *"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह .... !* 


 *ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ..... !*केवल मार्ग दर्शन करता है*

  

*सब मनुष्य को ही स्वयं  करना पड़ता है .... !* 

आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न .... !  

तो बताइए न पितामह , मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ..... ?  

सब पांडवों को ही करना पड़ा न .... ? 

यही प्रकृति का संविधान है .... !  

युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से .... ! यही परम सत्य है ..... !!"


भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे .... ! 

उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी .... ! 

 उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है .... कल सम्भवतः चले जाना हो ... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण .... !"


*कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले , पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था* .... !


*जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ  सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ....।।*


*धर्मों रक्षति रक्षितः* ।।

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Saturday, September 28, 2024

इस्लाम सह-अस्तित्व से इंकार करता है!

 इस्लाम सह-अस्तित्व से इंकार करता है!

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इस्लाम के साथ सामंजस्य का मतलब है उसकी ओर से आती रहने वाली क्रमशः अंतहीन माँगें (डॉ. अंबेदकर ने कहा था, ‘मुसलमानों की माँगे हनुमान जी की पूँछ की तरह बढ़ती जाती हैं’) पूरी करते जाना। प्रोफेट  मुहम्मद अपनी माँगों में कभी नहीं रुके, जब तक कि उनकी 100% माँगें पूरी नहीं हो गईं। वही मुसलमानों के आदर्श हैं। इसलिए काफिरों के लिए कोई आसानी का रास्ता नहीं।


उन्हें समझ लेना होगा कि इस्लाम उस एक चीज – जिहाद – को कभी नहीं छोड़ेगा, जिस से उसे आज तक सारी सफलता मिली! इस्लाम की सारी सफलता राजनीतिक समर्पण की माँग, दोहरेपन और हिंसा पर आधारित है। बेचारा काफिर जो बदलना चाहता है वह यही चीज है – हिंसा, दबाव, हुज्जत और राजनीति। जबकि काफिर से समर्पण की माँग करना और हिंसा करना, यही इस्लाम की सफलता का गुर रहा है। अतः हिंसा, दबाव, हुज्जत और माँगें कभी नहीं रुकने वाली, क्योंकि वह 1400 वर्षों से काम कर रही हैं। आज तो वह पहले किसी भी समय से अधिक काम कर रही हैं! भारत में ही किसी भी हिन्दू नेता का भाषण सुन लीजिए।


संघ-भाजपा गत चार दशकों से ‘राष्ट्रवादी’ या ‘देशभक्त’ मुसलमान की खोज और संगठन करने की जुगत करते रहे हैं। वे 'अच्छे व्यक्ति' और 'अच्छे मुसलमान' का अंतर अनदेखा करते हैं। *'अच्छा मुसलमान' तय करने का एक मात्र आधार इस्लाम है।* किसी काफिर द्वारा ‘अच्छा’ की परिभाषा या पहचान खुद उसे भले संतोषजनक लगे, पर मुसलमानों के लिए बेमतलब है। इसीलिए भारत में वैसे व्यक्तियों को सदैव ‘सरकारी मुसलमान’ कह कर इस्लामी समाज खिल्ली उड़ाता है, क्योंकि *इस्लाम के अनुसार अच्छा मुसलमान वह है जो प्रोफेट के सुन्ना का पालन करता है। यही एकमात्र निर्धारक है। यदि इस्लाम को जानना है तो सदैव मुहम्मद की ओर देखें, न कि किसी नेता, विद्वान या मौलाना को। तभी आपको सत्य मिलेगा। वरना धोखे खाने की ही पूरी संभावना है।*


काफिर लोग, विशेषकर उनके बड़बोले नेता मान लेते हैं कि कोई भला व्यक्ति मुसलमान, जैसे बेगम अख्तर या डॉ. अब्दुल कलाम, ‘अच्छे’ इस्लाम का भी प्रमाण है। मन में मीठे मंसूबे पालने वाले काफिर समझते हैं कि भले मुसलमान इस्लाम को मनचाहे बदल सकेंगे। ऐसा समझने वाले निरे मूढ़ हैं। वे तथ्यों से बेपरवाह होकर अपने अज्ञान की मिट्टी पर काल्पनिक फूल खिलाते रहते हैं।


वस्तुतः यूरोप ही नहीं, अधिकांश देशों में काफिरों की आधिकारिक नीतियाँ अज्ञान पर आधारित है। *इस्लामी सिद्धांत या राजनीतिक इस्लाम का इतिहास जानने वालों को किसी नीति-निर्माण या विचार-विमर्श के मंच पर भी स्थान नहीं दिया जाता। वे सच्चाई जानने के कारण ही अयोग्य माने जाते हैं! यदि यह विचित्र स्थिति काफिरों के लिए आत्मघाती, एक ‘डेथ विश’ नहीं तो और क्या है?*


इस्लाम के बारे में ज्ञान रखने का अर्थ होता कि पहला प्रश्न हो – कि हमें किसका सामना करना है? इसका एकमात्र सही उत्तर है – राजनीतिक इस्लाम। अतः हमें वैचारिक युद्ध लड़ना है, न कि सैनिक।


तदनुरूप, वैचारिक युद्ध का अर्थ होता कि भारत में इस्लाम के हजार वर्ष का इतिहास जान लेने के बाद या केवल हाल का लें, तो खलीफत आंदोलन बाद (1921 ई.), या देश-विभाजन बाद (1947 ई.), या पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दू-विनाश बाद (1970 ई.), या कश्मीर से हिन्दुओं के सफाए बाद (1990 ई.), या गोधरा, मुंबई, अक्षरधाम, नन्दीमर्ग, दिल्ली जैसे अनगिनत लोमहर्षक जिहादी कांडों के बाद हरेक हिन्दू जान जाता कि मुहम्मद कौन थे, कुरान का संदेश क्या है, और यह कि सारे हिन्दू काफिर हैं। हिन्दू जान जाते कि शरीयत की माँगें हमारी संस्कृति, नैतिकता, सहज जीवन, शासन के हरेक न्यायोचित सिद्धांत के विरुद्ध है। संक्षेप में, वे समझ चुके होते कि उनका सामना किस से है और उसकी प्रकृति क्या है।


इस के उलट, हिन्दू सारी समस्याओं के लिए अपने-आपको ही दोषी ठहराने को तरह-तरह दलीलें करते हैं। ऐसे घोर अज्ञान से आत्म-घृणा को समर्थन मिलता है। विश्वविद्यालयों समेत संपूर्ण पाठ्यचर्या का परीक्षण दिखाता है कि भारत से लेकर अमेरिका तक काफिरों को शिक्षा में ये मोटी चीजें भी नहीं पढ़ाई जातीं – (1) जिहाद द्वारा बहाए गया खून और आँसू। गत 1400 सालों में 27 करोड़ काफिरों का मारा जाना। नोट करें, उस विराट् उत्पीड़न की मुसलमान कभी कोई जिम्मेदारी नहीं लेते, न उसे मानते हैं। (2) जिम्मी और जिम्मीवाद, यानी कुछ काफिरों द्वारा इस्लाम को चाहे-अनचाहे मदद दिए जाने का इतिहास। (3) हमले करके क्रिश्चियन, हिन्दू, बौद्ध देशों पर लगातार कब्जा – अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सिल्क रूट के सभी देश, तुर्की, मध्य पूर्व, मिस्त्र, उत्तरी अफ्रीका और बाकी अफ्रीका। (4) कैसे शरीयत कानून स्त्रियों और बच्चों का जीवन प्रभावित करते हैं। (5) काफिर की अवधारणा। (6) कुरान संपूर्ण रूप में। (7) सीरा संपूर्ण। (8) हदीस संपूर्ण। (9) इस्लाम की दोहरीनैतिकता और तर्कप्रणाली को दर्शनशास्त्र की पढ़ाई में परखना, तथा (10) इस्लाम में गुलामी।


इस प्रकार, *इस्लाम की सारी वास्तविकता से पूरी तरह गाफिल रह कर काफिर नेता अपनी ही नई पीढ़ियों को और भी दुर्बल, अबोध और आसान शिकार बनने छोड़ते रहे हैं। वे किसी तरह शान्ति और सह-अस्तित्व लालसा में दिनों-दिन राजनीतिक इस्लाम की भूख बढ़ाते जाते हैं।* आखिर, मार्च 1947 में भारत के नेताओं ने इसी लालसा में देश का विभाजन स्वीकार किया था। क्या परिणाम हुआ? यही कि इस्लाम और भी प्रबल, तीन गुना शक्तिशाली होकर अंदर-बाहर से चोट करने लगा।


दरअसल, इस्लाम द्वारा दूसरों के साथ सह-अस्तित्व की सारी बातें सदैव अस्थाई होती हैं। ताकि काफिर उन्हें कुछ जमीन और दे दें। कुछ और सुविधा, अधिकार, संस्थान, अनुदान, इलाका, स्वशासन, आदि। लेकिन यह अस्थाई काल काफिरों के और विनाश से पहले कुछ सुस्ताने, ताकत जुटाने का समय भर होता है। भारत इसका सब से बड़ा उदाहरण है, जो हजार साल से इस्लाम से उलझ कर भी यह मोटी सी सीख न ले पाया! भारतीय शिक्षा में स्वयं पीड़ित काफिरों को उन पर हुए उत्पीड़न, कष्टों पर भी थोड़ा विचार करने के  लिए नहीं कहा जाता। उलटे पूरा इतिहास बलपूर्वक छिपाया जाता है। अब तो शिक्षा में इतिहास विषय का नाम तक गायब कर दिया गया है! संघ-भाजपा इस पर गर्व कर सकते हैं कि उन्होंने हिन्दुओं के पैर के नीचे के अंतिम आधार को भी खिसकाने का रास्ता बनाया है। वह भी वर्षों से भारी सोच-विचार कर के! यह अज्ञान और आत्महंता प्रवृत्ति की पराकाष्ठा है।


जबकि यदि काफिरों को बचना है तो गफलत खत्म करनी होगी। मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि रफ्तार, जिहाद, हिंसा आदि मुख्य बाधा नहीं है। मुख्य है: इस्लाम के बारे में काफिरों का अज्ञान। उसी का उपयोग करके मुहम्मद के ही समय से काफिरों का खात्मा करते इस्लाम बढ़ता गया। अतः *काफिरों को इस्लामी सिद्धांत एवं इतिहास जानना होगा। यह अब कठिन नहीं रहा। कुरान, सीरा और हदीस की संपूर्ण सामग्री को एक हाथ में उठाया जा सकता है। उसे अब पढ़ने-समझने में बिलकुल आसान भी बनाया जा चुका है।*


आज ऐसा गाफिल, अज्ञानी बना रहना अनैतिक है। जिस में *भारत के सर्वोच्च नेता दुहरा-दुहरा कर कहते हैं: ‘‘प्रोफेट मुहम्मद के रास्ते पर चलना चाहिए।’’ उनके संगठन मुहम्मद का जन्म-दिवस मनाते और फ्रांसीसी राष्ट्रपति के पुतले जलाते हैं! हिन्दू होकर भी ऐसे नेता जाने-अनजाने पक्के इस्लामियों की तरह प्रचार करते हैं। कम से कम उनकी ही नसीहत देखते हुए अनिवार्य है कि प्रोफेट मुहम्मद की प्रमाणिक जीवनी, उनकी हदीसें यानी विचार, उनके बनाए कानून, शरीयत, तथा इस्लाम के इतिहास को औपचारिक शिक्षा में स्थान दिया जाए। वरना लोग कैसे जानेंगे कि ‘मुहम्मद के रास्ते पर चलने’ के क्या अर्थ हैं?*


सभी नागरिकों को यह जानने का अवसर देना आवश्यक है कि फ्रांस से लेकर भारत में और सूडान से लेकर बंगलादेश में जो असंख्य घटनाएं निरंतर होती रहती है – वह उसी रास्ते पर चलने का परिणाम हैं। इस्लाम के सिद्धांत और व्यवहार के इतिहास को पूरी तरह जानने की व्यवस्था करना अनिवार्य कर्तव्य है।  


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दुनिया में लड़ाई न मत की है, न मजहब की है

 दुनिया में लड़ाई न मत की है, न मजहब की है और न ही उपासना पद्धति की है, यह लड़ाई सभ्यताओं की है, जो सेमिटिक पंथों को आधार बनाकर लड़ी जा रही है।


एक तरफ यूरोप की सभ्यता है और दूसरी तरफ अरब की। इन दोनों सभ्यताओं का लक्ष्य है कि पूरी दुनिया उनकी सभ्यता के अनुसार चले।


वास्तव में इस्लामीकरण और अरबीकरण एक दूसरे के पर्याय हैं। इस्लाम स्वीकार करने का अर्थ केवल उपासना पद्धति की स्वीकार्यता नहीं है, यह अरब के रीति-रिवाज और परम्पराओं की स्वीकार्यता है, जो इस्लाम के पूर्व से वहाँ प्रचलित थीं  चाहे वह दाढ़ी रखने का तरीका हो या पगड़ी बांधने का, चाहे बुरका पहनने का हो या हिजाब का, चाहे खान-पान हो या  भाषा यह सब इस्लाम के पूर्व का है, लेकिन वह आज इस्लाम का प्रतीक है और इस्लाम स्वीकार करने का अर्थ है वही सब करना जो अरब में किया जाता है।


दूसरी तरफ यूरोप की सभ्यता है, जो केवल ईसाइयत ही नहीं, बल्कि आधुनिकता के नाम पर परोक्ष आक्रमण कर रही है। उसकी भाषा आधुनिकता का पर्याय बन चुकी है, उसकी वेश-भूषा और खान-पान भी आधुनिकता के पर्याय मान लिए गए हैं। वास्तव में जिसे हम आधुनिकता समझते हैं वह हमारी मानसिक गुलामी है।

यह ठीक है कि कुछ श्रेष्ठ तत्व कहीं का स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन सब कुछ श्रेष्ठ उन्हीं का है यह कभी नहीं स्वीकार किया जा सकता।


सभ्यताओं के विकास में देश, काल और परिस्थिति की अनुकूलता का बहुत महत्व होता है और सभ्यताएं उनके अनुसार स्वतः विकसित होती हैं, जो अनुकूल होता है वह बाहर से भी आत्मसात करती हैं, लेकिन अपने अनुकूल बनाकर। 


अपनी हर वस्तु में कमी है, यह कभी नहीं स्वीकार किया जा सकता। यह हीन भावना और कमजोरी है। जो ताकतवर होता है वह अपनी हर चीज थोपने का प्रयास करता और यदि किसी समाज को मानसिक रूप से कमजोर बना दिया गया तो यह और भी सरल हो जाता है।


आज भारत के एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति का कम से कम पचास प्रतिशत यूरोपीकरण हो चुका है। पहनवा की दृष्टि से तो निन्यानवे प्रतिशत है।


यदि किसी सभ्यता का संरक्षण करना है तो वैचारिक के साथ-साथ, व्यवहार में वेश, भाषा और भोजन का संरक्षण अनिवार्य है। मजहबी मतांतरण केवल मतांतरण नहीं है, यह सभ्यता का परिवर्तन है।


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✅जो लोग 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी की पीठ थपथपाते हैं उन लोगों को बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी का पाकिस्तान के संसद में दिया गया यह बयान जरूर देखना चाहिए

 ✅जो लोग 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी की पीठ थपथपाते हैं उन लोगों को बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी का पाकिस्तान के संसद में दिया गया यह बयान जरूर देखना चाहिए 


यह उनका संसद में बयान तबका है जब वह सांसद थे 


जब पाकिस्तान के 90000 से ज्यादा सैनिक भारत की कैद में थे उनके तीन हजार से ज्यादा सैनिक अधिकारी हमारे हिरासत में थे ..पाकिस्तान की सेना आत्मसमर्पण कर चुकी थी 


भारतीय सेना सिंध के जिले थारपारकर को भारत में मिला शामिल कर चुकी थी और उसे गुजरात का एक नया जिला घोषित कर दिया गया था और मुजफ्फराबाद पार्लियामेंट पर तिरंगा झंडा फहरा दिया गया था 


जुल्फिकार अली भुट्टो जब इंदिरा गांधी से शिमला समझौता करने आए तब वह अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो को भी साथ में लाए थे 


जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी को राजनीति सिखा रहे थे 


इंदिरा गांधी ने जुल्फिकार अली भुट्टो के सामने शर्त रखी यदि आपको अपने 93000 सैनिक वापस चाहिए तब आप कश्मीर हमें दे दीजिए जुल्फिकार अली भुट्टो इंदिरा गांधी से कहा कि हम आपको कश्मीर नहीं देंगे मैं कोई दस्तखत नहीं करूंगा आप यह 93000 सैनिकों को अपने पास ही रखो 


इंदिरा गांधी सपने में भी नहीं सोची थी कि जुल्फिकार अली भुट्टो उनसे भी बड़ा खिलाड़ी है वह जानता है की सीमाओं पर हारी गई युद्ध को टेबल पर कैसे जीता जाता है


इंदिरा गांधी की हालत खराब हो गई थी


पुपुल जयकर और कुलदीप नैयर दोनों ने अपनी किताब में लिखा है इंदिरा गांधी उस मौके पर चूक गए और उनके और उनके सलाहकारों के पास कोई ऐसी कूटनीतिक ज्ञान नहीं था कि ऐसे में स्थिति को  कैसे संभाला जाए 


जिनेवा समझौते के तहत यदि कोई देश किसी युद्ध बंदी को पकड़ता है तब वह उसके डिग्निटी का पूरा ख्याल  रखना होता है 


जुल्फिकार अली भुट्टो शाम को होटल में अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो से कहा इस युद्ध में भारत की कमर टूट चुकी है हमने पूरी बहादुरी से लड़ा भले ही हमने भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत करारी चोट दिया है भारत पहले ही बांग्लादेशी शरणार्थियों का बोझ झेल चुका है अब भारत 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को कैसे पालेगा और अगर भारत 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को अपने पास बसाना चाहता है तो बसाएं और उन कायर  सैनिकों को हम वापस लेकर भी क्या करेंगे मैंने इंदिरा गांधी की हालत सांप के गले में पड़ी छछूंदर जैसी कर दी है 


और अंत में इंदिरा गांधी की हालत ऐसी हो गई जैसे कोई जूते भी खाए और प्याज भी खाए


 इंदिरा गांधी ने कश्मीर भी पाकिस्तान को दे दिया 93000 सैनिक भी वापस कर दिए और 8 महीने के बाद नोबेल पुरस्कार की इच्छा में भारत के गुजरात राज्य में शामिल जिला थारपारकर को ही पाकिस्तान को वापस कर दिया जबकि थारपारकर कि उस वक्त 98% आबादी हिंदू थी


शिमला समझौते के बाद उस वक्त के सेना प्रमुख ने रिटायरमेंट के बाद जो किताब लिखी थी उसमें कहा था इस युद्ध को हमने लड़ाई के मैदान में तो जीत लिया लेकिन टेबल पर राजनेताओं ने भारत को हरा दिया


इंदिरा गांधी को पटकनी कैसे दी,आसिफ अली जरदारी  बता रहा है इसका वीडियो

 देखने के लिए 

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✅विंग कमांडर अभिनंदन का नाम तो आप निश्चय ही नहीं भूले होंगे. शायद उनकी "हैंडल बार’ मूछें भी याद ही होंगी.

 ✅विंग कमांडर अभिनंदन का नाम तो आप निश्चय ही नहीं भूले होंगे. शायद उनकी "हैंडल बार’ मूछें भी याद ही होंगी.


          लेकिन इसी भारतीय वायु सेना के कुछ अन्य जांबाज़ पायलट के नाम नीचे मैंने लिखे हैं. इनकी तस्वीरें देखना तो दूर, हममें से कोई एकाध ही होगा जिसने ये नाम सुन रखे होंगे. 

लेकिन इनका रिश्ता अभिनंदन से बड़ा ही गहरा है. 


पढ़िए ये नाम.


          विंग कमांडर  हरसरण सिंह डंडोस

          स्क्वाड्रन लीडर  मोहिंदर कुमार जैन

          स्क्वाड्रन लीडर  जे एम मिस्त्री

          स्क्वाड्रन लीडर  जे डी कुमार

          स्क्वाड्रन लीडर  देव प्रशाद चटर्जी

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  सुधीर गोस्वामी

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  वी वी तांबे

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  नागास्वामी शंकर

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  राम एम आडवाणी

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  मनोहर पुरोहित

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  तन्मय सिंह डंडोस

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  बाबुल गुहा

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  सुरेश चंद्र संदल

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  हरविंदर सिंह

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  एल एम सासून

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  के पी एस नंदा

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  अशोक धवले

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  श्रीकांत महाजन

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  गुरदेव सिंह राय

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  रमेश कदम

          फ्लाइट लेफ्टिनेंट  प्रदीप वी आप्टे

          फ्लाइंग ऑफिसर  कृष्ण मलकानी

          फ्लाइंग ऑफिसर  के पी मुरलीधरन

          फ्लाइंग ऑफिसर  सुधीर त्यागी

          फ्लाइंग ऑफिसर  तेजिंदर सेठी


          ये सभी नाम अनजाने लगे होंगे. 

 ये भी भारतीय वायुसेना के योद्धा थे जो 1971 की जंग में पाकिस्तान में युद्ध बंदी बना लिए गए, और फिर कभी वापस नहीं आए .* इनकी चिट्ठियां घर वालों तक आई , पर तत्कालीन भारत सरकार ने कभी इनकी खोज खबर नहीं ली.


          1972 में शिमला में ’आयरन लेडी’ के रूप में स्वयं प्रसिद्ध तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ हुए शिमला समझौते में  90 हज़ार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को छोड़ने का समझौता तो कर आई, *पर इन्हें वापस मांगना भूल गई.*


          ये अभिनंदन जितने खुशकिस्मत नही थे , क्योकि इनके लिए उस समय की सरकार ने मिसाइलें नहीं तानी, न देश के लोगों ने इनकी खबर ली, न अखबारों ने फोटो छापे. 

 इन्हें मरने को, पाकिस्तानी जेलों में सड़ने को छोड़ दिया गया. इनके वजूद को नकार दिया गया.*


          और यह पहली बार नहीं हुआ था. रेज़ांगला के वीर अहीरों को भी नेहरू ने भगोड़ा करार दिया था. परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी को कायर मान लिया था. अगर चीन ने इनकी जांबाज़ी को न स्वीकारा होता, एक लद्दाखी गडरिये को इनकी लाशें न मिली होती, ये वीर अहीर न कहलाते, शैतान सिंह भाटी मरणोपरांत परम वीर चक्र का सम्मान न पाते.


          *यही रवैया रहा है इन सत्ता लोलुप गांधी नेहरू कुनबों का देश के वीर सपूतों के प्रति.* 

और यही फ़र्क़ है देश भक्ति का सच्चा सपूत मोदी में , ओर इनमे ।


          आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि अगर मोदी की जगह उनका मोनी बाबा होता तो शायद अभिनंदन का नाम भी इसी लिस्ट में लिखा होता.


वंदेभारतमातरम💐


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Friday, September 27, 2024

एक 8 साल का लडका

 एक 8 साल का लडका 


सिनेमाघर में राजा हरिशचन्द्र फिल्म देखने गया और फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना और वो बड़ा होकर महान व्यक्तित्व से जाना गया।


परन्तु आज आठ साल का लडका टीवी पर क्या देखता है ?

सिर्फ नंगापन और अश्लील वीडियो और फोटो,

मैग्जीन में अर्धनग्न फोटो, 

पड़ोस में रहने वाली भाभी/आंटी के छोटे कपड़े !!


लोग कहते हैं कि दुष्कर्म का कारण बच्चों की मानसिकता है।

पर वो मानसिकता आई कहाँ से ?

उसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हम खुद हैं। 

क्योंकि अब अधिकतर हम संयुक परिवार में नहीं रहते।

हम अकेले रहना पसंद करते हैं। और अपना परिवार चलाने के लिए माता पिता को बच्चों को अकेला छोड़कर काम पर जाना है और बच्चे अपना अकेलापन दूर करने के लिये टीवी और इन्टरनेट का सहारा लेते हैं।

और उनको देखने के लिए क्या मिलता है सिर्फ वही अश्लील वीडियो और फोटो तो वो क्या सीखेंगे यही सब कुछ ना ?

अगर वही बच्चा अकेला न रहकर अपने दादा दादी के साथ रहे तो कुछ अच्छे संस्कार सीखेगा।

कुछ हद तक ये भी जिम्मेदार है।


2) जब पूरा देश दुष्कर्म पर उबल जाता है, 

छोटी छोटी बच्चियो से जो दरिंदगी हो रही उस पर सबके मन में गुस्सा होता है।

कोई सरकार को कोस रहा होता है, तो

कोई समाज को तो कई feminist सारे लड़को को बलात्कारी घोषित कर चुकी होती है।


लेकिन आप सुबह से रात तक

कई बार su.nny le.on के कंडोम के add देखते है ..!!

फिर दूसरे add में  रण.वीर सिंह शैम्पू के ऐड में लड़की पटाने के तरीके बताता है...!!

ऐसे ही Close up, 

लिम्का, 

Thumsup भी दिखाता है।

लेकिन तब आपको गुस्सा नहीं आता है है ना ???


आप अपने छोटे बच्चों के साथ music चैनल पर सुनते ही हैं 

दारू बदनाम कर दी,

कुंडी मत खड़काओ राजा,

मुन्नी बदनाम,

चिकनी चमेली,

झण्डू बाम,

तेरे साथ करूँगा गन्दी बात,

और न जाने ऐसी कितनी मूवीज गाने देखते सुनते है।

तब आपको गुस्सा नहीं आता ??


मम्मी बच्चों के साथ Star Plus, जी TV, सोनी TV देखती है जिसमें एक्टर और एक्ट्रेस सुहाग रात मनाते हैं..

किस करते हैं..

आँखों में आँखें डालते हैं..

और तो और भाभीजी घर पर हैं, जीजाजी छत पर हैं, 

टप्पू के पापा और बबिता जिसमें एक व्यक्ति दूसरे की पत्नी के पीछे घूमता लार टपकता नज़र आएगा पूरे परिवार के साथ देखते हैं..

इन सब serial को देखकर आपको गुस्सा नही आता ??


फिल्म्स आती है जिसमें किस (चुम्बन, आलिंगन), रोमांस से लेकर गंदी कॉमेडी आदि सब कुछ दिखाया जाता है।

पर आप बड़े मजे लेकर देखते है, इन सब को देखकर आपको गुस्सा नहीं आता..


खुलेआम TV- फिल्म वाले आपके बच्चों को बलात्कारी बनाते है। 

उनके मन मे जहर घोलते है।

तब आपको गुस्सा नहीं आता ?

क्योकि आपको लगता है कि

रेप रोकना सरकार की जिम्मेदारी है । 

पुलिस, 

प्रशासन, 

न्यायव्यवस्था की जिम्मेदारी है..

लेकिन क्या समाज और मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं??

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में कुछ भी परोस दोगे क्या ?


आप तो अखबार पढ़कर।

News देखकर बस गुस्सा निकालेंगे।

कोसेंगे सिस्टम को, 

सरकार को, 

पुलिस को, 

प्रशासन को, 

DP बदल लेंगे, 

सोशल मीडिया पे खूब हल्ला मचाएंगे, 

बहुत ज्यादा हुआ तो कैंडल मार्च या धरना कर लेंगे लेकिन....


TV चैनल्स, मीडिया को कुछ नहीं कहेंगे। क्योकि वो आपके मनोरंजन के लिए है। 

सच पूछिए तो TV Channels अश्लीलता परोस रहे है ...

पाखंड परोस रहे हैं

झूंठे विषज्ञापन परोस रहे हैं

झूंठेऔर सत्य से परे ज्योतिषी पाखंड से भरी कहानियां एवं मंत्र, ताबीज आदि परोस रहे हैं

उनकी भी गलती नहीं है।

क्योंकि आप खरीददार हो .....??

बाबा बंगाली, तांत्रिक बाबा, स्त्री वशीकरण के जाल में खुद फंसते हो ।


3) अभी टीवी का खबरिया चैनल किसी घटना पर समाचार चला रहा है।

जैसे ही ब्रेक आए......

पहला विज्ञापन बोडी स्प्रे का जिसमें लड़की आसमान से गिरती है,

दूसरा कंडोम का,

तीसरा नेहा स्वाहा-स्नेहा स्वाहा वाला,

और चौथा प्रेगनेंसी चेक करने वाले मशीन का......

जब हर विज्ञापन, हर फिल्म में नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाएगा तो बलात्कार के ऐसे मामलों को बढ़ावा मिलना निश्चित है।


क्योंकि

"हादसा एक दम नहीं होता,

वक़्त करता है परवरिश बरसों....!"

ऐसी निंदनीय घटनाओं के पीछे निश्चित तौर पर भी बाजारवाद ही ज़िम्मेदार है ..


4) आज सोशल मीडिया, इंटरनेट और फिल्मों में पोर्न परोसा जा रहा है। तो बच्चे तो बलात्कारी ही बनेंगे ना।

😢😢😢


ध्यान रहे समाज और मीडिया को बदले बिना ये आपके कठोर सख्त कानून कितने ही बना लीजिए, ये घटनाएँ नहीं रुकने वाली है।अगर अब भी आप बदलने की शुरुआत नहीं करते हैं तो समझिए कि .........आपको आपकी बेटियाँ बचाना है तो सरकार कानून पुलिस के भरोसे से बाहर निकलकर समाज मीडिया और सोशल मीडिया की गंदगी साफ करने की आवश्यकता है।


साभार/संशोधित

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Thursday, September 26, 2024

हिंदुओं के साथ इतिहास से लेकर वर्तमान तक सबसे बड़ी समस्या

 हिंदुओं के साथ इतिहास से लेकर वर्तमान तक सबसे बड़ी समस्या यही रही है कि वह स्वंय से ही युद्ध, और यहाँ तक की अस्तित्व के संघर्ष में भी, नैतिक होने लगते हैं. 


वह ना तो युद्ध को समझ पाते हैं और ना ही युद्ध को पूर्ण क्रूरता से लड़ पाते हैं. इतिहास में हिंदु योद्धाओं की नैतिकता की कहानी सुनाई जाती है, जबकि जिस पक्ष से लड़ रहे हैं उधर तो चालाकी और क्रूरता ही है.


शिवाजी ने जब एक संघर्ष में विजय प्राप्त की तो उनके सेनानायकों ने मुग़ल सूबेदार की सुंदर पत्नी  को बंदी बना लिया और शिवाजी के सामने पालकी में प्रस्तुत किया और कहा, “राजे आपके लिए युद्ध की भेंट है.”


शिवाजी ने पालकी में देखा और बात को समझा और सूबेदार की पत्नी से बोले, “माँ, आप कितनी सुंदर हो, आपको ससम्मान आपके डेरे में पहुँचा दिया जाएगा.” 


साथ अपने सेनानायकों को दोबारा कभी शत्रु पक्ष की महिला के सम्मान को अपमानित करने का साहस ना करने की चेतावनी दी. जबकि मराठा नायकों का यह प्रतिकार भर था जैसा मुग़ल करते थे.


आखिर इस्लामिक जिस तरह से बलात्कार और महिलाओं का अपमान करता था, उसकी तो पूरी परंपरा रही है. उज्बेकी मुग़ल, तुर्क खलीफत और अरबी खलीफत में भी तो यही हुआ था.


इसी तरह से पृथ्वीराज चौहान का उदाहरण तो हम जानते ही हैं कि नैतिकता में आकर ग़ौरी को 17 बार क्षमा करते रहे. और वहीं जब ग़ौरी को केवल एक अवसर मिला और उसने पृथ्वीराज को तहस-नहस कर दिया.


राजा दाहिर को अरबों इस्लामिक खलीफ़त के युद्ध से भागे शरणागत की रक्षा क्यों करनी थी. यदि दाहिर ने उन मुसलमानों को दे दिया होता जिसकी खोज में कासिम आया था. तो क्यों उनकी अपनी बेटी का बलात्कार होता और भारत में इस्लामिक विजय की कहानी लिखी जाती.


अमरकोट के राणा ने यदि शरणागत आए हुमायुँ और उसकी पत्नी को मार दिया होता तो ना अकबर होता और ना ही औरंगजेब. इसीलिए भारत के हिंदु इतिहास का सबसे बड़ा दोषी कोई है तो वो है इनकी अनंत नैतिकता.


भारत के हिंदुओं को इससे बाहर निकलना होगा. क्योंकि सामने वाला तो कौम के लिए जीता है. वह आपकी बेटी को उठाने से लेकर आपको मारने के लिए बैठा है. जिस कौम का आदर्श अपने ही बाप और भाई को मारने वाला औरंगजेब हो. उसे आप रामायण के आदर्श से नहीं जीत पाएंगे.


इस्लामिक जिहादियों का आदर्श औरंगजेब और वामपंथियों का आदर्श लेनिन जैसे चालाक और क्रूर हत्यारा है. तो कम से कम अब नैतिकता बंद कर दीजिए. और यदि स्वंय को नैतिकता अधिक पसंद है तो शांत रहिए और अपने पक्ष वालों को अनदेखा कीजिए. 


युद्ध के नियमों का परिवर्तन कीजिए, वर्ना उधर तो कासिम ही महान होगा, और बेटियाँ दाहिर की ही नीलाम होंगी.


#copied

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" ॐ साईं राम क्यों ?

 " ॐ साईं राम क्यों ?

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दो दिन पहले..... सुबह सुबह कुछ हिंदुओं को "आज साईं वार है" कहते देखा और सबसे ज़्यादा हास्यास्पद और खेद जनक था.... उन 'भक्तो' का यह कहना कि " ॐ साई राम"


          ॐ के बिना वेदों की कल्पना नहीं,ॐ के बिना कोई यज्ञ नहीं,कोई हवन नहीं,कोई पूजा नहीं,कोई विवाह नहीं,कोई श्राद्ध नहीं,ॐ पूर्ण मंत्र है,ॐ पूर्ण अर्चना है,ॐ ब्रह्मांड का स्वर है ।भगवान श्रीराम हिन्दुओं की पूर्ण श्रद्धा आशा और विश्वास के केंद्र है,श्री राम पुरूषोत्तम हैं,राम आदर्श हैं,राम आत्मा हैं,राम जन्म से मृत्यु तक विराजमान हैं।राम के बगैर जन्म पूर्ण नहीं और रामनाम के बिना अंतिम यात्रा तक अपूर्ण है....


            आह , साईं भक्तों ,कितनी आसानी से कह दिया ॐ साईं राम । क्या शरीर में हिंदू रक्त नहीं,क्या आत्मा में राम का वास नहीं,क्या पिता,पत्नी,भाई विछोह में तड़पते राम की रामायण को तुमने नहीं पढ़ा ? राम न होते तो विश्वास जानो ,हिन्दू धर्म ही नहीं होता और जिस साईं बाबा के नाम पर तुम अपने युगपुरुष का अपमान कर रहे हो... उसी के धर्म इस्लाम के लोग....500 वर्ष पूर्व ही मंद पड़ती हिन्दू धर्म की लौ को बुझा चुके होते। गोस्वामी तुलसी दास जी ने संस्कृत में लिखी रामायण का रूपांतरण देशज भाषा में हिंदू धर्म को बचाने के लिए ही किया था । अयोध्या में राम आस्था के लिए लाखों हिंदुओं ने अपने नौनिहालों की बलि यूँही नहीं दे दी।


           और तुम 'शिक्षित' हिन्दू, एक हक़ीर मुस्लिम फ़क़ीर चाँद मिया उर्फ़ साईं बाबा के नाम के आगे ॐ और अंत में राम लिख कर भगवान श्री राम और हिन्दू सनातन धर्म का घोर निरादर कर रहे हो। 

                 

 क्या ईसाई " फ़ादर साईं जीसस " या मुस्लिम तुम्हे "बिस्मिल्ला साईं ओ रहीम "कहने की इजाज़त दे सकतें है ? सच जानिए कानून से पहले ही इस्लाम और ईसाईयत के सिपाही "ॐ साईं राम " कहने वालों का सही इन्साफ कर देंगे....


           भाई ,हम मजलूम हिन्दू है और हमारे पास ताक़त नहीं है  कि हम मुस्लिम्स की भाँति जबरदस्ती इन्साफ छीन लें ! न ही आम हिंदू जन में इस षड्यंत्र को समझने की क्षमता है । परंतु करोड़ों के सोने,चांदी के मंदिर बनवाओ ,400 करोड़ का चढ़ावा हिंदुओं से छीन लो । मंदिरों में चाँद मियां की मूर्तियां रखवाओ,परंतु ॐ साईं राम कह कर अपने भगवानों की आस्था की धज्जियां न उड़ाओ । ईश्वर आपको आपके इष्ट से मिलाये।

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Wednesday, September 25, 2024

धर्म के नाम पर बंटवारा एक बार हो गया

 धर्म के नाम पर बंटवारा एक बार हो गया । काठ की हांडी दोबारा नहीं चढ़ेगी । 

तो #तोड़ो_भारत वाली ताकदें क्या करें? कौनसे नए trigger keywords ढूँढे?

तो लीजिये जनाब, इस बार इनका फॉर्मूला है reserve v/s deserve, जिसको तड़का दिया जा रहा है caste का । 


Backup plan के तौर पर इसाइकरण चालू है ही । 

जनगणना के आंकड़े देखे उनकी बढ़त के? 

लेकिन सब समस्याओं का मूल है अनर्थ। 


अब अनर्थ की मैं जरा अपने अंदाज से आज एक अलग व्याख्या करता हूँ ।  अनर्थ को आप समझिए अर्थ का अभाव ।  यह अर्थ वही है जो सब बातों को अर्थपूर्ण बनाता है - जी हाँ, धन । उसके बिना सब व्यर्थ, निपजे केवल अनर्थ ! 


कालीदास कह गये हैं : 

अमंत्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् । अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभ:||

बात "अयोग्यः पुरुषो नास्ति"  की है । समस्या भी अयोग्य व्यक्ति की ही है । 


Reserve v /s Deserve का पूरा खेल अयोग्य व्यक्ति को योग्यता से बढ़कर देने का  और योग्य व्यक्ति को वंचित रखने का भर है ।  और सब से बड़ी समस्या है तो "योजकस्तत्र दुर्लभ:" की ।  


भाई, हर व्यक्ति काम का है, शर्त यही है कि वो किस काम का है ये जाननेवाला मिले । 

हम यहाँ जरा कूदते हैं एक अलग विषय पर, जिसका परस्पर संबंध पढ़ते पढ़ते स्पष्ट हो जाएगा । 


धर्म की बात तो शुरू में कर दी, अर्थ को भी समझ लिया, अब बात करते हैं शर्म की । 

शर्म का क्या ताल्लुक पूछेंगे आप तो मेरे भाई , मेरी बहन, बहुत बड़ा ताल्लुक है जो आप शायद समझे नहीं आज तक । "शर्म एक शस्त्र है और शर्मिंदा करना एक बड़ा शास्त्र है"। 


एक मिनिट रुकिए, यह वाक्य दुबारा पढ़िये और जरा मनन करिए उसके अर्थ पर !


"शर्म एक शस्त्र है और शर्मिंदा करना एक बड़ा शास्त्र है"। 


आज भारत में कितने समाज हैं जो अपने परंपरागत व्यवसाय से केवल शर्म के खातिर कटे  हैं ? क्या उनके उत्पादों की मांग कम हुई या उनकी  जगह किसी और ने ले ली? एक ऐसे ही व्यवसाय का नाम जेहन में आता है । खटीक । उन्हें अपने परंपरागत व्यवसाय से शर्म आने लगी और अभी कई सारे सब्जी बेचने में आए हैं । 


क्या मांसाहार कम हुआ या बढ़ा है भारत में?  इनकी जगह मुसलमानों ने ली और वे   ढेरों कमा रहे हैं । और अपने खटीक बंधु किस शर्म से हटे? और हट कर क्या हुए? चौबे के दुबे? 


"शर्म एक शस्त्र है और शर्मिंदा करना एक बड़ा शास्त्र है"। शस्त्र को शास्त्र के नियमों से चला कौन रहे हैं, उनकी पहचान हो ! 


शर्म छोड़ो, आँखें खोलो, जिंदगी को 'अर्थ'पूर्ण बनाओ।  तभी भारत बढ़ेगा भी । इस पर चिंतन आवश्यक है । केवल उद्योजक ही नहीं,  सही योजक भी जरूरी है ।


क्यूंकि #भारत_बदल_रहा_है

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*"ध्यान"* में अगर इतनी शक्ति होती

 *"ध्यान"* में अगर इतनी शक्ति होती तो महर्षि दयानंद जी न मारे जाते, स्वामी श्रद्धानंद जी गोली ना खाते और पं. लेखराम जी छुरा न खाते।


किसी बाबा जी से उनके एक अनुयायी ने प्रश्न किया कि कृपया बतायें, जेहादियों द्वारा जब मकान और संपत्ति जलाई जा रही हों, बलात्कार, हत्याएं की जा रही हों, तब हमें क्या करना चाहिए। हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का प्रचार करना चाहिए या सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाना चाहिए, कृपया मार्गदर्शन करें।


बाबा- तुम्हारा प्रश्न ही तुम्हारी मूर्खता को बता रहा है, भारत के इतिहास से तुमने कुछ सीखा हो ऐसा मुझे मालूम नहीं पड़ता। महमूद गजनवी ने जब सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया, तो सोमनाथ उस समय का भारत का सबसे बड़ा और धनी मंदिर था। उस मंदिर में पूजा करने वाले १२०० हिन्दू पुजारियों का ख्याल था कि हम तो रात दिन ध्यान भक्ति, पूजापाठ में लगे रहते है, इसलिए भगवान हमारी रक्षा करेगा। उन्होंने रक्षा का कोई इंतज़ाम नहीं किया, उल्टे जो क्षत्रिय रक्षा कर सकते थे, उन्हें भी मना कर दिया।


परिणाम क्या हुआ..

महमूद गजनवी ने उन हज़ारों निहत्थे हिन्दू पुरोहितो की निर्मम हत्या की, मूर्तियों- मंदिर को तोड़ा और अकूत धन संपत्ति, हीरे, जवाहरात, सोना- चाँदी लूट कर ले गया।


उन पंडितो का *ध्यान* भक्ति पूजा पाठ उनकी रक्षा न कर सका।


आज सैकड़ों साल बाद भी वही मूर्खता जारी है, तुमने अपने महापुरूषों के जीवन से भी कुछ सीखा हो ऐसा मालूम नही पड़ता है। 


यदि "ध्यान" में इतनी शक्ति होती कि वो दुष्टों का ह्रदय परिवर्तन कर सके तो श्रीरामचंद्र जी को हमेशा अपने साथ धनुष बाण रखने की जरूरत क्यों होती। ध्यान की शक्ति से ही वो राक्षस और रावण का हदय परिवर्तन कर देते, उन्हें सुर-असुर भाई-भाई समझा देते और झगड़ा ख़त्म हो जाता लेकिन राम भी किसी को समझा न पाए और राम रावण युद्ध का फैसला भी अस्र शस्त्र से ही हुआ।


*ध्यान* में यदि इतनी शक्ति होती कि वो दुसरो के मन को परिवतिर्त कर सके तो पूर्णावतार श्रीकृष्ण को कंस ओर जरासंघ का वध करने की जरूरत क्यों पड़ती, ध्यान से ही उन्हें बदल देते।


*ध्यान* में यदि दूसरे के मन को बदलने की शक्ति होती तो महभारत का युद्ध ही नहीं होता, कृष्ण अपनी ध्यान की शक्ति से दुर्योधन को बदल देते ओर युद्ध टल जाता। लेकिन उल्टे कृष्ण ने अर्जुन को जो कि ध्यान में जाना चाहता था, रोका और उसे युद्ध में लगाया।


महाभारत का युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध है जिसमें करोड़ों लोगों का नरसंहार हुआ, पिछले १२०० सालों में भारत मे कितने महर्षि संत हुए।


गोरखनाथ से लेकर रैदास ओर कबीर तक, गुरुनानक देव जी से लेकर गुरु गोविंदसिंह तक, इन सबकी ध्यान की शक्ति भी मुस्लिम आक्रान्ताओं को न रोक सकी, इस दौरान करोड़ों हिन्दुओं का नरसंहार हुआ और ज़बरदस्ती तलवार की नोक पर उनका धर्म परिवर्त्तन करवाया गया।


मार मार कर उन्हें मुसलमान बनाया गया। उन संतों की शिक्षा आक्रान्ताओं को बदल न सकी। श्री गुरुनानक देव जी ने तो अपना धर्म दर्शन ही इस प्रकार दिया कि मुस्लमान उसे आसानी से समझ सकें, आत्मसात कर सकें, लेकिन उसी गुरु परंपरा में श्री गुरुगोविंद सिह जी को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए, मुसलमानों के खिलाफ़ तलवार उठानी पड़ी। निहत्थे सिक्खों को शस्त्र उठाने पड़े।


इससे स्पष्ट हो जाता है कि ध्यान से स्वयं की ही चेतना का रूपांतरण हो सकता है, लेकिन पदार्थ (भौतिक शरीर ) की रक्षा हमें ख़ुद करनी होगी उसके लिए विज्ञान और टेक्नॉलॉजी का सहारा लेना होगा।


नहीं तो भारत के नौ राज्यों की तरह सनातन संस्कृति नष्ट हो जाएगी। अपने देश, संस्कृति, संपत्ति और अपनी बहन बेटियों को बचाने के लिए हमें अब डिफेंसिव नहीं अटैकिंग मोड़ में रहना होगा।


*यदि अब भी नहीं चेते तो फिर ईश्वर भी कुछ नहीं कर पाएगे।*

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Tuesday, September 24, 2024

इस्लाम की शिक्षाओं से कभी भी दुनिया में विकास नहीं हो सकता।

 इस्लाम की शिक्षाओं से कभी भी दुनिया में विकास नहीं हो सकता।


दुनिया में 58 मुस्लिम देश हैं। लगभग 5 मुस्लिम देश केवल और केवल तेल बेचकर ही अपना विकास कर पाए क्योंकि एकमात्र तेल ही उनके विकास का आधार है।


जो चार देश तेल बेचकर थोड़ा बहुत समृद्ध भी हैं उन देशों में वहां की जनता आज भी शैक्षिक रूप से पिछड़ी हुई है।


ईरान और साऊदी जैसे मुस्लिम देशों की 7०% अर्थव्यवस्था केवल तेल से चलती है। तेल बेचकर जो डालर कमाया उसी से इन देशों ने विदेशों से इंजीनियरिंग और सहायता मांग के अपने देश को थोड़ा बहुत विकसित सा कर दिया।


जिस दिन तेल समाप्त हो गया ये देश दादा आजम के जमाने में चले जाएंगे।


इस्लाम की शिक्षा में ना तो गणित है और ना ही विज्ञान और ना ही नैतिक शिक्षा।


तलाक़, हलाला, कुर्बानी और केवल जेहाद करना तथा दुनिया में केवल इस्लाम की सत्ता यही एकमात्र इस्लाम की शिक्षा का उद्देश्य है।


इस्लाम में औरतों की शिक्षा को हराम माना गया है और उन्हें बस केवल भोग और बच्चे पैदा करने की मशीन माना गया है।


दुनिया के 40 मुस्लिम देश तो ऐसे हैं जहां हर समय अशांति ही फैली हुई है।


सबसे बड़ी बात यह है कि जिन देशों में ९५% से उपर मुस्लिम हैं और पूरी तरह इस्लाम का राज है वहां भी अब तक गडे हुए मुर्दे ना तो कब्रों से बाहर निकले और ना ही उनके जन्नत और दोजख में जाने का फैसला हो पाया।


आज भी वहां मुस्लिम संगठन छोटे छोटे आतंकवादी गुटों में बंटकर एक दूसरे को ७२ हूरों के पास भेजने पर लगे हैं।


इस्लाम के भीतर टालरेंट नाम का शब्द नहीं है। यदि आप इस्लाम विरोधी बातों को तर्क के साथ किसी मुस्लिम के सामने रखेंगे तो वह आक्रोशित हो जाएगा।


कूरान में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है, गैर मुस्लिम  तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं और उनसे युद्ध करो।


मूर्ति पूजकों से दूर रहो और उन्हें इस्लाम में लाओ और यदि वे ऐसा ना करें तो उनके साथ भी युद्ध करो।

गैर इस्लामिक महिलाओं को पहले मुस्लिम बनाकर इमान में लाओ और फिर उनसे निकाह करो।


युद्ध में लूटा गया धन और महिलाओं तुम्हारी हैं। ये जो 72 हूरों वाली कल्पनाएं खलिफाओं की है, युद्ध में जब विरोधी मारे जाएंगे तो उनकी बीवियां और बच्चियों को जो कि युद्ध में जीती गयी हैं उन्हें ही इन आतंक के सरगनाओं के अनुसार 72 हूरें कहा जाता है।


दुनिया के अधिकांश इस्लामिक देश अशांत हैं। इस्लाम को मानने वाले कभी भी मानसिक रूप से खुश नहीं रहते और केवल उनका एक ही उद्देश्य है दुनिया में इस्लाम की सत्ता जो कि कभी होगा ही नहीं।


संसार में एक नियम है, कि जब कोई प्रजाति जंगल में अधिक हो जाती है तो उसे समाप्त करने वाली दूसरी प्रजाति पैदा हो जाती है।


इस्लाम की वैचारिक सोच में अब घुन लग चुका है और इस्लाम के भीतर ही इस्लाम विरोधी शक्तियां पैदा हो गयी है।


अरब का शेख इसका उदाहरण है।

साऊदी में हिंदू मंदिर खुल चुका है और महिलाओं पर धीरे-धीरे अब पाबंदियां हटने लगी है।


ईरान में बुर्के का विरोध हो रहा है।

सनातन धर्म अब सक्रिय हो चुका है।

अधिकांश मुस्लिमों के पूर्वज भी सनातनी हिंदू थे और अब उनका डी एन ए भी इस्लाम के विरुद्ध सक्रिय हो चुका है।


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आया

 _*आया -*_


       माझं बालपण खेड्यात गेलं... एकत्र मोठं कुटुंब होतं त्यामुळे प्रेमाला काही कमी नव्हती सगळे लाड करायचे. खेड्यात असूनही सगळे सुशिक्षित होते त्यामुळे शिक्षण हेच ध्येय होतं. माझं आणि भांवडांचं दहावीपर्यंत शिक्षण गावीच झालं आणि शहरात स्वतःच एक घर घेऊन पुढच्या शिक्षणासाठी आम्हाला तिथे पाठवण्यात आलं. आमच्याबरोबर काळजीवाहू म्हणून काकू रहात होती. सगळ्या सुखसोई करून दिलेल्या होत्या. आमचं कॉलेज जीवन सुरु झालं.....

      मी सॉफ्टवेअर इंजिनियर झाले व मला चांगल्या कंपनीत जॉब लागला. दहा लाखाचं पॅकेज  मिळालं. सगळेच खूप आनंदी झाले. एव्हाणा आमच्या खेड्याचंही रूप बदलून शहरी झाले होते. बोलणं, राहणीमान पुढारल्याने थोडासा गर्व आलाच होता.

       माझी भांवडं पण जॉब ला लागली होती. काही तर परदेशीं गेले... आता वेळ आली होती माझ्या लग्नाची. अर्थातच माझ्याही अपेक्षा खूप होत्या.  माझ्यापेक्षा पॅकेज जास्त असावं, त्याचा स्वतःचा बंगला, गाडी असावी, बॅंक बॅलन्स, एनव्हेसमेंट असावी व घरी आम्ही दोघंच असावेत, घरचे इतर कोणीही नको. फक्त तो राजा आणि मी राणी...

      अपेक्षेप्रमाणे स्थळं बघून आई, पप्पा व घरचे कंटाळले. कुठे मुलगा आवडत होता तर त्याची परिस्थिती नाजूक होती आणि चांगली असली तर मुलगा आवडायचा नाही. अशात माझं वय 30 झालं होतं. मी आर्थिक प्रगती खूप केली होती. अशातच माझ्या कंपनीत अमेरिकेतून आलेला एक भारतीय मुलगा जाॅईन झाला. दिसायला अगदी हँडसम होता. बघताक्षणी तो मला आवडला. हळू हळू ओळख झाली... मैत्री झाली आणि मैत्रीचं रूपांतर प्रेमात झालं.

       त्यांच्याविषयी मी घरी सांगितलं. सगळे खुश झाले‌. खूप थाटामाटात लग्न लावून दिलं. कशाचीच कमी नव्हती. लग्न करून गावी गेलो, पूजा झाली आणि हनिमून साठी स्विझरलँड ला गेलो. दोघांची एक महिन्याची रजा होती. खूप समाधान आणि आनंद ओसंडून वहात होता. दोघांचे विचार जुळत होते. मन एकरूप झालं होतं. जणूकाही एक आत्मा आणि दोन शरीर असेच एकरूप झालो होतो....

      सुट्टी संपली आणि आम्ही घरी आलो. घरी दोघंच होतो. रोज जॉब आणि सुट्टीच्या दिवशी घरी. एकमेकांना वेळ देणं बस... एक दिवस मी बाहेर असतांना खूप मळमळ व्हायला लागली. थोडीशी चक्कर आली. डोळ्यांना अंधारी आली. काहीच सुचेना. मी घरी आले व अभि ला, म्हणजे माझ्या नवऱ्याला कॉल केला. तो लगेच आला व मला हॉस्पिटल मध्ये घेऊन गेला. डॉक्टर म्हणाले, "घाबरण्यासारखं काही नाही, तुम्ही "आई" होणार आहात...

      मला व अभी ला खूप आनंद झाला.

घरी कळवलं. सगळे आनंदात भेटायला आले. येतांना खायला पौष्टिक लाडू करून आणले, काळजी घ्यायला सांगितली व ते पुन्हा गावी परत गेले. 

      नऊ महिने पूर्ण झाले होते. कधीही डिलेव्हरी होईल असं डाॅक्टरांनी सांगितलं. रात्री अचानक पोटात कळा यायला लागल्या व मला हॉस्पिटल मध्ये नेलं‌. सिझर झालं आणि गोड गोंडस गोरीपान मुलगी झाली...

      बस आता एकच मुलगी वाढवायची असा निर्णय आम्ही घेतला. ती एक वर्षाची होईपर्यंत मी सुट्टी घेऊन घरी राहिले. तरीही एक आया होती तिला सांभाळायला, न्हावूमाखू घालायला. तिचा बाळाला लळा लागला होता म्हणून मी बिनधास्त होते. आता कामाचा व्याप वाढला होता. दोघांनाही वेळ मिळत नव्हता. बाळालाही वेळ देता येत नव्हता...

       अशू, म्हणजे माझी मुलगी पाच वर्षांची झाली. तिचं सगळं काही आया करत होती. पण अशू एकटी पडत चालली होती, अगदीच हट्टी झाली होती. कुणाचंही ऐकत नव्हती. तिला थोडा बदल हवा म्हणून मीं एकदा सुट्टी काढून गावी गेले. तिथे माझ्या जावेची मुलं खूप शांत, समजदार, नाती जपणारी, सर्वांचे आदर सन्मान करणारी सुसंकृत मुलं दिसली. त्यांना बघून मला खूप वाईट वाटलं. कदाचित माझी मुलगी आज्जी आजोबांबरोबर राहिली असती तर अशीच घडली असती. कुटुंबात जे वळण लागतं ते चार भिंतीच्या आत आया कडून कसं लागेल.

      मी अभी ला म्हणाले अशू करता मी गावी रहाते, जॉब सोडते. पण अशू ऐकायला तयार नव्हती‌. आज्जी आजोबांना घेऊन जाऊ असं तीला म्हणाले तर आपल्या घरी एक आज्जी (आया) आहे, मला तिच हवी, असं म्हणाली. माझ्या दोघांनीच रहावे या निर्णयामुळे हातातून वेळ निघून गेली होती. पैसा तर आया ला गेला होता पण मुलगी हाताबाहेर गेली होती. आता फक्त पच्छाताप उरला होता....      

     आता अशू कॉलेज मध्ये जात होती. तिला मित्र मैत्रिणी होत्या पण सगळेच बिघडलेले. अगदीच बघवत नव्हतं. पण चूक आमचीच होती. पैसा आणि प्रतिष्ठा कमावण्याच्या नादात संस्कृती हरवली होती.

      अशू एक दिवस परस्पर लग्न करून घरी आली. मुलगा ड्रग्ज घेत होता. बघून खूपच त्रास झाला. आता पैसा असूनही उपयोगी येणार नव्हता. आज माणूस, आपलं माणूस हवं होतं असं मनाला वाटून गेलं.....

     अभी ला हे सारं सहन झालं नाही‌. अटॅक येऊन तो जागीच गेला. माझ्या डोळ्यापुढे अंधार पसरला होता..... आज पैसा, प्रतिष्ठा सगळं होतं पण इज्जत राहिली नाही हेच खरं होतं.....

      सगळं दान करायचं, आश्रमात जाऊन रहायचं आणि तिथे सेवा करायची असं मी ठरवलं, कारण गावी तर जाऊ शकत नव्हते. काय तोंड घेऊन जाणार.... लग्नासाठी मी घातलेल्या अटीची मला लाज वाटत होती. आज जर माझे सासू सासरे माझ्या सोबत असते तर आज्जी आजोबांच्या संस्कारात मुलगी वाढली असती आणि हे दिवस बघावे लागले नसते. पगारी आया या पैसा घेऊन कामं करणाऱ्या असतात. त्या काय मुलांना वळण, संस्कार लावणार.....

      अनुभवातून मला हेच सांगायचंय की नाती जपा. आपल्या मुलांना पाळणा घर किंवा आया नकोय, आज्जी आजोबांची छत्रछाया हवी. संस्काराची शिदोरी फक्त आज्जी आजोबाच देऊ शकतात. तेंव्हा आयुष्यभर पुरेल एवढा पैसा, प्रतिष्ठा तर हवीच, त्याच बरोबर नाती आणि संस्कार ही हवेत, तेंव्हाच संस्कृती टिकेल हे लक्षात असु द्या....

     मी चुकले, तुम्ही चुकू नका. आई वडिलांनी शिकवलं म्हणून आपण  प्रतिष्ठा मिळवली, प्रगती केली. जसे आपल्या आई वडिलांनी कष्ट केले तसेच सासू सासऱ्यांनी पण केलेले असतात, म्हणून नवरा क्लासवन अधिकारी होतो, म्हणून त्यांना मान द्या, सन्मान करा आणि पुढची पिढी सुसंस्कारी घडवा, तरच शेवट छान होईल, नाहीतर आहेच माझ्यासारखं वृद्धाश्रमी जीवन.

      आणि हो.... अशू कुठे आहे, काय करते, माहित नाही. ती जिवंत आहे की नाही तेही माहित नाही. मी गेलेल्या वेळेच्या आणि पैशाच्या नादात मुलीला वेळ न दिल्याचा फक्त पश्चाताप करत बसते, दुसरं माझ्या हाती काही नाही.

शिक्षण घ्या पण गर्व करू नका.

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Monday, September 23, 2024

हमें बिना संगठन के टिके रहना संभव नहीं।

"हमें बिना संगठन के टिके रहना संभव नहीं। आत्मरक्षण की आवश्यकता किसी को भी समझाने की आवश्यकता नहीं रही। हाथ में अगर लाठी है तो आत्मरक्षा के लिए ही तो है ना? और आत्मरक्षा के लिए इससके भी आगे के साधन हैं। हमें रायफल इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं थी इसलिए लाठी से काम चला लेते थे। लेकिन अब अगर हमें रायफल इस्तेमाल करने की अनुमति मिली तो इस अवसर का अवश्य  उपयोग करना चाहिए। हाथ में केवल लाठी पकड़कर नहीं चलेगा - साथ साथ बुद्धि का उपयोग भी अवश्य करना चाहिए। कल्पना और कृति; बुद्धि और हाथ इनका समन्वय हो तो ही काम का है। 


आज हमें परिस्थिति का विचार करना आवश्यक है। आज (अंग्रेज़) सरकार खुद हो कर हमें सेना में दाखिल होने को न्योता दे रही है। आज तक अगर हमारी इच्छा हो तो भी हम ऐसा नहीं कर सकते थे, वही अवसर सामने से निमंत्रण दे रहा है। अगर इसे गंवा देंगे तो जिंदगीभर पछताना पड़ेगा। पहले अगर चोरी छुपे बम बनाते पकड़े गए तो पाचीस साल की सज़ा मिलती थी, आज सरकार (यही सब सीखने) पच्चीस रुपयों की  वृत्ति दे कर बुला रही है। 


यह आक्षेप किया जाएगा कि अंग्रेज़ सेना में भर्ती हो कर हम उनकी सत्ता को बल दे रहे हैं। लेकिन असल में देखें तो बाहर रहकर ही हम उनका बल बढ़ाने को कारण होते हैं। कौनसी  ऐसी बात है जहां आज वे हम पर भारी नहीं हैं ? इसलिए इस दास्य को कम करने का मार्ग है सेना में भर्ती होना। हमारे सेना में भर्ती होने से अंग्रेजों को भले ही थोड़ा लाभ पहुंचता हो, हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम उनके लाभ के लिए नहीं बल्कि हमारे लाभ के लिए सेना में शामिल हो रहे हैं।"


समग्र सावरकर खंड 8, स्फुट लेख पृष्ठ 68 (यथा शक्ति भावानुवाद)

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टिप्पणी 


वीर सावरकर पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि वे अंग्रेजों के सहायक थे, उन्होने हिंदुओं को अंग्रेज़ सेना में भर्ती हो कर विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की ओर से लड़ने को उद्युक्त किया। उन्होने ऐसा क्यों किया इसका स्पष्ट उत्तर ऊपर दिया है। 


फिर भी उनपर आरोप लगाए जाते रहेंगे क्योंकि उनके विचार हर राष्ट्रभक्त के लिए एक वैचारिक कवच और अस्त्र शस्त्र का भी काम करते हैं, और वा क ई  गिरोह को यह कैसे बर्दाश्त हो ? उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर अक्सर कोई न कोई भैजान उनके तथाकथित "माफीनामे" को लेकर उनपर कायरता का आरोप लगाता है, लेकिन हुदैबिया की सुलह की बात करते ही गायब हो जाते हैं।


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Sunday, September 22, 2024

पाकिस्तान के सभी नाभिकीय अंडे, एक ही टोकरी में नहीं हैं!

 पाकिस्तान के सभी नाभिकीय अंडे, एक ही टोकरी में नहीं हैं!


टोकरी में अंडे रखना, बहुत बड़ी कला है. चूंकि सारे अंडे एक ही टोकरी में न रखे जाएँ, ऐसी हिदायतें मानवजाति के पूर्वजों ने दी हैं : "डोंट पुट ऑल एग्स इन अ बास्केट!" -- इससे क्या होता है कि सभी अंडों के नाश के लिए केवल एक प्रहार ही काफी होता है.


ठीक वैसे ही, किसी राष्ट्र के नाभिकीय कार्यक्रम में प्रयोजे जाने वाले संयंत्रों को एक ही लोकेशन पर निर्मित नहीं किया जाता. बल्कि एक लोकेशन पर अधिकतम दो या तीन चरणों का कार्य होता है. और इस तरह के फैलाव में भी यही लाभ है कि एक प्रहार से सब कुछ नष्ट नहीं होता!


एक सफल नाभिकीय कार्यक्रम की शुरुआत खनन से होती है, यानी कि यूरेनियम अयस्क का जमीं से निकाला जाना! और फिर दर्जन भर बड़ी बड़ी प्रक्रियाओं से गुजरने के पश्चात् ही उस ईंधन का वेपनाइजेशन हो पाता है, यानी कि वो अपनी अंतिम परिणीति पर पहुंच पाता है.


पाकिस्तान के पास कुल दो माइनिंग यूनिट्स हैं.


पहली यूनिट "लक्की" में है. ख़ैबर-पख़्तूनख़्वाह प्रान्त का जिला, लक्की मारवात, जोकि अपने खानेपीने के स्वाद के लिए प्रसिद्ध है. वहां एक पश्तो व्यंजन बहुत मशहूर है, जिसे वो लोग "पैंदा" या "सोहबत" कह कर पुकारते हैं. ये नाम पाकिस्तानी नाभिकीय कार्यक्रम में कोडवर्ड्स के रूप में खूब इस्तेमाल हुए थे.


दूसरी माइनिंग यूनिट पंजाब प्रांत के डेरा गाज़ी खान में है. ये उन्नत किस्म का संयंत्र है. यहाँ न केवल माइनिंग होती है, बल्कि माइनिंग के उपरान्त मिलिंग और यूरेनियम-हेक्जाफ्लोराइड कन्वर्जन भी होता है. मिलिंग का अर्थ है, यूरेनियम अयस्क को चूर्ण-रूप में लाना.


डेरा गाज़ी खान, यूरेनियम-हेक्जाफ्लोराइड कन्वर्जन में इकलौती, माइनिंग में दूसरी और मिलिंग में तीसरी यूनिट है. मिलिंग की शेष दो यूनिट्स भी पंजाब प्रांत में हैं. एक मियांवाली जिले के इसाखेल कसबे में है, और दूसरी राजधानी लाहौर में!


डेरा गाज़ी खान, पाकिस्तानी नाभिकीय कार्यक्रम के अंडों वाली महत्त्वपूर्ण टोकरी है. ऐसी बहुत कम टोकरियाँ हैं, जहाँ तीन तीन तरह के अंडे मौजूद हैं.


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माइनिंग, मिलिंग और यूरेनियम-हेक्जाफ्लोराइड कन्वर्जन के अलावा भी तमाम संयंत्र होते हैं. जैसे कि भारी जल उत्पादन का संयंत्र!


भारी जल, भौतिक रूप से जल जैसा किन्तु रासायनिक रूप से भिन्न होता है. उसमें हाइड्रोजन की जगह, उसका आइसोटोप ड्यूटीरियम होता है. इसका गुण है कि ये नाभिकीय अभिक्रिया के दौरान एक न्यूट्रॉन को अवशोषित कर "कूलिंग" का काम करता है.


यों तो इस काम को जल भी कर सकता है किंतु जल एक से अधिक न्यूट्रॉन को अवशोषित कर अभिक्रिया का संतुलन बिगाड़ सकता है. सो, यू-235 की अभिक्रिया के अलावा, जल के स्थान पर भारी जल प्रयुक्त होता है. जिसमें एक न्यूट्रॉन से अधिक अवशोषित करने की गुंजाइश ही नहीं होती.


पाकिस्तान के पास भारी जल का एकमात्र संयंत्र पंजाब प्रांत के मुल्तान शहर में है, जो अपनी आपूर्ति चिनाब नदी से करता है. यदि भारत चिनाब का जल रोक दे, तो पाकिस्तान के नाभिकीय संयंत्र महीनों के लिए आफत में पड़ जाएंगे!


इसी तरह एक एक अंडों वाली टोकरियों में बलूचिस्तान का चागई हिल्स, पंजाब का कुंडियाँ और वाह, रावलपिंडी का सिहाला, सिंध का कराची और ऐतिहासिक नगरी तक्षशिला से सत्रह किमी दूर गोलरा शरीफ भी शामिल हैं.


चागई हिल्स में न्यूक्लियर टेस्टिंग, कुंडियाँ में फ्यूल फेब्रिकेशन, वाह में वेपनाइजेशन, सिहाला व गोलरा शरीफ़ में यूरेनियम एनरिचमेन्ट और कराची में न्यूक्लियर रिएक्टर स्थित हैं.


अब तक के उल्लेखों से बाद भी शेष रहीं दो अंडों वाली टोकरियों में पंजाब का कुहाटा, चश्मा और खुशाब शामिल हैं. कुहाटा में वेपनाइजेशन व यूरेनियम एनरिचमेन्ट की यूनिट्स हैं. चश्मा में न्यूक्लियर रिएक्टर व कुल दो में से एक प्लूटोनियम रीप्रोसेसिंग सेंटर है. खुशाब में न्यूक्लियर रिएक्टर व ट्रीटियम उत्पादन सेंटर है.


अब केवल एक टोकरी ऐसी रही, जिसका उल्लेख नहीं हो सका है. वो है, पिंस्ट, पकिस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूक्लियर साइंस एंड टेक्नोलॉजी. यहाँ इस टोकरी में न्यूक्लियर रिएक्टर है, प्लूटोनियम रीप्रोसेसिंग सेंटर भी है और समूचे नाभिकीय कार्यक्रम का एकमात्र आरएनडी सेंटर भी!


इस तरह आंकड़े जोड़े जाएँ तो पाकिस्तान के पास कुल बाईस संयंत्र हैं! जिनमें कि फ्यूल फेब्रिकेशन, भारी जल, न्यूक्लियर टेस्टिंग, आरएनडी, यूरेनियम-हेक्जाफ्लोराइड कन्वर्जन व ट्रीटियम उत्पादन का एक एक संयंत्र है.


माइनिंग, प्लूटोनियम रीप्रोसेसिंग व वेपनाइजेशन के दो दो संयंत्र हैं. मिलिंग व यूरेनियम एनरिचमेन्ट के तीन संयंत्र हैं. और संयंत्रों में सर्वाधिक न्यूक्लियर रिएक्टर्स हैं, कुल चार प्लांट्स!


इस तरह एक फाइनल एनालिसिस की जाए तो कहा जाएगा कि पाकिस्तान ने अपने नाभिकीय कार्यक्रम के लिए पंद्रह टोकरियाँ चुनी हैं. जिनमें कुल बारह अंडों को एक/दो/तीन व चार की आवृत्ति में कुलजमा बाईस बार स्थापित किया है.


आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इजराइल ने भारत के समक्ष पाकिस्तान के जिन संयंत्रों को तहस-नहस करने की पेशकश की, वो कुहाटा और वाह के वेपनाइजेशन सेंटर्स थे. अगर ये होता, तो इतिहास में पाकिस्तान की मिसाइल के स्थान पर भारत की मिसाल कायम होती, किन्तु दुर्भाग्य थे कि ये हो न सका!


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Saturday, September 21, 2024

*हिंदु कौम एक ऐसी ही सेना है जिसका कोई लक्ष्य नहीं, कोई मंजिल नहीं, शत्रु की पहचान नहीं, अपना कोई सेनापति नहीं !*

 *हिंदु कौम एक ऐसी ही सेना है जिसका कोई लक्ष्य नहीं, कोई मंजिल नहीं, शत्रु की पहचान नहीं, अपना कोई सेनापति नहीं !*


*दुश्मन को न पहचानने वाली, नेतृत्वहीन विराट सेना भी अंततः युद्ध हार जाती है ...*


*हिंदुओं से ज्यादा राजनैतिक लक्ष्यहीन और दिशाहीन कौम कोई नहीं, क्योंकि हिंदुओं के नेता तो बहुत हैं पर उनके मन में हिंदुओं के साम्राज्य जैसा कोई लक्ष्य नहीं, कोई महत्वाकांक्षा नहीं; इसलिए हिंदु नेताओं को सेकुलरिज्म की चादर ओढ़कर हिंदुओं के रक्त की प्यासी कौम से भाईचारा निभाने में भी कोई लज्जा नहीं आती!*


*सत्ता का जो तंत्र अंग्रेज स्थापित कर गए, मात्र वे उसे ढोना चाहते हैं, उसपर बैठकर उसे भोगना चाहते हैं, यही हिंदु नेताओं की महत्वाकांक्षा है!*


*जबकि कम्युनिस्टों, मुसलमानों और ईसाईयों का स्पष्ट राजनैतिक लक्ष्य है। कम्युनिस्ट साम्यवादी शासन वाला भारत चाहते हैं, मुसलमान शरीयत कानून वाला इस्लामिक भारत चाहते हैं और ईसाई बाइबिल वाला रोमानियाई भारत चाहते हैं, पर हिंदुओं के मन में ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है।*

उनके पास चीन, अरब और रोम का मॉडल है पर हिंदुओं के पास ऐसा कोई मॉडल नहीं ।


*हिंदुओं से राजनैतिक लक्ष्य की बात करो,  महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी से मुक्ति से आगे उनकी कोई सोच नहीं होती!*

*जबकि महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी जैसी बीमारियां इसी राजनैतिक लक्ष्यहीनता के कारण हैं! जिस दिन हिंदुमन स्वराज, हिंदु साम्राज्य और अखण्ड भारत बनाने की महत्वाकांक्षा से भर जाएगा उस दिन भारत महगांई, बेरोजगारी और गरीबी जैसी बीमारियों से भी स्वतः मुक्त होने लगेगा!*


*हिंदुओं की राजनीतिक दिशाहीनता का इतिहास सदियों पुराना हो चला है। जिन्ना 'डायरेक्ट एक्शन डे' की घोषणा करता है परंतु हिन्दू उसके प्रति भी मूकदर्शक रहता है जबकि वो जानता है कि दूसरा पक्ष कभी भी कार्यवाही करके हमारा कत्लेआम कर सकता है!*

*बर्मा, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, तिब्बत, श्रीलंका आदि को भारत से तोड़कर अलग किया जाता रहा परंतु हिंदू फिर भी मूकदर्शक बना रहा।  1947 में भारत का 31 प्रतिशत हिस्सा काटकर मुसलमानों को दे दिया जाता है, परंतु हिंदू फिर भी मूकदर्शक रहता है!  ....और पाकिस्तान देने के बाद भी मुसलमानों को भारत में बसा लेता है!*


*1947 में रोके गए मुसलमान आज फिर भारत विभाजन की मांग कर रहे हैं पर हिंदू मौन है!*

*भारत में लाखों एकड़ भूमि वक्फ बोर्डों के नाम कर दी जाती है परंतु हिंदू फिर भी मूकदर्शक रहता है!*


*हिंदू अपने अयोध्या, काशी, मथुरा जैसे तीर्थ स्थलों के उत्थान का कार्य नहीं कर पाता, फिर भी हिन्दू मूकदर्शक रहता है!*

*पूरा भारत हिंदुओ के हाथों से जा रहा है परंतु हिन्दू आज तक ये निर्धारित न सके कि हमारा लक्ष्य क्या होना चाहिए!*

*हिंदुओं का घर उजड़ रहा है पर हिन्दू चैन से सो रहे हैं।*


*मिश्रित आबादी वाले क्षेत्र में जाइये और बात कीजिये, आप पायेगें कि हर साल हिंदू ही अपने मकान-दुकान बेचकर निकल रहे हैं!*

*और ये भारत के हर राज्य, हर शहर - कस्बे में हो रहा है।*


भारत की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है, भारत के अंदर सैकड़ों पाकिस्तान जन्म ले चुके हैं।


*भारत हिंदुराष्ट्र घोषित होगा तो सनातन संस्कृति के पोषण के लिए कानून बन सकेंगे।*

*हिंदुराष्ट्र भारत में हिंदुओं की संपत्ति अन्य कोई मजहब का व्यक्ति न खरीद सके, ऐसा कानून बना सकते हैं।*

*हिंदुराष्ट्र भारत में हिंदुओं का धर्मांतरण नहीं किया जा सके ऐसा कानून बनाया जा सकता है।*

*हिंदुराष्ट्र भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धर्म, संस्कृति और अपने पूर्वजों को कोई गाली नहीं दे सकेगा, ऐसा कानून बना सकते हैं।*

*हिंदू राष्ट्र भारत में समस्त नौकरियों में प्रथम वरीयता हिंदुओं को दी जायेगी*


 *सेकुलर भारत अपंग और असहाय है, वह अपनी संस्कृति और मूल प्रजा की रक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा सकता, चाहे सत्ता पर कोई भी क्यों ना बैठा हो ।*


*अंग्रेजों द्वारा थोपे गए संविधान और शासन तंत्र को इसी प्रकार हम ढोते रहेंगे, तो एक दिन वह आएगा कि भारत के हर संसाधन पर और सत्ता पर मुसलमानों का शासन होगा और जिस दिन वहां सत्ता के शीर्ष पर कोई मुसलमान पहुंचेगा, उस दिन संविधान का पालन नहीं होगा बल्कि शरिया लागू कर भारत इस्लामिक राष्ट्र घोषित हो जाएगा!*

*तब तुम्हें वही मिलेगा जो मुसलमानों के 800 साल के शासन में काफिरों को मिलता रहा है.., वही मिलेगा जो ईरान में पारसियों को मिला, सीरिया में  यजीदियों को मिला...!*


*हिंदू नेता भारत को हिंदुराष्ट्र बनाने में हिचकते हैं, उसकी बात तक करने से डरते हैं, उस पर चर्चा परिचर्चा करने से उनके हाथों में कंपन शुरू हो जाता है! परंतु याद रखना, जिस दिन मुसलमान सत्ता के शीर्ष पर होगा उस दिन इस्लामिक राष्ट्र घोषित करने में उन्हें तनिक भी लज्जा, हिचक और देर नहीं होगी!**इस्लामिक भारत में जो रोड़ा बनेगा उसे पारसियों, यजीदियों, सिंध और कश्मीरी हिंदुओं की तरह काट दिया जाएगा।*

*सिंध व कश्मीर में हिन्दुओं के साथ क्या हुआ, यह भी ध्यान में रखना चाहिए।*

 

*अगर भारत, हिन्दू और सनातन संस्कृति का तनिक भी मोह है और इसकी रक्षा चाहते हैं तो केवल और केवल हिंदुराष्ट्र भारत के लिए संघर्षरत रहना चाहिए।*

*हर हिंदू को अपने हिंदू नेताओं को हिंदुराष्ट्र भारत के लिए मजबूर करना होगा!*


*हिन्दुओं की रक्षा सुरक्षा की गारंटी कोई सरकार, कोई नेता, कोई पार्टी, कोई संगठन नहीं बन सकता...  जबकि स्वराज और हिन्दुराष्ट्र अखंड भारत ही हिंदुओं की, भारत की, सनातन संस्कृति की रक्षा, सुरक्षा और पोषण की गारंटी बन सकता है...!*

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Friday, September 20, 2024

*मूर्खता की कोई सीमा नहीं !*

 *मूर्खता की कोई सीमा नहीं !*


❌ * बाबा की मजार,*

❌ *गाजीयों की मजार,*

❌ *ख्वाजा गरीब नवाज़,*

❌ *अमीर खुसरो,*

❌ *निजामुद्दीन औलिया,*

❌ *हाजी अली,*

❌ *मामा-भांजा की मज़ार*


*आदि...आदि...वाह रे हिन्दू सनातनी !*

*दरगाह पर जाकर मन्नत माॅंगने वाले सनातन धर्मी हिन्दू लोगों के लिए विशेष...*


*क्या एक कब्र जिसमें मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चुकी है, वो किसी की मनोकामना पूरी कर सकती हैं ?*


*गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मुर्दा, पितृ (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र, मजार अथवा समाधि) को सकाम भाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत- प्रेत व पितृ की योनी में ही विचरण करते हैं व उसी अवस्था को प्राप्त होते है।*


*ज्यादातर कब्र या मजार उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजों से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत माॅंगना क्या उन वीर पूर्वजों का अपमान नहीं हैं ? जिन्होंने अपने प्राण धर्म की रक्षा करते हुए बलि वेदी पर समर्पित कर दिये थे ?*


*गाज़ी उसे कहते हैं जिसने हज़ारों हिंदुओं की हत्या की हो और मुस्लमान बनाया हो और काफिर स्त्रियों का बलात्कार किया हो ! उनकी पूजा करना क्या महापाप नही है ? क्या हमारे भगवान राम शक्तिहीन हैं, जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक है ?*


*अब तो अंधविश्वासी हिन्दुओं ने साॅई उर्फ चाँद मियाँ जेहादी का मन्दिर बनवाकर उसे भगवान राम के समकक्ष रखकर पूजा और आरती शुरू कर दी है ! हद है मूर्खता की !*


*कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ माॅंगने से क्या मिलेगा ?*


*भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा, बंदा बहादूर, गुरु गोविंद सिंह, बुद्ध, महावीर स्वामी, स्वामी विवेकानंद आदि वीरों की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं ? तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालों की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते हैं ?क्यों इस देश में लुटेरे हत्यारे अरबो के नाम पर शहर मार्ग हैं, किसने रखे उन नमुरादों के नाम, क्यो उन नामों को हटाने पर आपत्ति जताई जाती है??स्वाभिमान है या मर चुका है*


*हिन्दू कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहे हैं, जो वेदों-उपनिषदों-पुराणों-स्मृतियों आदि में कहीं नहीं गयीं हैं !*


*कब्र, मजार पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की निशानी बताना हिन्दुओं को अँधेरे में रखना नहीं तो क्या हैं ?* 

*मुस्लिम भी मन्दिरों में शीश झुकाए ,क्या ये संभव है___ नहीं ना।। तो ये मूर्ख हिन्दू क्या अपने धर्म पर गर्व महसूस नहीं करते,*


*अगर आप अल्लाह के नहीं भगवान के भक्त  हैं तो तत्काल इस मूर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दें और अन्य हिन्दुओं को भी इस बारे में बता कर उनका अंधविश्वास दूर करे*..


*जागो...अंध विश्वास छोड़ो...*


✅✅✅🚩🚩🚩

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इस्लाम की शिक्षाओं से कभी भी दुनिया में विकास नहीं हो सकता।

 इस्लाम की शिक्षाओं से कभी भी दुनिया में विकास नहीं हो सकता।


दुनिया में 58 मुस्लिम देश हैं। लगभग 5 मुस्लिम देश केवल और केवल तेल बेचकर ही अपना विकास कर पाए क्योंकि एकमात्र तेल ही उनके विकास का आधार है।


जो चार देश तेल बेचकर थोड़ा बहुत समृद्ध भी हैं उन देशों में वहां की जनता आज भी शैक्षिक रूप से पिछड़ी हुई है।


ईरान और साऊदी जैसे मुस्लिम देशों की 7०% अर्थव्यवस्था केवल तेल से चलती है। तेल बेचकर जो डालर कमाया उसी से इन देशों ने विदेशों से इंजीनियरिंग और सहायता मांग के अपने देश को थोड़ा बहुत विकसित सा कर दिया।


जिस दिन तेल समाप्त हो गया ये देश दादा आजम के जमाने में चले जाएंगे।


इस्लाम की शिक्षा में ना तो गणित है और ना ही विज्ञान और ना ही नैतिक शिक्षा।


तलाक़, हलाला, कुर्बानी और केवल जेहाद करना तथा दुनिया में केवल इस्लाम की सत्ता यही एकमात्र इस्लाम की शिक्षा का उद्देश्य है।


इस्लाम में औरतों की शिक्षा को हराम माना गया है और उन्हें बस केवल भोग और बच्चे पैदा करने की मशीन माना गया है।


दुनिया के 40 मुस्लिम देश तो ऐसे हैं जहां हर समय अशांति ही फैली हुई है।


सबसे बड़ी बात यह है कि जिन देशों में ९५% से उपर मुस्लिम हैं और पूरी तरह इस्लाम का राज है वहां भी अब तक गडे हुए मुर्दे ना तो कब्रों से बाहर निकले और ना ही उनके जन्नत और दोजख में जाने का फैसला हो पाया।


आज भी वहां मुस्लिम संगठन छोटे छोटे आतंकवादी गुटों में बंटकर एक दूसरे को ७२ हूरों के पास भेजने पर लगे हैं।


इस्लाम के भीतर टालरेंट नाम का शब्द नहीं है। यदि आप इस्लाम विरोधी बातों को तर्क के साथ किसी मुस्लिम के सामने रखेंगे तो वह आक्रोशित हो जाएगा।


कूरान में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है, गैर मुस्लिम  तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं और उनसे युद्ध करो।


मूर्ति पूजकों से दूर रहो और उन्हें इस्लाम में लाओ और यदि वे ऐसा ना करें तो उनके साथ भी युद्ध करो।

गैर इस्लामिक महिलाओं को पहले मुस्लिम बनाकर इमान में लाओ और फिर उनसे निकाह करो।


युद्ध में लूटा गया धन और महिलाओं तुम्हारी हैं। ये जो 72 हूरों वाली कल्पनाएं खलिफाओं की है, युद्ध में जब विरोधी मारे जाएंगे तो उनकी बीवियां और बच्चियों को जो कि युद्ध में जीती गयी हैं उन्हें ही इन आतंक के सरगनाओं के अनुसार 72 हूरें कहा जाता है।


दुनिया के अधिकांश इस्लामिक देश अशांत हैं। इस्लाम को मानने वाले कभी भी मानसिक रूप से खुश नहीं रहते और केवल उनका एक ही उद्देश्य है दुनिया में इस्लाम की सत्ता जो कि कभी होगा ही नहीं।


संसार में एक नियम है, कि जब कोई प्रजाति जंगल में अधिक हो जाती है तो उसे समाप्त करने वाली दूसरी प्रजाति पैदा हो जाती है।


इस्लाम की वैचारिक सोच में अब घुन लग चुका है और इस्लाम के भीतर ही इस्लाम विरोधी शक्तियां पैदा हो गयी है।


अरब का शेख इसका उदाहरण है।

साऊदी में हिंदू मंदिर खुल चुका है और महिलाओं पर धीरे-धीरे अब पाबंदियां हटने लगी है।


ईरान में बुर्के का विरोध हो रहा है।

सनातन धर्म अब सक्रिय हो चुका है।

अधिकांश मुस्लिमों के पूर्वज भी सनातनी हिंदू थे और अब उनका डी एन ए भी इस्लाम के विरुद्ध सक्रिय हो चुका है।


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अफगान छोड़ कर जितने भी भागे थे सब के सब पुरुष और नौजवान भागे। एक भी महिला या बच्चा भागते हुए नजर नहीं आया।

 अफगान छोड़ कर जितने भी भागे थे सब के सब पुरुष और नौजवान भागे। एक भी महिला या बच्चा भागते हुए नजर नहीं आया।


क्या ऐसा मुमकिन है, कि घर पर और सर पर मौत मंडरा रही हो और आप अपनी मां , बहन, बीवी और बच्चों को छोड़कर भाग जाएं? आप भाग जाएं सो तो भाग जाएं किंतु क्या घर के बाकी सदस्य यूं ही घर पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते हैं? क्या एक भी बच्चा, एक भी महिला, एक भी बूढ़ी औरत, एक भी जवान लड़की अपनी जान बचाने की कोशिश में न भागेगी? भागेगी अवश्य भागेगी बल्कि वह आपको अपने साथ ले कर भागेगी या तो आपको घर में छुपा कर खुद घर के दरवाजे पर प्रहरी बनकर खड़ी हो जायेगी। 


मगर अफगानिस्तान में ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि ठीक इसके विलोम हुआ, इससे साफ जाहिर होता है कि अफगानिस्तान में भागने और भगाने का जो भी नाटक हुआ वह एक पूर्व नियोजित योजना के तहत हुआ है और घर की औरतों और मर्दों की आपसी सहमती से हुआ है। औरतों को अफगान में ही रह कर अपना घर अपनी जमीन संभालने का फर्ज बख्शा गया है और पुरुषों को दूसरे देशों में जाकर शरण लेने की कवायद में लगाया गया है ताकि वे वहां मुस्लिम ताकत में अपनी ताकत जोड़ सकें और गजवा ए हिंद को दुनिया भर में प्रसारित कर सकें। यह भी एक तरह का जिहाद है जिसे बड़ी चालाकी और करीने से तैयार किया गया है।


ताज्जुब होता है भागने वालों को एकदम खाली हाथ भागते हुए देखकर , किसी के भी हाथ में कुछ भी नहीं है। मैंने तो इतिहास में आज तक ऐसे भगोड़े न देखे हैं और न ही सुने हैं। दूसरी बात इनका देश छोड़कर भागना वैसे भी शक पैदा करता है जबकि यह भागना बिना किसी मारकाट, लूट खसोट और ब्लातकारों के भी हुआ है। देखा जाए तो तालिबान ने अफगान पर कब्जा किया नहीं है बल्कि साफ साफ दिख रहा है कि अफगानिस्तान सरकार ने अफगान को तालिबान के हाथों में सौंप दिया है, बिना किसी लड़ाई के बिना किसी फसाद के। तालिबानियों ने भी ज्यादा कहर तो अफगानिस्तान पर ढहाए ही नहीं, औरतों को घसीटा ही नहीं, उनकी आबरू लूटी ही नहीं , बच्चों को काटा ही नहीं, औरतों के बाजार सजाए ही नहीं,मर्दों गले रेते ही नहीं, उन्हें चौराहों पर लटकाया ही नहीं तब ऐसा क्या कारण हुआ कि ये अफगानी पठान अचानक भगोड़े शरणार्थी बनकर अफगान छोड़ कर भागने लगे।


साजिश है बहुत बड़ी साजिश है और यह साजिश भारत के दुश्मन देशों ने मिलकर पाकिस्तान की अगुवाई में भारत के खिलाफ की है और इसमें अहम भूमिका उनकी भी है जो लोग जमीन से भारतीय हैं किंतु जमीर से पाकिस्तानी हैं। 


भारत के हर एक हिंदू और गैर मुस्लिम को इस साजिश को समझना होगा और साथ ही साथ समझना यह भी होगा कि अब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना बहुत खतरनाक होगा, अब अहिंसा के साधक बने रहना बहुत घातक होगा, अब इंतजार करना बहुत जौखिमपूर्ण होगा। 


हिंदुओं को अब पूरी सामर्थ्य के साथ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का विप्लव आरंभ कर देना चाहिए और इस क्रांति में हमें एक बार अपना तन, मन और धन न्योछावर करना चाहिए। भारत के उन बुद्धि जीवियों के संदेश जरा ध्यान से पढ़िए जो तालिबान को अफगान की आजादी की लड़ाई जीतने की बधाई दे रहे हैं।तब क्या हम हिंदुओं को हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई नहीं लगनी चाहिए। जब वे लोग एक लोकतंत्र अफगानिस्तान को खत्म कर शरिया कानून को वहां लागू करने को वहां की स्वतंत्रता कह रहे हैं तब हिंदू क्यों नहीं इस तथाकथित लोकतंत्र को हिंदू तंत्र में बदल सकता?


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🙏*संत की संगति🙏

 ‼️🙏जय श्री हरि 🙏‼️


🙏*संत की संगति🙏


एक जंगल में एक संत अपनी कुटिया में रहते थे।

एक किरात (शिकारी), जब भी वहाँ से निकलता संत को प्रणाम ज़रूर करता था।

एक दिन किरात संत से बोला की बाबा मैं तो मृग का शिकार करता हूँ,

आप किसका शिकार करने जंगल में बैठे हैं.?

संत बोले - श्री कृष्ण का, और फूट फूट कर रोने लगे।

किरात बोला अरे, बाबा रोते क्यों हो ?

मुझे बताओ वो दिखता कैसा है ? मैं पकड़ के लाऊंगा उसको।

संत ने भगवान का वह मनोहारी स्वरुप वर्णन कर दिया....कि वो सांवला सलोना है, मोर पंख लगाता है, बांसुरी बजाता है।

किरात बोला: बाबा जब तक आपका शिकार पकड़ नहीं लाता, पानी भी नही पियूँगा।

फिर वो एक जगह जाल बिछा कर बैठ गया...

3 दिन बीत गए प्रतीक्षा करते करते, दयालू ठाकुर को दया आ गयी, वो भला दूर कहाँ है,

बांसुरी बजाते आ गए और खुद ही जाल में फंस गए।

किरात तो उनकी भुवन मोहिनी छवि के जाल में खुद फंस गया और एक टक शयाम सुंदर को निहारते हुए अश्रु बहाने लगा,

जब कुछ चेतना हुयी तो बाबा का स्मरण आया और जोर जोर से चिल्लाने लगा शिकार मिल गया, शिकार मिल गया, शिकार मिल गया,और ठाकुरजी की ओर देख कर बोला,

अच्छा बच्चु .. 3 दिन भूखा प्यासा रखा, अब मिले हो,

और मुझ पर जादू कर रहे हो।

कृष्ण उसके भोले पन पर रीझे जा रहे थे एवं मंद मंद मुस्कान लिए उसे देखे जा रहे थे।

किरात, कृष्ण को शिकार की भांति अपने कंधे पे डाल कर और संत के पास ले आया।

बाबा,

आपका शिकार लाया हुँ... बाबा ने जब ये दृश्य देखा तो क्या देखते हैं किरात के कंधे पे श्री कृष्ण हैं और जाल में से मुस्कुरा रहे हैं।

संत के तो होश उड़ गए, किरात के चरणों में गिर पड़े, फिर ठाकुर जी से कातर वाणी में बोले -

हे नाथ मैंने बचपन से अब तक इतने प्रयत्न किये, आप को अपना बनाने के लिए घर बार छोडा, इतना भजन किया आप नही मिले और इसे 3 दिन में ही मिल गए...!!

भगवान बोले - इसका तुम्हारे प्रति निश्छल प्रेम व कहे हुए वचनों पर दृढ़ विश्वास से मैं रीझ गया और मुझ से इसके समीप आये बिना रहा नहीं गया

भगवान तो भक्तों के,संतों के आधीन ही होतें हैं

जिस पर संतों की कृपा दृष्टि हो जाय उसे तत्काल अपनी सुखद शरण प्रदान करतें हैं। किरात तो जानता भी नहीं था की भगवान कौन हैं,

पर संत को रोज़ प्रणाम करता था संत प्रणाम और दर्शन का फल ये है कि 3 दिन में ही ठाकुर मिल गए

यह होता है संत की संगति का परिणाम!!,

जय श्री राधे राधे 🙏🌹🌹

*जय श्री राम*

Thursday, September 19, 2024

मुझे पता है मेरी पोस्ट कुछ मेरे मित्रो को अच्छी नहीं लगती,

 देखो दोस्तों


मुझे पता है मेरी पोस्ट कुछ मेरे मित्रो को अच्छी नहीं लगती,


मैं उनसे यही कहना चाहता हूँ!


ना मै डरपोक हूँ , ना मैं  बाहुबली हूँ ,ना मै घमंडी हूँ 

और ना ही मेरा राजनीती से कोई लेना देना है!


लेकिन मेरे देश और मेरे हिन्दू धर्म के प्रति बहुत साजिसे चल रही है!

देश के बहुत से गद्दार और कुछ महत्वकांशी नेता और  कुछ  हिन्दू चापलूस लोग देश मे शान्ति , देश मे उन्नति और

देश का विकास नहीं देख पा रहे है!


मैं कुछ दिनों से देख रहा हूँ

जो भी अच्छा हो रहा है देश मे उसका विरोध करना

इस सबकी आदत पड़ गई है!


सब महान हस्ती कहती है देश मे मुस्लिम अल्पसंख्यक खतरे मे है , बेरोजगार  है

क्या कभी इन महान हस्तियों ने कहा धार्मिक हिन्दुओं की  हत्या हो रही है लव जिहाद करके हिन्दू लड़कियों से निकाह करके उन्हें मार कर फैक देते है!


इन महान हस्तियों को कई बार  दीपावली पर पटाखों पर ज्ञान देते , होली पर रंगों से नुकसान और पानी की बर्बादी पर भी ज्ञान देते सुना , नवरात्री मे मायक से शोर पर भी ज्ञान देते सुना ,

पर कभी इन  महान हस्तियों को मुस्लिम लोगो की अजान से सुबह की नींद ख़राब करने का सुना जो की सुबह 4 बजे से रात तक 5  बार होती है शोर मचाया जाता है!


हमारी गौ माता लाखो की संख्या मे रोज कटती है 

ईद पर बेजुबान जानवरो  का कतल किया जाता है खून ही खून हो जाता है उसमे पानी बर्बाद नहीं होता यह कहते सुना है!


मंदिर मे पुजारी को दान नहीं दे सकते पेटी मे दान करो और पेटी का पैसा सरकार का होगा जब पुजारी को पैसा नहीं मिलेगा तो घर कैसे चलायेगा और जब पुजारी नहीं होगा तो मंदिर मे पूजा कौन करेगा यह सोची समझी साजिश है और मस्जिद मे हाफिज और काजी को सरकारी तनख्वाह मिलती है और इनकी दरगह , मस्जिद सब सरकार से मुक्त है!हर जुम्मे को मस्जिद मे देश विरोधी और हिन्दू विरोधी बातो पर अमल होता है 


सब देख और सुनकर मेरा दिल भी देश की ऐसी दशा देखकर बदल गया है!  मुझे अब ना किसी से कुछ लेना है और ना देना है जो देश और हिंदुत्व का सोचेगा वही मेरा मित्र और भाई है और किसी को बुरा लगे 100 बार लगे 

जो सत्य है सही है वही पोस्ट करूँगा,


मरे हिन्दुओं के ज़मीर को जगाता रहूँगा 

देशहित की बात करता रहूँगा!

इन महान हस्तियों और अल्पसंख्यक लोगो का जो अब बहुसंख्यक हो कर भी 

सब कुछ रियायत,कानून और रोजगार चाहते है!


इन सबका विरोध और बहिष्कार करता हूँ , करता रहूँगा


यह मुस्लिम खाने मे थूक कर,मूत कर खिलाते है

हिन्दू लड़कियों को भगा कर लें जा रहे है

हमारी धार्मिक आस्था को ठेस पंहुचा रहे है


कश्मीर मे आंतकवादीयों को पैसो से मदद कर रहे है!

हिन्दू विरोधी  साजिसे कर रहे है

फिर भी कियूं मर रहे हो इनसे रिश्ता रखने को 


जाग जाओ मेरे हिन्दू दोस्तों अभी भी समय है अपने हिंदुत्व का स्वभिमान बनाये रखो!


वरना  अपनी आने वाली पीढ़ी हिन्दू नहीं रह पायेगी!


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हिंदू क्यों गुलाम हुआ ?

 हिंदू क्यों गुलाम हुआ ?


समय न हो तो भी, एक बार तो अवश्य पढें ।


मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था । 


तख्त-ए-ताऊस काफ़ी ऊँचा था । उसके  एक तरफ़ थोड़ा नीचे अग़ल-बग़ल दो और छोटे-छोटे तख्त लगे हुए थे । एक तख्त पर मुगल वज़ीर दिलदार खां बैठा हुआ था और दूसरे तख्त पर मुगल सेनापति सलावत खां बैठा था । सामने सूबेदार, सेनापति, अफ़सर और दरबार का खास हिफ़ाज़ती दस्ता मौजूद था । 


उस दरबार में इंसानों से ज्यादा क़ीमत बादशाह के सिंहासन तख्त-ए-ताऊस की थी । तख्त-ए-ताऊस में 30 करोड़ रुपए के हीरे और जवाहरात लगे हुए थे । इस तख्त की भी अपनी कथा व्यथा थी । 


तख्त-ए-ताऊस का असली नाम मयूर सिंहासन था । 300 साल पहले यही मयूर सिंहासन देवगिरी के यादव राजाओं के दरबार की शोभा था । यादव राजाओं का सदियों तक गोलकुंडा के हीरों की खदानों पर अधिकार रहा था । यहां से  निकलने वाले बेशक़ीमती हीरे, मणि, माणिक, मोती मयूर सिंहासन के सौंदर्य को दीप्त करते थे । 


समय चक्र पलटा, दिल्ली के क्रूर सुल्तान अलाउदद्दीन खिलजी ने यादव राज रामचंद्र पर हमला करके उनकी अरबों की संपत्ति के साथ ये मयूर सिंहासन भी लूट लिया । इसी मयूर सिंहासन को फारसी भाषा में तख्त-ए-ताऊस कहा जाने लगा ।

 

दरबार का अपना सम्मोहन होता है और इस सम्मोहन को राजपूत वीर अमर सिंह राठौर ने अपनी पद चापों से भंग कर दिया । अमर सिंह राठौर शाहजहां के तख्त की तरफ आगे बढ़ रहे थे । तभी मुगलों के सेनापति सलावत खां ने उन्हें रोक दिया । 


सलावत खां - ठहर जाओ अमर सिंह जी, आप 8 दिन की छुट्टी पर गए थे और आज 16वें दिन तशरीफ़ लाए हैं । 


अमर सिंह - मैं राजा हूँ । मेरे पास रियासत है फौज है, मैं किसी का गुलाम नहीं । 


सलावत खां - आप राजा थे ।अब सिर्फ आप  हमारे सेनापति हैं, आप मेरे मातहत हैं । आप पर जुर्माना लगाया जाता है । शाम तक जुर्माने के सात लाख रुपए भिजवा दीजिएगा । 


अमर सिंह - अगर मैं जुर्माना ना दूँ  ।


सलावत खां- (तख्त की तरफ देखते हुए) हुज़ूर, ये काफि़र आपके सामने हुकूम उदूली कर रहा है । 


अमर सिंह के कानों ने काफि़र शब्द सुना । उनका हाथ तलवार की मूंठ पर गया,  तलवार बिजली की तरह निकली और सलावत खां की गर्दन पर गिरी ।


मुगलों के सेनापति सलावत खां का सिर जमीन पर आ गिरा । अकड़ कर बैठा सलावत खां का धड़ धम्म से नीचे गिर गया ।  दरबार में हड़कंप मच गया । वज़ीर फ़ौरन हरकत में आया और शाहजहां का हाथ पकड़कर उन्हें सीधे तख्त-ए-ताऊस के पीछे मौजूद कोठरीनुमा कमरे में ले गया । उसी कमरे में दुबक कर वहां मौजूद खिड़की की दरार से वज़ीर और बादशाह दरबार का मंज़र देखने लगे ।


दरबार की हिफ़ाज़त में तैनात ढाई सौ सिपाहियों का पूरा दस्ता अमर सिंह पर टूट पड़ा था । देखते ही देखते अमर सिंह ने शेर की तरह सारे भेड़ियों का सफ़ाया कर दिया ।


बादशाह - हमारी 300 की फौज का सफ़ाया हो गया्,  या खुदा ।


वज़ीर - जी जहाँपनाह ।


बादशाह - अमर सिंह बहुत बहादुर है, उसे किसी तरह समझा बुझाकर ले आओ । कहना, हमने माफ किया ।


वज़ीर - जी जहाँपनाह ।


हुजूर, लेकिन आँखों पर यक़ीन नहीं होता । समझ में नहीं आता, अगर हिंदू इतना बहादुर है तो फिर गुलाम कैसे हो गया ? 


बादशाह - सवाल वाजिब है, जवाब कल पता चल जाएगा ।


अगले दिन फिर बादशाह का दरबार सजा ।


शाहजहां - अमर सिंह का कुछ पता चला ।


वजीर- नहीं जहाँपनाह, अमर सिंह के पास जाने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता है ।  


शाहजहां - क्या कोई नहीं है जो अमर सिंह को यहां ला सके ?


दरबार में अफ़ग़ानी, ईरानी, तुर्की, बड़े बड़े रुस्तम-ए-जमां मौजूद थे, लेकिन कल अमर सिंह के शौर्य को देखकर सबकी हिम्मत जवाब दे रही थी । 


आखिर में एक राजपूत वीर आगे बढ़ा,  नाम था अर्जुन सिंह । 


अर्जुन सिंह - हुज़ूर आप हुक्म दें, मैं अभी अमर सिंह को ले आता हूँ । 


बादशाह ने वज़ीर को अपने पास बुलाया और कान में कहा, यही तुम्हारे कल के सवाल का जवाब है ।


हिंदू बहादुर है लेकिन वह इसीलिए गुलाम हुआ । देखो, यही वजह है ।


अर्जुन सिंह अमर सिंह के रिश्तेदार थे । अर्जुन सिंह ने अमर सिंह को धोखा देकर उनकी हत्या कर दी । अमर सिंह नहीं रहे लेकिन उनका स्वाभिमान इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में प्रकाशित है । इतिहास में ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जिनसे सबक़ लेना आज भी बाकी है । 


शाहजहाँ के दरबारी, इतिहासकार और यात्री अब्दुल हमीद लाहौरी की किताब बादशाहनामा से ली गईं ऐतिहासिक कथा ।


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70 साल में हिंदू नहीं समझा कि एक परिवार देश को मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहता है

😡

 5 साल में मुसलमान समझ गया कि मोदी हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता हैं।

😷😷


 देश के दो टुकड़े कर दिए गये, मगर कही से कोई आवाज नहीं आई?😒


आधा कश्मीर चला गया कोई शोर नहीं?😒


तिब्बत चला गया कही कोई विद्रोह नहीं हुआ?😒आरक्षण, एमरजेंसी, ताशकंद, शिमला, सिंधु जैसे घाव दिए गये मगर किसी ने उफ्फ नहीं की ?😒


2G स्पेक्ट्रम, कोयला, CWG, ऑगस्टा वेस्टलैंड, बोफोर्स जैसे कलंक लगे मगर किसी ने चूँ नहीं की?😒


वीटो पावर चीन को दे आये कही ट्रेन नहीं रोकी.😒


लाल बहादुर जैसा लाल खो दिया किसी ने मोमबत्ती जलाकर सीबीआई जाँच की मांग नहीं की?😒


माधवराव, राजेश पायलट जैसे नेता मार दिये, कोई फर्क नहीं?😒


परन्तू जैसे ही गौ मांस बंद किया, प्रलय आ गई..🙁


जैसे ही राष्ट्रगान अनिवार्य किया चींख पड़े..😕


वंदे मातरम्, भारत माता की जय बोलने को कहा तो जीभ सिल गई..🙁


नोटबंदी, GST पर तांडव करने लगे..🙁


आधार को निराधार करने की होड़ मच गई..😕


अपने ही देश में शरणार्थी बने कश्मीर के पंडितो पर किसी को दर्द नहीं हुआ..☹️


रोहिंग्या मुसलमानो के लिये दर्द फूट रहा हैं।😠


किसी ने सच ही कहा था:

देश को डस लिया ज़हरीले नागो ने, घर को लगा दी आग घर के चिरागों ने।


विचार करना...... काग्रेस ने हिन्दूओ को नामर्द बना दिया है👆


आतंकवाद के कारण कश्मीर में बंद हुए व तोड़े गए कुल 50 हजार मंदिर खोले व बनवाये जाएंगे*

- केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी


बहुत अच्छी खबर है, 

पर 50 हजार? 😳

ये आंकड़ा सुनकर ही मन सुन्न हो गया

एक चर्च की खिड़की पर पत्थर पड़े या मस्जिद पर गुलाल पड़ जाए

तो मीडिया सारा दिन हफ्तों तक बताएगी

पर एक दो एक हजार नहीं,,,

बल्कि पूरे 50 हजार मंदिर बंद हो गए

इसकी भनक तक किसी हिन्दू को न लगी ? 😒


पहले हिन्दुओ को घाटी से जबरन भगा देना,

फिर हिंदुत्व के हर निशान को मिटा देना,

सोचिए कितनी बड़ा षड्यंत्र था..

पूरी घाटी से पूरे धर्म को जड़ से खत्म कर देने का ? 😕🙁


अगर मोदी सरकार न आती तो शायद ही ये बात किसी को पता चलती !😞


वामपंथी पत्रकारों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों और कांग्रेस और उसके चाटुकारो ने कभी इस मुद्दे को देश के समक्ष क्यो नही रखा?🙁


*यह है कांग्रेस की उपलब्धि और वामपंथी पत्रकारों और मुस्लिम बुद्धिजीवियों की चतुराई कि आम हिन्दू अपने इतिहास से अनभिज्ञ रहा.🙁*


ऐसा लगता है की पूरी कायनात जैसे साज़िशें कर रही थी और इतनी शांति से कि हमें पता न चले।।


🙏जय भारत महान  

झुकेगा सारा जहान🙏

🙏 हर हर महादेव🙏

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Tuesday, September 17, 2024

हम जुठा व बासी नही खाते.....!!

 हम जुठा व बासी नही खाते.....!!


 अगली बार ये कहने से पहले सोचियेगा..!!


कुछ दिन पहले एक परिचित मित्र मुझे पार्टी के लिये एक मशहूर रेस्टोरेंट में ले गये।


मैं अक़्सर बाहर खाना खाने से कतराता हूँ किन्तु मित्र का सामाजिक दबाव तले जाना पड़ा।


आजकल पनीर खाना रईसी की निशानी है इसलिए उन्होंने कुछ डिश पनीर की ऑर्डर की।


 प्लेट में रखे पनीर के अनियमित टुकड़े मुझे कुछ अजीब से लगे। ऐसा लगा की उन्हें कांट छांट कर पकाया है।


मैंने वेटर से कुक को बुलाने के लिए कहा, कुक के आने पर मैंने उससे पूछा पनीर के टुकड़े अलग अलग आकार के व अलग रंगों के क्यों हैं तो उसने कहा ये स्पेशल डिश है।


मैंने कहा की मैँ एक और प्लेट पैक करवा कर ले जाना चाहता हूं लेकिन वो मुझे ये डिश बनाकर दिखाये।


सारा रेस्टोरेंट अकबका गया...?


बहुत से लोग थे जो खाना रोककर मुझे  देखने लगे...


स्टाफ तरह तरह के बहाने करने लगा। आखिर वेटर ने पुलिस के डर से बताया की अक्सर लोग प्लेटों में खाना,सब्जी सलाद व रोटी इत्यादी छोड़ देते हैं।


 रसोई में वो फेंका नही जाता। पनीर व सब्जी के बड़े टुकड़ों को इकट्ठा कर दुबारा से सब्जी की शक्ल में परोस दिया जाता है।

 

प्लेटों में बची सलाद के टुकड़े दुबारा से परोस दिए जाते है । प्लेटों में बचे सूखे  चिकन व मांस के टुकड़ों को काटकर करी के रूप में दुबारा पका दिया जाता है। बासी व सड़ी सब्जियाँ भी करी की शक्ल में छुप जाती हैं...


ये बड़े बड़े होटलों का सच है। अगली बार जब प्लेट में खाना बचे तो उसे इकट्ठा कर एक प्लास्टिक की थैली में साथ ले जाएं व बाहर जाकर उसे या तो किसी जानवर को दे दें या स्वयं से कचरेदान में फेकेँ 


वरना क्या पता आपका जुठा खाना कोई और खाये या आप किसी और कि प्लेट का बचा खाना खाएं।


एक बार मैं दिल्ली गया था एक यजमान के बुलाने पर उनके साथ.....


लंबी यात्रा के बाद हम सभी को कड़ाके की भूख लगी थी सो एक साफ से दिखने वाले  रेस्टोरेंट पर रुक गये । समय नष्ट ना करने के लिए खाना मंगाई गया....


एक साफ से ट्रे में दाल, सब्जी,चावल, रायता व साथ एक टोकरी में रोटियां आई।


पहले कुछ कौर में ध्यान नही गया फिर मुझे कुछ ठीक नही लगा। मुझे रोटी में खट्टेपन का अहसास हुआ, फिर सब्जी की ओर ध्यान दिया तो देखा सब्जी में हर टुकड़े का रंग अलग अलग सा था। चावल चखा तो वहां भी माजरा गड़बड़ था।


सारा खाना छोड़ दिया।


फिर काउंटर पर बिल पूछा यो 650 का बिल थमाया।


मैंने कहा 'भैया! पैसे तो दूँगा लेकिन एक बार आपके रसोई देखना चाहता हूं" वो अटपटा गया और पूछने लगा "क्यों?"*


मैंने कहा "जो पैसे देता है उसे देखने का हक़ है कि खाना साफ बनता है या नहीँ?


इससे पहले की वो कुछ समझ पाता मैंने होटल की रसोई की ओर रुख किया।


आश्चर्य की सीमा ना रही जब देखा रसोई में कोई खाना नहीं पक रहा था। एक टोकरी में कुछ रोटियां पड़ी थी। फ्रिज खोला तो खुले डिब्बों में अलग अलग प्रकार की पकी हुई सब्जियां पड़ी हुई थी।


कुछ खाने में तो फफूंद भी लगी हुई थी।*


फ्रिज से बदबू का भभका आ रहा था।


डांटने पर रसोइये ने बताया की सब्जियां करीब एक हफ्ता पुरानी हैं। परोसने के समय वो उन्हें कुछ तेल डालकर कड़ाई में तेज गर्म कर देता है और धनिया टमाटर से सजा देता है।


रोटी का आटा 2 दिन में एक बार ही गूंधता है।


कई कई घण्टे जब बिजली चली जाती है तो खाना खराब होने लगता है तो वो उसे तेज़ मसालों के पीछे छुपाकर परोस देते हैं। रोटी का आटा खराब हो तो उसे वो नॉन बनाकर परोस देते हैं।


मैंने रेस्टोरेंट मालिक से कहा कि "आप भी कभी यात्रा करते होंगे, इश्वेर करे जब अगली बार आप भूख से बिलबिला रहे हों तो आपको बिल्कुल वैसा ही खाना मिले जैसा आप परोसते हैं


उसका चेहरा स्याह हो गया....


आज आपको खतरो, धोखों व ठगी से सिर्फ़ जागरूकता ही बचा सकती है क्योंकी भगवान को भी दुष्टों ने घेर रखा है।


भारत से सही व गलत का भेद खत्म होता जा रहा है....


हर दुकान व प्रतिष्ठान में एक कोने में भगवान का बड़ा या छोटा मंदिर होता है, व्यपारी सवेरे आते ही उसमे धूप दीप लगाता है, गल्ले को हाथ जोड़ता है और फिर सामान के साथ आत्मा बेचने का कारोबार शुरू हो जाता है!!!


भगवान से मांगते वक़्त ये नही सोचते की वो स्वयं दुनिया को क्या दे रहे हैं....!!


जागरूक बनिये...!!

और कोई चारा नही है...!!

Monday, September 16, 2024

✅डीप स्टेट अपने दलालों को बड़ी प्लानिंग के साथ प्रोजेक्ट करता है

 ✅✅डीप स्टेट अपने दलालों को बड़ी प्लानिंग के साथ प्रोजेक्ट करता है


जेलेन्सकी  को भी डीप स्टेट और कैंब्रिज एनालिटिका ने बड़ी प्लानिंग के साथ यूक्रेन की राजनीति में प्रोजेक्ट किया 


जेलेन्सकी कॉमेडियन थे फिर उनका इमेज मेकओवर किया गया 


वह अक्सर जिम में जाते थे आम लोगों से मिलते थे कभी बस में सफर करते थे कभी ट्रेन में सफर करते थे इस तरह उनकी एक छवि बनाई गई और इस काम में कुछ यूट्यूबर चैनल और कुछ पत्रकारों को खरीदा गया 


और आज जेलेन्सकी ने  यूक्रेन का क्या हाल कर दिया वह पूरी दुनिया देख रही है 


बस एक जिद की यूक्रेन NATO में जाएगा जैसे राहुल गांधी की  सोच की जातिगत जनगणना करने से भारत की सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगे


 वैसे ही जेलेन्सकी  की  सोच की यूक्रेन के नाटो में जाने से यूक्रेन की सारी समस्याएं खत्म हो जाएगी


और यूक्रेन का हालत देखीये


 ना माया मिली ना राम 


ना नाटो में गया कोई सुरक्षा मिली क्रीमिया  पहले ही चला गया तीन और प्रदेश रूस ने ले लिए पूरे यूक्रेन को खंडहर बना दिया


आज जो आप शहजादे का जगह-जगह एक्टिविटी देख रहे हैं कि कभी डीटीसी बस में कभी जिम में कभी लोकल ट्रेन में यह सब ब्रिटेन की वही इमेज बिल्डिंग एजेंसी कैंब्रिज एनालिटिका और जॉर्ज सोरेस  की संस्था के साथ मिलकर किया जा रहा है


 आखिर आप खुद सोचिए जब 10 साल ये सत्ता में थे तब क्या आपको  कभी बस में ट्रेन में जिम में या सड़क पर नजर आए थे ?


और तो और जब मुंबई में 26/ 11 का भीषण हमला हुआ था उसे दिन खुलासा हुआ कि  अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रहे थे वह घटनास्थल पर गए ही नहीं 


यह सब एक बड़ी प्लानिंग के साथ किया जा रहा है यह साइकोलॉजी का खेल है इसमें यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि यह व्यक्ति आप लोगों से जुड़ा हुआ है जबकि हकीकत बिल्कुल उल्टा है आप कभी इसके घर में जाने की हिम्मत भी नहीं कर सकते आप कभी उनसे यूं ही बात करने की हिम्मत नहीं कर सकते क्योंकि उनके आसपास कोई आम व्यक्ति जा ही नहीं सकता और यह जो तथाकथित वीडियो रिलीज किया जाता है यह सब एक प्री प्लांड होता है एक्टिंग होता है  पहले से कैमरा सेटअप सब तैयार रहता है और यह पूरा एक विदेशी मीडिया एजेंसी के सलाह के साथ हो रहा है


 वरना आप खुद सोचिए जब मोनी बाबा प्रधानमंत्री थे तब ये कभी आम लोगों के बीच कभी डीटीसी की बस में कभी ट्रेन में कभी खेतों में क्यों नहीं नजर आते थे ?


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